पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४०५

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तानटरंग-तानसन (पला या हदिमें मजबूतोके लिए लगाई जानेको लोहे "धर्मसों नीच पाप, पारसों बीच कोष, कोषसों नीय बोम को छड़। ७ एक पेड़का नाम । लोभसों नीच मोहमद, मदसों बीच मत्सर कहाइया । तानतरण (सस्त्री० ) अलापचारो, लयको लहर। स्वर्गसों नीच मृत्युलोक, मृत्युलोकमें नीच दुष्ट तानतरण-सिग्दोके एक अच्छे कवि। इनको प्रायः शिरतें नीच पांब, राजसों नीच प्रजा पाइया । सभो कविताएं सराहनीय है। उदाहरणार्थ एक नीचे ब्रामगों नीच क्षत्री, क्षत्रीसों नीव वाश, श्यसों नीच शुद दो जाती है- पनीसों नीच निर्धन, वेदसों नीच शाह भाइया । "अब हो डारि देरे इंडरिया कम्दै या मेरे पचरंग पाटकी । देवसों नीच रास. समुद्रसों नीच नदीनद स्त ___हाहा खाति तेरे पहां परति हों कवि तान र सगुनीसों नीच निरगुनी पाइया ।" यह लालच भोहि मथुगनगर हाट की । नामवरम-हिन्दोके एक कवि। इनको कविता सरल ____ मेरे संगकी दूर निकस गई हो कीनी इह घाटकी। सथा प्रशमनीय होतो थो, उदाहरणार्थ एक नोरे तानतरंग प्रभु झगरो ठान्यो हसत लुगई वाट की।" तानना (हिं. कि. ) १ जोसे खोचना, बढ़ाना । २ बल "देवन में प्रथम ब्रह्म मासनमें प्रथम साल कार्तिक पूर्वक विस्तीर्ण करना, जोरसे बढ़ा कर पमारना। रितुनमें प्रथम वसन्त दिवसमें प्रथम पावितसो कीजिये। 'तानना और 'खींचना में फर्क इतना हो है, कि तानने वेदमें प्रथम सामवेद पुराण प्रथम श्रीभागवत में वस्तुका स्थान नहीं बदलना, लेकिन 'खोंचना' किसो शास्त्र प्रथम व्याकरण रागमें प्रथम भैरव सो लिख लीजिये। वस्तुको इस प्रकार बढ़ाने को भी कहते हैं, जिसमें वह सुर प्रथम बाज द्वीप प्रथम जम्बूद्वीप नक्षत्र प्रपन अपनी अपना स्थान बद नतो है। जैसे, खूटेसे बधो हुईको रास प्रथम मेष कहि दीजिये। तानना, गाडो खींचना, पाला खींचना । ३ छाजनको सरह फल प्रथम अरथ गुण प्रथम रजोगुण तस्व प्रथम आकाश अपर किसी प्रकारका परदा लगाना। कारागार भेजना। कहत कवि तानवरस सुधा प्रथम पीजिये।" ५ किलो के विरुद्ध कोई चिट्ठ पत्रा या दरखास्त प्रादि तानव्य (संपु. स्त्रो०) समोरपत्य गर्गादित्वात् बन । भेजना। ६ किमो पदार्थको एक अंचे स्थानसे दूसरे सन के वशज। ऊँचे स्थान तक ले जाकर बांधना । ७ प्रहार के लिये अस्त्र तानव्यायना (संस्खो०) तमोरपत्य खो तनु लोहि- उठाना। तादित्वात् ष्फ, पित्वात् डोष । तनुजको गज लो। तानपूग (हि. पु० ) एक प्रकारका बाजा जो मिसारके तानसेन-भारतवर्ष के एक अहितोय गायक । बुख- प्राकारका होता है। यह गायकको सुर बाँधन में बड़ा फजलका कहना है कि, हजार वर्ष के भीतर ऐसे गायक सहायता देता है। इसमें चार तार होते हैं जिनमें से देखने में नहीं पायें। पहले ये एक कार हिन्दू थे। दो लोहे के और दो पोतलके रहते हैं। सुरबांधनका क्रम- वृन्दावन में जा कर हरिदास गोस्वामौके शिष बने थे। लो लोपि भाटके बघेलाराज रामचन्दने इनके सहीतगुण पर मुन्ध से म स प हो कर इनको अपनो सभामें रक्खा था। प्रवाद है कि तानव ( म० लो०) तनोर्भाव: तनुश्रण । इगन्ताच्च लघु- उन्होंने ताममेनके गायन पर खुश हो कर इनको करीब पूर्वात् ।.पा ५।१।१३१ । शरीरको तनुता, शरीरको दुवं. एक करोड़ रुपये दिये थे। लता। __ तानसेनकी ख्याति बहुत थोड़े समयमै हो भारत सानवर-हिन्दोके एक पच्छ कवि । इनको सारो कवि- भरमें फैल गई थी। इस समय बाहिम सूरने रनको माएँ उत्कट, सानुप्रास पोर जोरदार होतो थौं । यों तो पागर बुलाने के लिए बहुत कोशिश को थो, पर वे मुसा ये अनेक कविताएँ बना गये,.पर यहाँ एक हो नहीं सके थे। बादशाह अकबर भी तानसेनको पपूर्व उहत को जातो - सङ्गीत-पतिका परिचय पा कर इनको दिनी बुखाने Vol. I. 101 पि