पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४१३

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पार यहाँ प्रत्र हो सकता है कि जब ताप विमो पदार्थमे लिया जाय तो यह महेख सिद्ध हो सकता है। पार गूढ़ भावसे रहता है तो उस समय क्या वह ताप नहीं तथा किमी किमो धातुके पसायं साधारण पग्निमें नहीं कहलाता ? हाँ, उस समय भो वह साप कहलाता है; गलते, किन्तु तड़िताग्निमें कोई भी पदार्थ क्यों न हो. क्योंकि वा पूर्व में उसका अस्तित्व सचित इपा है पोर • बहगल कर वाष्य हो जायगा। पश्चात् भी उसका अस्तित्व दिखलाई देता है। अतएव ताप सभी वस्तुपोका एक रूपमे परिवर्तन करता है, अवस्था-विशेष में दृष्टिगोचर न होने पर भो अनुमान अर्थात् यथेष्ट उत्ताल को जाने पर उमस्त वस्तुर वायो- किया जा सकता है कि वहां पर ताप वर्तमान है। भूत और यथेष्ट ताप अपमृत कर सकने पर समस्त कोई एक गोला जपर फेंका गया, वह नीचे न गिर वस्तुएं घनोभूत हो जाती हैं। कर किसी छत पर या किमी उच्च भूमि पर रह गया, तरल पदार्थ दो प्रकारसे वाष्पोभूत होते हैं । साधा. उसका पतन उस प्राधार म योगसेन हा, तो क्या यह रण तापक्रममे भो उगमगोल तरल पदार्थ पनाहत पव. कहा जायगा कि उसकी पतनशक्ति नष्ट हो गई ? नहीं, स्थामें जपरके भागसे धोरे धोरे बायाकारमें परिणत होते कारण आधार-शून्य होते हो वह गोला अपने पाप जमोन है और तापक्रमको वृद्धि के माथ उस बाष्योभावको कृषि पर गिरगा। क्षण भरके लिये उस आधारभूमिने उम होतो है । इसो कारण कोई पात्र जलपूर्ण कर पनावत गोलेकी पतनशक्तिका प्रतिरोध किया था, तुल्यबनविरो- रखनेसे वह क्रमश: कम हो कर निःशेषित हो जाता . धिताकै कारण वह शक्ति उम समय प्रत्यक्षोभूत नहीं एवं जलाशयादि ग्रोमकालमें शुष्क प्राय हो जाते है। ६ई थो। रमो तरह ताप भो ममयाविशेषमें गूढ भावमै यही कारण है कि गोला वस्त्र हवामें रखनसे शक हो गहता है ; वस्तु ऊष्ण हुई है, यह माल म नहीं होता जाता है। इस वाष्योय भावका नाम उत्शोषण ( Eva- पर्यात् ताप का कोई कार्य हो वहां दृष्टिगोचर नहीं poration) है। मापके संयोगसे किमो पदार्थ का समस्त होता, किन्तु अवस्थान्तरमें वह भली भांति लक्षित भाग जब वापाकारमें परिगामनयोन होता. पार होता है। जब नोचेसे वाष्प त्वरित उदगत होने लगता है, तब ताप वस्तुओंको अवस्था नोंका परिवर्तन करता है। जो बाष्योभाव होता है, उसका नाम स्फुटन है। इसे पदार्थ जो धन, सरल और वाष्योय इन तोन अवस्थाओं में हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं, किन्तु पूर्वोक्त उत्योषण कर. देखा जाता है, उनका कारगा ताप ही है। वन देखनमें नहीं पाता । अपर कहा जा चुका है कि, पदार्थ तापक संक्रमण से धनसे तरल, तालमे वाष्पीय तरल पदार्थ के बाष्पोभावमें परिणत .होनेके लिए हर तथा तापके अपसरणसे वाष्पोयसे सरल और तरलसे घन वन ममान ताप नहीं लगता, भू-वायुका पेषण अल्प अवस्था में परिणत होते हैं । बरफ, जल और जलीप वाष्य होनेसे पल्प ताप पोर अधिक होनेमे अधिक ताप लगता एक हो उपादानमे बने हैं, केवल तापभेदमे तोन अव है। जहां भू-वायुका पेषण नहीं, वहाँ जल स्थानों में परिणत हुए हैं। और प्रलकोहल प्रादि किमो किसो सरल प्रदार्थ के लोहा इतना कठिन है, किन्तु साप टेनेसे वह भो लिए बिलकुल सापकी जरूरत नहीं होती। एक जल- गल जाता है : उससे भी अधिक ताप देनसे वाष्य रूपमें पूर्ण पात्रको वायु-निष्काशक यन्त्रमें रख कर उसके परिणत हो जाता है। भीतरी भागका शून्य कर जलनेसे जन अपने पाप खोलने ममस्त पदार्थोको इम अवस्थात्रयमें परिणत नहीं कर तो लगता है, पर जन्न उत्तन नहीं होता, वरन् योनल सकते। किन्तु हम नहीं कर मकते, इसलिए होता हो न होता रहता है। साधारणतया १०० ताप क्रममे हो, ऐमा नहीं वायु पोर हाइड्रोजन कभी अवस्थान्तरमें जल खोलता है, किन्तु उच्च उच्च पर्वतोंके अपर, जहाँ परिणत नहीं एमा, अलकोहल कभी जमाया नहीं गया। भूवायुका पेषण अपेक्षालात अल्प होता है, वहां .. बिन्तु इसमें कोई सन्द नहीं कि..यथेष्ट ताप अपक्षत या 8 में ही पानो सवलने लगता है। Vol. Ix. 103