पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३९१

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वादितवाचवा ३ को उठ जाता है, मुसरा निर्देशक यन्त्रमे ताड़ितप्रवाई चुम्बकसे पृथक रहती है। ताड़ितीय चुम्बक की तार• छिन होता है। मो प्रकार प्रत्येक बार मे रिम्ने कुडलो का एक छोर स्थौड़ों के साथ मयुता रहता है। यन्त्रमें हो कर तड़ित रवाह गमन करता है, निर्देशक लाइनकं माथ इम यन्त्रको जोड़ देने पर ज्यों को ताति- यन्त्र में भो हबह इसो प्रणालोमे प्रचन्नतर ताडितप्रवाह प्रवाह उस हथौड़ो में हो कर सास्कुण्डलोमें प्रवेश करता गमन करता है और मतांका स्पष्टतया निर्देश करता और दूसरी बोरसे निकल जाता है, त्यों हो चुम्बकको शक्ति मे अथौड़ो पाकषित हो कर घण्टो पर पड़ती है। वर्तमानताड़ितवार्तावह-टेलिग्राफ कार्यालयमें, कम परन्तु हथोड़ोके प्राकर्षित होते हो ताड़ितप्रवास खण्डित चारीगण इतनो क्षिप्रतरके साथ अभ्रान्तरूपमे मंवाद हो जाता है पार इसोलिए वह पावष्ट होनेमे) स्पिड के भेजते और ग्रहण करते हैं. कि जिसको देख कर आवर्य जारसे अलग हो जातो है हट कर पूर्वावस्थाको प्राम होने लगता है। एक सुदक्ष कर्म चारो प्रत्येक मिनटमें होते हो फिर उममें तारितवार मयुक्त होता है, और ३० । ४० शब्द प्ररण और ग्रहण कर सकता है । सुनि- वह पुन: वण्टो पर पड़ता है। इस प्रकारमे जब तक पुण कर्मचारी संवाद ग्रहण करते समय कागजको तरफ ताड़ितप्रवाह चलता रहता है, तब तक घण्टो बजतो आँख उठा कर देखता भी नहीं, वह मात्र निर्देशक-यन्त्र के रहता है। कर्मचारो उम शब्दको सुन कर यन्त्रक पास ताड़ितीय चुम्बकके माथ लोहदगड के प्राघात-जनित आता है पोर कौशलसे साड़ितस्रोतको उस यन्त्रसे हटा शब्दसे हो मत समझ लेता है । इसो परमे अमेरिका- कर मोधा निर्देशक यन्त्र में जाने देता है। ... वालान एक प्रकारका नया टेलिग्राफ प्राविकत किया। कभी कभी झभा मेध पादिसे तारस्थ स्वाभाविक जिममें रिले-यन्त्र जमा एक यन्त्र रहता है। ताडित- साडित विश्लिष्ट हो जाता है और मंवाद देने लेने में प्रवाह ज्यों हो तार हाग उसमें प्रवेश करता है, त्यां हो बड़ी दिक्कत होतो है। यहां तक कि भयावा उपद्रव भी मका ताडितोय तुम्बक एकाटो हथोड़ाका पाकर्षित भनि नगते हैं। इस दैव उपद्रवके निराकरण के लिए, करता है। सुम्ब क पर दम हथोड़ाके पड़ते हो 'टक, दाइनका तार एक ताडित परिचानक यस्त्र के साथ जुड़ा शब्द होता है और प्रवाह बन्द हात हो स्प्रिङ्गक जोरसे रहता है । लाइन तारमे, ताडि,तप्रवाह सोधा टोलमाफ- हथौड़ा ऊपरको उठ जाता है। इस प्रकारसे ताड़ितस्रोत के यन्त्रमि नहीं जाता, बल्कि इस यन्त्र में हो कर जाता को अल्प वा अधिक समय तक प्रवाहित रख कर, है । इनका गठन प्रणालो इस प्रकार है,-पारोके समान शब्दकं इस्व और दोघ ताका तारतम्य प्रकट किया जा । दाँतव ना दो तबिकी पत्तियां नवाई में प्राम-पास इन सकता है। यह प्रख और दीर्घ शब्द क्रममे मोस के । तरह लगी रहती हैं कि जो एक दूमरेका स्मथ नहीं बिन्दु पौर रेखाके समान है। ममयको किफायत और करतो । इनमसे एक तो लाइन के तारके माथ और ए। प्रणालो सहज होने के कारण फिलहाल सर्व वयही टेलि- भूगों के साथ मयुक्त रहतो है।.. मेघादिको प्रणोदन- ग्राफ प्रचलित हो गया है। शक्तिक कारण ज्यों हो तारमें ताड़ित सश्चित होता है, जिस मुशन पर सवाद भेजा जाता है, उस सृशन , त्यां हो उस पागेक नुकोले दाँतमि हो कर वह भूमिम कर्मचारियोंको सावधान करने के लिए ओर एक यन्त्र प्रवष्ट हो जाता है। पर फिर विपदको प्राशन नहीं व्यवहत होता है, जिसे हम ताड़ितोय घण्टो कह सकत रहतो। दांत एक दूमरम सट न रहने के कारण तारका ताजितस्रोत भूमिमें नहीं जाता, सुतरां वातावहको हैं। इसका गठनप्रणाली इस प्रकार है, एक लड़कोको कछ क्षति नहीं होता; सिफ मेधादि-वारा उपचोवमान पटिया पर एक चुंबक लगा रहता है, जिसके एक छोर ताड़ित हो नष्ट होती है। पर मिङ, दारा आवद्य एक धातुको पत्तो पौर उस पर दो प्रधान स्टेशनोक बोचमें उससे अधिक स्टेशन एक छोटो हथौड़ी तथा उस हथौड़ो के पास में एक घण्टो हा तो उनम हो कर किस प्रकारसे मवाद पागे जाता सगो होतो। यहथौड़ो स्पिड जारस घंटा.पार है, न दिखलान है।