पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४२४

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४२० . तापमानयन्त्र नियम सर्वत्र एकमा नहीं होता। जल सम्बन्धमें इस कर देता है । सब बाहरको हवा पेषएके कारण उसे नियम का उन्नजान दे ग्वा जाता है, जो पागे दिखाया बर्तनका पारा क्रमशः नल में बढ़ने लगता है। और जायगा । जो ही दमी प्रसारण गुण के आधार पर ताप- नलो एवं उसका वर्तुलाकार भाग पारदमे पूर्ण हो जाता मान-यन्त्रको मष्टि हुई। यह तापमान कई पदार्यो का है। पारद पमी मम्पूर्ण शोतल नहीं हुवा । ऐसोचवस्था हो मकता है, जिनमें पारद, वायु और सुरासार : Aks. में अपर कहा हुमा नलोका खुला भाग अग्निमें गला कर Hal मबम प्रच्छ हैं। रन तोनाको निर्माणविधि एकमो बढ़ानो, जिससे उसमें पोर वायु प्रवेश न कर सके । म के है । पारेका तापमान मर्यन मिड है, इमलिये उमौका बाद मलोके सम्म र्ण रूपसे शीतल हो जाने पर देखा वगा न करना चाहिये, पहले यह बतलाया जाय कि यह जायगा कि केवल वह वतु लाकार भाग पार नलोका किम तरह बनाया जाता है। एक काँचका नल जिमके थोडामा हिस्सा पारेमे पूर्ण है, बाको रिस्मा शन्य हो बोच में ऊपरमे नीचे तक बाल के बराबर एक छेद रहता गया। है । इम ननका एक भाग खुला रहता है और दूसरा भाग इसे ले कर अब एक तुषारपूर्ण पात्रमें ड,वाओ कुछ प्रसारित हो कर एक गोलाकार वतुल के अनुरूप पहले पहल तुषार जग गलने लगता है। तुषारके मोता है। रम नलका मुंह खुला हनिमे बाहरको हवा. अत्यन्त शोतन होनसे पारा संकुचित हो कर नलोक उममें प्रवेश कर मकाती है। नलो के मध्यभागमें भो वायु निम्न भागमें गिरता है। प्रायः १५ मिनट रखनके बाद है, ननोका व लाकार भाग अग्निम उत्तप्त करने से नलोकं जब पारा नीचे नहीं गिरता, तब उन जगह एक भोतरको वायु गरम हो कर प्रसारित होता है : अधिक रेखा खोचो । जब कभी यह पारट द्रवमाण तुषार या स्थान घेरने के कारण नन्सी के भोसर नहीं रह सकता। ऐसे हो किसी दूमरे गोतन पदार्थो में ड बाया जायगा. मोरास्त बाहर निकल पातो वह सम रेखाक नीचे कभी नहीं गिरेगा। इमके बाद पुम है। हम तरह नलीभीतरको हवा ठगठा होने के तापमान नलीको उबलते हुए पानीक पात्रमें उबा पहले ही उसे एक परिसे भरे पात्रमें डुबायो। नलोके कर १५ मिनिट तक रहने दो, इसमें पारा जितना अपर भतरको हवाले शीतल होत हो वायु संकुचित होनसे छठेग, उस चरम मोमाम एक और रेखा अङ्कित करो। नल के भीतरका स्थान शून्य ( ग्वाली ) हो जाता है । उम जल को कितनी हो भाग क्यों न दी जाय, पारा उमसे ममय बाहरको हवा पेषणमे 3म पात्रक पारेका कुछ ऊपर कभी न उठेगा। अब दो रेखाएं मिलो। पहली. भाग श न्यस्यन्नको र्ण करते करते नलोक वर्तुलाकार द्रवमाण तुषारक ममग मे नीचे गिर पारेको प्रवर्ग- नागमें जा कर पड़ता है। इसके बाद नन्लोक। वहाँमे को चम्म मौमा बतलाती है और दूसरो, खौलते पानो- निकान्न कर पूर्ववत् वर्तुलाकार भाग और नलोका साग में डालनेसे नलीक ऊपर पारेक उत्थानको चरम मीमा हिम्मा पागमें गरम करो। पाग गरम होने लगेगा और व्यक्त करती है। यहां पर यह कह देना जरूरी है कि क्रमशः उचल कर जब वापाकार धारण करेगा, तब खौलत हुए पानीका ताप सब समय एक सा नहीं रहता। मार नलीम तिर जायगा पोर वायुके बचे हुए भागको वायुमण्डलके पेषण ( दवाव )के कारण उममें घटतो वहां से निकाल बाहर कर देगा। तब उस नलोके भीतर बढ़तो होतो है। जो हो मोटो तौर पर यहां यह मान और उनके वलाकार भागमें पारद वापको छोड़ कर लिया गया कि वह एकमा रहता है। अब यह जाना कुछ नहीं करता । उक्त नलोका खुला भाग पुनः पारद गया कि ये दो रेखाएँ दो चरम सोमाए जतलाती है। पूर्ण पात्रमें निमज्जित करो। इस ममय उम नलो में वायु प्रथम रेखा जलका धनोभाष या तुषाराकार बतानेवालो नहीं है; ममम्त भाग केवल पारद वापसे परिपूर्ण पार दूसगे वाष्योभाव बतानेवालो है। इन दोनों के है। वह वाष्प कपणः गोतल पोर संकुचित हो कर सरल बोच का भाग एक मौ बराबर हिस्सोंमें विभक्त करनेसे पारदके रूपमे परिणत होकर मनोका कुछ भाग शन्य शतबोधक शताशिक सापमान होगा। पहलो रेखाके पास