पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४१७

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सा लिस गुपके कारण अड़ दण्यके परमाणु पस प्रकार- करनेसे नीचे का जन्म कुछ भी उण नहीं होता। से ताप संचालन करते है, उमका नाम परिचालकता हाँ, किसी बरतनमें जल रख कर उसके नीचे पाग है। पौर जिस क्रिया के द्वारा इस तरहसे एक कणसे : देनसे जो साग जल गरम हो जाता है, उसका दूसरा दूसरे कण में ताप संचालित होता है, उसका नाम परि कारण है। तापके मयोगसे पहले नोचेका जल गरम चालन है। उन वस्तुओं को. जो ताप-परिचालन कर होता है। गरम होने से हलका होता है और इमोलिये मकती है, ताप-परिचालक कहा जाता है। वह ऊपर उठता है। इस प्रकार नोचेका इलका जल सब द्रव्योंको परिचालकता एकमो नहीं होती। वाष्प ऊपर पानसे जपरका शीतल और भारो जल नोचे आता और ट्रम-द्रव्योंकी अपेक्षा कठिन वस्तुएँ अधिक ताप-परि है पोर कुछ ही क्षणमें गरम हो कर फिर अपर पाता चालक हैं और कठिन वस्तुओं में भी धातुव्योंको परि है। इमो प्रकार जाह-प्रवाह और अधः-प्रवाह हारा चालन-शक्ति सबसे अधिक है। चांदो, ताँबा, मोना, बतं नका ममस्त जल उष्ण हो जाता है। तरल द्रश्योंमें पोतल, गग, लोहा, फोलाद, सोसा और प्राटिनम् ये कुछ जिम गुणके होनेमे अर्ध्व और पधः-प्रवाह हारा उनके द्रव्य विशेष परिचालक हैं। इनमें भी अगलोंको अपेक्षा- परमाणु-समूह ताप प्रवाहित करते है, उसका नाम है पिछलीको परिचालन-शक्ति कुछ कम है। धातुद्रव्योंको परिवारकता। इस तरह के ताप सञ्चालित होनेको अपेक्षा पत्थर और कांचकी परिचालक-शक्ति बहुत कम। परिवाहन कहते हैं। है, तथा कोयला काठ, वर्फ, बाल इत्यादि द्रव्योको परिव द्रग्बों की अपेक्षा वायवोय द्रव्योंकी परिवारक चालक शक्ति और भी कम है। किमी बड़े लोहेंके | शक्ति अधिक प्रवल है। वायु अथवा वायुवत् वत. डण्ड के एक प्रान्तमें अग्नि प्रयुक्त होनेसे दूसरा प्रान्त परिपूर्ण किसो पात्रके नोचे आग जलानेसे अपर कई इतना उत्ताल हो उठता है कि स्पर्श नहीं किया जा अनुसार अर्ध्व और अधा-प्रवाह के कारण समके भीतर सकता; किन्तु किमो प्रज्वलित लकडो जिस ओर जलतो को वायु क्षणकालमें हो अतिशय उष्ण हो उठतो है है उसी ओर अग्निके पार्श्व में हाथ देनेसे भो कुछ और इसीलिये गाठोमे धूममय उष्ण वायु जपर उठती नहीं होता। इसी तरह कोयलेका एक भाग अग्निमय है तथा चारों ओरमे शोतन वायु आ कर उसका हो उठने पर भी अन्य भाग हारा वह सहजमें हो पकड़ा स्थान पूर्ण कर देती है। यही वायु फिर मंगोठीके जा सकता है। कांचका एक भाग अग्निमें गल कर अग्नि-स्पर्श मे उष्ण हो कर जई गामो होती है और फिर द्रव होने पर भी दूसरा भाग जरा भी उत्तल नहीं होता। चारों भारसे वायु पाकर उसका स्थान.अधिकार करती नई, रेशम आदि द्रव्योंको परिचालक शक्ति इतनो है। फलतः किमी स्थानको वायुके किसी भी कारपसे कम है कि यदि इन्हें अपरिचालक कहा जाय तो भी उष्ण हो कर जई गामी होने पर ही चारों पोरसे वायु प्रत्य किन होगी। जिन वस्तुओंको परिचालक शक्ति आकर उसका स्थान अधिकार करती है। इसी कारण कम है, उनके हारा ही पहनने के कपड़े बनाने चाहिये, बाहरकी वायु सूर्य-रपिके स्पश से उष्ण होती है। रवि. क्योंकि ऐसा करनेसे शीतकालमें शरीरका तेज निकल किरगों द्वारा बाहरको वायु उष्ण हो कर आई गामी कर बाहर नहीं जा सकता पौर ग्रोमकालमें बाहरका होने पर उसका स्थान पूर्ण करने के लिए ग्रह पादिसे तेज शरीरमें प्रवेश नहीं कर सकता। कम्बलमें बर्फ । शीतल वायु प्रवाहित होती है और जयदेशसे उण सपेट रखनेसे वह जल्दी गलता नहो, कम्बलको दुवल बायु ग्राहमें प्रवेश करती है। इस प्रकार कुछ कान सक परिचालकता ही इसमें कारण है। भीतरमे बाहर और बाहरसे भीतर वायु प्रवाह प्रवाहित ___ताप-परिवाहन-तरल और वायवीय द्रव्यों के भीतर होते रहनसे अन्तमें बाहर और भीतरको वायु समान हो कर तेल परिचालित नहीं होता, यहो कारण है उष्ण हो जाती है। मलिए गोभकालक मध्यान समय जो किसी जसपूर्ण पावके जपरो भागमे ताप प्रयोग में मकानक दरबाजे और खिड़कियों बन्द रखनो Vol. Ix. 104