पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४००

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तातो ३९६ सम्पन्न करने के लिए पाप मर्वदा मचेष्ट रहते थे। दोनों विज्ञान-मन्दिरका उद्घाटन हुषा । इसका नाम क्या मिलोको कम्पनी के साथ गाँव कर जब आप निश्चिन्त हुए, गया "The Indian Institute of Rescarch अर्थात् लब पापने अपना मन दूसरी तरफ लगाया। भारतीय गवेषणा-ममिति । इस विज्ञानमन्दिरमें निम्र भारतकं प्रतिभावाम छात्र जिममे विलायत जा कर लिखित नौन विषयों की शिक्षा दो जातो है- भाधुनिक वैज्ञानिक प्रणालोमे शिक्षा प्रान कर मक. (१) विज्ञान और शिल्पविज्ञान । एमके लिए प्रापन दो छात्रवत्तियों स्थापित की । (१८८२ (२) पायुर्वेद १०) पहले प्रापने ये वृतियाँ मिर्फ पारसो छात्रों के लिए (३) दर्शन और शिक्षा। हो नियुक्त को थों, किन्तु दो वर्ष बाद हो यह नियम इस विज्ञान-मन्दिरसे मनग्न पुस्तकागार, जादूघर उठा दिया गया। अब भारतका पर एक योग्य छात्र इम पार व ज्ञानिक परोक्षागार भी हैं। जत्तिको प्राप्त कर विलायत जा मकता है। इस वृत्तिम साताके अन्य न्य कार्यासे भने हो सब आज तक ३८ छात्र विलायतने पढ़ कर पाये हैं, जिन परिचित न हो, पर उनक प्रमिड लोहे के २३ छात्र पारनी है । विनायतसे लौट पानिके बाद यह कारखानकै विषयमें सभी जानकारी रखते हैं। यह रुपया मय ब्याक वापस कर देना पड़ता है। व्याज कारखाना उनको अक्षय कीर्ति है और भारतवर्ष में एक उसको पामदनी के अनुसार लगाई जाती है। अभिनव उद्योग है। हमारे देश में बहुत प्राचीनकालसे साताके जीवनका और एक उद्देश्य था, एक वैज्ञानिक लोहका व्यवहार होता आया है। परन्तु वर्तमान गवेषणागारको स्थापना करना । साता इस बातको भलो वैज्ञानिक प्रणालीसे लोहा बनान की प्रथा यहाँ प्रचलित भाँति जानने थे कि विज्ञान ही मव प्रकार शिन्य बाणिज्यक न थो। मम्भव है, किमो जमान में वैज्ञानिक उपायमे उतिका मूल है । इमो वयालमे उन्हो ने मधमे पहले या भो लोहा. इम्यात प्रादि ननता था, किन्तु अन्यान्य एक शिक्षित व्यक्तिको य गेप और अमेरिका भेज कर विद्याश्रीको ताह यह विद्या मी दम देशर्म लुप्त हो पावश्यकीय मवादोंका संग्रह किया और अनेक विशे- चुमो थो। ताताको बहुत दिनांम इच्छा था कि ग्राधु पनों के साथ एक विषय को प्रान्नो चना एवं परामर्श किया। निकजाकि उपाय भारत५ भो लाहा बनानको चमके बाद पाप, भारतवर्ष में कैसा विज्ञानागार होना चेष्टा होना चाहिए। सुना ता , पहले भारतमें चाहिये, मम्मति उसमें किम किस विषयको शिक्षा दो अच्छा लोना ज्यादा नहीं मिलता था। अतएव अब जानी चाहिए इत्यादि विषयांका अनुसन्धान करने लगे। यहां एक लोहका कार ! खुनना चाहिये, इस उद्दे. असमें निगा य हुघा, कि तोम नाख रुपयका फगड हा श्यसे भूतत्त्वविकनि धार धार लोहका पान पार पहाड़ो. जानिमे उसका तमाम खर्च निर्वाह हो सकता है और का अनुमन्धान करनः शुरू कर दिया। ताता इनके उसमें मे जो बाको रुपये बचेंगे, उसको व्याजमे उसका नये नये आविष्कार :ो खाज रखते थ। बहुत पथ- वार्षिक खर्च चल मकता है। व्यय करके आपन भो भूतत्त्वविद का नियुक्त किया और १८८८ दे में जब लार्ड कर्जन बम्बई पधारे, तब उनसे लोहे को खाना को खाज करान लगे । अनुसन्धानसे इस विज्ञानशाला की बात कही गई । १८८८ ई० में तीन मालम हुआ कि भारतमें बहुत लाहा है और यहां पना- बार विवेचना करके बाद गवन मण्टन इम विज्ञाना. याही लोका कारखाना खोला जा सकता है। गारके खोलनको अनुमति द दो । बैंगन्नारमें इसको रोबोम वर्ष के अनुसन्धान और प्रयत्न फलवकर नोव खुदो । मरिसरक विद्यासाहो महाराज बहादुर मध्यप्रदेशमें कारखान के लायक एक जमोन पाई गयो। तथा गवर्मेण्टन इसके प्रतिष्ठान, यथेष्ट सहायता को। इस स्थान का नाम है साकचो। यह एवड़ासे १३५ परन्तु अत्यन्त दुःखका विषय है, कि नाता इस कालेज- मोनको दुरः पर तातानगर (पहले इसका नाम 'कालो- को अपने सामने घसते म देख सके । १८१०ई० में इस मही' था )-टे धमकं पास हो है। तातानगर उतर बार