पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४२०

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४१६ ताप फुटमे अधिक नोचे भूमिश्मिा प्रभाव अनुभव नहीं ताप है। तापसे अनेक पदार्थ गल जाति है। यह देखा होता . फ्रान्म देशको गधनो पेरेमनगर मान-मन्दिर जाता है जब तक पदार्थोके गलनका कार्य सम्म य रूपसे के ५८ फुट नीचे एक ताम्मानयन्त्र नगा है। जाड़ा गर्मो, समान नहीं हो जाता, तब तक उनका तापक्रम स्थिर और रात, दिन कभी भी उमके भोतरके पार का चढ़ाव उतार ममभावसे रहता है। ताप दिया जाता है किन्तु ताप- नहीं देखा जाता। भूपृष्ठ के मभो स्थानों में कक दर नीचे मानमें उमका कोई लक्षण हो नहीं देखा जाता, इसका एक ऐमा म्यान है जहां गत, दिन, जाडा. गर्मी, कभो कारण क्या है ? ममस्त पदार्थ गलते ममय कुछ साप भो उष्णतामें घटतो बढ़तो नही होतो। उम स्थनके शोषण करते है, किन्तु वह ताप जाता कहां है, और उदय भागमें मौर और अधोभागमें पार्थिव तेज का प्रादः वह लक्षित हो क्या नहीं होता है वह ताप उस पदार्थ : भाव देखा जाता है। इसे निर-ममोषणस्थन्न कहते हैं को सरल अवस्था में रखने में पर्यावसित रह जाता है। जब हम चिर-ममोपणम्यन्नको उष्णता मब जगह एकमी नही पदार्थ तरल हो जाता है, तो उस तापको उस कार्य के है। मामचित्रमें ममोपाखा जो उगाता है, उम है करनेको आवाकता नहीं रहत' । सुतराँ तापमान प्रत्यक्ष निम्नस्थ चिर-ममोष्ण स्थल में भो वहो उगता देखो जाती किया जा सकता है। डमको पहलो अवस्था में अर्थात् है। चिर-समोष्ण स्थलमे जितना नोचे जाया जाय, उतने पदार्थ के तरन्न होते समय ताप अम्लक्षित रहता है, किन्तु हो भौमतन प्रति ६० फुट, १० फारनहीट के हिमावसे यदि वह न होता तो उम पदार्थको सरल अवस्था में वन- उसाको वृद्धि होगी। इमोमे जाना जाता है कि पृथ्वी- में और कोन ममर्थ हो? इस प्रकार अनुमान करने मे को मतहमें कुछ नोचे तापका इतना प्रादुर्भाव है कि उसकी मत्ताको उपलब्धि होती है, आन कर उसे अनु. वहां पर ले जाने पर लोहा गल कर पानाकी तरह हो मितया ताप कहा जाता है। यह और भी स्पष्ट मकता है। किया जा सकता है। देखा जाता है कि यदि आध मेर सूर्य --जिन मच तेजोका अब तक वणन किया है, जल जिमका तापक्रम ८० और आध सेर जल जिमका मोर तेजके मामने ये नितान्त तुच्छ जात होते हैं । सूर्य तापक्रम है, उन्हें एकत्रित किया जाय तो इनके हो तापका आदि कारण है। जी हम ताप और मिश्रणका तापक्रम ४०' होता है। किन्तु यदि पाधसेर प्रकाश पाते है। किन्तु मूर्य ने तप भार प्रकाश कहांसे चणित वफ के माथ जिसका तापक्रम ० है और प्राध- पाया, यह हम नहीं जानते। ताप पोर प्रकाश मम्बन्धी मेर जल जिसका तापक्रम ८० हो, मिनाया जाय तो जितने व्यापार है, सब सूर्य कोसे मम्पादित होते हैं। बर्फ गन जायगा । इस मिश्रणसे जो एकमेर जल प्रस्तुत दोप शिखा और धन की प्रागमें भी सूर्य दो प्रकाश- होगा. उमका तापक्रम • हो होगा। यहां • का मान है। दावाग्नि, वचाग्नि और बिजनोकी अग्नि इन आधसेर बर्फ अपने तापक्रमसे अर्थात् .' से कुछ भो मबमें भगवान भास्कर हो विराजमान हैं। उन्होंने ही मागर अधिक नहीं बढ़ा, तब वह ८. ताप गया कहाँ ? वह को जल का शरीर और वायु को वाष्पीय अाकार प्रदान बर्फ के जल बनाने में लग गया। सुतरां समान परिमाण- किया है। वे ही समुद्र जलको वात रूपमें परिणत के बर्फ के ममान तापक्रमको जनमें परिणत करने के लिए कर मेघ उत्पन्न करते हैं । उन्होंने नवपन्नवोंमे तरु- जितना ताप आवश्यक होता है, वह उतने हो परिमाण लतापोंके सशोभित किया है। वे भी तेजके रुप में प्रकट जलको ८० तक उष्ण कर देता है । तापका यहो परि- हो कर पुनः तेज रूपमें अन्नान होते हैं। उन्होंक पागमन पोर गम काल में समस्त प्राकृतिक व्यापार माग गूढ़ या अनुमितिग्राहा ताप कहलाता है। बर्फ के सम्पादित होते हैं। गलते ममय जितना ताप लगता है उतना हो पधिक अनुमितिप्रत्य ता। जो साप यश शक्ति या तापमान समय उसे गलाने में लगता है क्योकि जब तक वर्फ मे यन्त्र किमोसे लक्षित नरों होता और उसको सत्ताको तापका वह परिमाण बाहर न निकल जायगा तब तक उपलब्धि होती है, उसोका नाम गूढ वा पनुमितिमात्र वह जम नहीं सकता।