पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४०४

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४०. वार्यक-वान प्रक्षत पभिप्राय है। हम सरह अभिप्राय का नाम ताहत (म०वि०) मा दृश्यते तदाकस, मर्वनाम हो तात्पर्य है। हे मर जगर वाला के तापा टाव। उनो तरह, समो मा। . नुसार हो अर्थ लगाया जाता है भार टूमरा उदाहरण ताग विध ( म. वि. ) सागो विधा यस्य बहुवो। नोजिये, जमे कागा ।गा पर बमोहन वाक्यका उमा तरह। शब्दाथ काम जल उपर मो है, ऐमा होगा। तादृश (म त्रि.) म व दृश्य मेऽसो तद-दृश-विन् । लेकिन करनेवालेका तात्पय यह है कि काशो गङ्गाकं । त्यादादिषु दृशोऽनालोनने कच। पा ३.२१६ । सर्वनाम किनारे जमी है। 'टेगव। उसो के समान, मा। नान्वयक ( म त्रि० ) १ भावोद्दोपक अर्थ बोधक । २ : तादृश ( म० वि०) स इव दृश्यते तद्-दृश्य कञ् । तत्त ल्य, त पर उद्यत, मुम्त द। उमाके जमा। तात्य ( म त्रि. ) तद छान्दमस्यः दकारस्य श्राव. ! ताहगो । म स्त्री० तादृा डोष । तत्त ल्या. उसों के तत्कालीन. उमी ममगा। ममान, वैसो। तात्विक (म त्रि.) १ तत्त्वसम्बन्धी । २ तत्त्वज्ञान- तादम्य (म० क्लो) एकधर्म, एक नियमता। यक्त । ३ यथार्थ। ताधा (हिं स्त्री० ) ताताई देशे। साम्तोग्य (म.ली.) उमौ साहको स्तुति। तान (मं० पु०) तन-धज । १ विस्तार, फैलाव, पौंच । २ तात्स्थ ( स० की. ) उममें स्थित, उसमें रकवा हुआ। जानका विषय । ३ गानाङ्गभेद, गानका एक अङ्गः । अनु. तात्स्स्य ( स० पु०) १ किमौके बीच में रहने का भाव । २. लोम विलोम गतिमे गमन और मूच्छ नादि द्वारा किसो एक व्यजनामक उपाधि। इसमें जिस वस्तका कहना रागको अच्छी तरहसे खींचनेका नाम तान है । सहोता होता है, उम वस्त में रहनेवाली वस्तका ग्रहण होता है। दामोदर मतसे स्वरोसे उत्पन तान ४८ है। इन ४८ यथा-यदि कहा जाय कि 'मारा घर गया है तो इसका तानोंसे भी ८३०० कूट ताने निकली हैं। 'घरके मब लोग गए हैं। इसके मिवा दूसरा अर्थ नहीं किन्तु बङ्गला मङ्गीतरत्नाकरमें तानके चार भेद हो सकता। लिखे हैं ; यथा-अरचक, घातक, मातक, और सुरा. साथामाथ ( वि.) खरितक परे जिमका उदात्त उच्चा. तक । जिम तानमें अनुलोम या विलोमम एक सर दो ती बार प्रयुक्त होता हो उसे परचक कहते हैं। जिसमें ताई (Eि स्त्री. ) ताताई देखा। अनुलोममें एक बार और विनोममें एक बार प्रयुक्त होता तादर्थ क ( म त्रि. ) उसो तरह । है, वह घातक है ; तीन बार व्यवहत होनेसे सातक और चार बार व्यवहत होनेसे सुगतक कहलाती है। साद (म० को०) तदर्थस्य भावः तदर्थ-व्यञ् । गुणवचन- एक सुरमें १ तान। ब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च । पा ५।१२। । १ तनिमित्त, उमके दो मुरमें २ तान। लिये । २ तदर्थता, उसके वास्ते । तीम सुरमें ६ ताम। तादात्म्य ( स ली.) तदात्मनो भावः तदात्मन् ष्यत्र । चार सुरमें २४ तान। मस्वरूपता, एक वस्तुका मिल कर दूसी वस्तु रूपमें हो पांच सरमें १२. तान। आना। क: मुरमें ७२.तामा तादाद (१. स्त्रो) संख्या, गिनती, शुमार । सात सरमें ५.४० तान। तादोबा ( पश्य० ) तदानी पृषो. साधुः। तदानीं, उसी समग्र ५८१३ तान। समय। · (संगीतरत्ना.) सादुरी (मो .) मेंढ़कका एक नाम। ४ कम्बलका ताना। ५भाटेका सड़ा, सहर, तरा।