पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४२९

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तापी कुरुक्षेत्र, काशी नर्मदा पादिमें स्नान करनेमे । भैरवो शक्ति, धूतपाप पोर कामपालेबर ; मन्विदेवमें जितमा पुण्य होता है, भाषाढ़ माममें तपतो, निमेषाई मन्त्र खर और परतोखर, गोलाम्बरक्षेत्र में कोटोखर, स्नान करनेसे उतना ही फल होता है। अजपालोखर पोर एकवीरा शक्ति, राघवक्षेत्रमें कर (तःपीख ३।५०) ओर दण्डपाणि ; अमरोष के क्षेत्रमें अवरोखर प्रख तापी नदो के दोनों तट पर १०८ महालिङ्ग विद्यमान वा अखिनोकुमारक्षेत्र में महातोय पोर कातरोखर है, तापोखण्ड में उनका माहात्म्य वर्णित है। तपनमें तपः लिङ्ग, गलाक्षेत्र में गुप्त खर वा गुलेखा, लोमय के मेशा धर्मक्षेत्र में धर्मेश, गोकर्ण में मिहनाथ, पावेतो.म. क्षेत्रमें लोकेखर, तपतो मदो को उत्तरवेदोंमें विशेखर में महेश, च्यवनक्षेत्रमें सुजातीवर, निष्कलङ्ग मुनिक और कामानिक लिङ्ग : पूर्वाक क्षेत्रमें सुरेश्वर. जारदेश, क्षेत्रमें पञ्चशिख लिङ्ग. पुरुरवाके क्षेत्र में नरवाहन लिङ्ग, कामलेश, सम्बरखिर ओर तातो स्थापित तपनेश लिङ्गः बालक्षेत्र में बाल, श्रावणक्षेत्रकै ककोलासङ्गममें क्रोडा. कुमनवम कौरव नामक महानि.मोमक्षेत्र में मोमेश जन- लिङ्ग, पाश्चालमुनि नेवौ पुगहरोकेश्वर जैमिनि मत्रमें कश्वर और मोक्षोखर, कमदाक्षत्र में पटथ्यवर, गवनवमें हरिश्चन्द्र श्वर, गाधिनेत्र में भर्तिग, वैरोचन क्षेत्र में विरो- रामेश्वर, पिगड़े श्वा, दर्भावतोपति ; जरतामारमोन के चनेश्वर, कझोल कूट और गाधोश्वर वह्निने में प्रबुद, मत्रमे और तपतीमङ्गममे तोन नागेश्वर. हम प्रकार मलेश्वर, धुन्धमारेश्वर. कर्कोटक, पद्मकोपेखर और हय. कुल १०८ लिङ्गम्थान हैं । थाइ । ममय इन १०८ लिङ्गोंके ग्रोव महालिङ्ग, खद्योतनाख्यदेवमे कात वोर्याख्यलिङ्ग, नामका पाठ करें। पाठ करने मे मन्यलोकमें पिगम कुनक्षेत्रमें श्रीकण्ठ ओर सुकण्ठ, भृगुक्षेत्र में चन्द्रचूड़, सुधारम-हारा टन होते हैं ; अपुत्रक पुत्र. निधना धन पाशुपत क्षेत्रमें उग्र, तारकक्षेत्रमें तारेश, शशिभूषण क्षेत्रमें पार मोक्षार्थो मोक्ष प्राप्त करते हैं : तापोनदा में खान हम, वशिष्ठक्षेत्र में मुचुकुन्दे वर और कुन्त नक लिङ्ग बुधेश करके पाठ करने मे पृथियो र पम्प ग तो का फल में विमलेखर, कुशमुनि क्षेत्रमें कमन्न और नोलकण्ठ, होता है। इसके भिवा तापोखगह में और भो एक प्रधान पावतीवनमें शान्त ग, कुञ्जर, रोचक, पुष्कर, लक्ष्मेश, तोध का उत्ख है। टुरिश्वर, जामदग्न्येग और भागाप्रद्योतनेश्वर । पूर्व में गोनान दो - यह नटो कूभपृष्ठ मे विनिःमत हई है, वामनश, सुन्दरम सुन्दरेश, राघवक्षेत्र में रामश, नन्दन हममें सानादि करनेसे ब्रह्म नोकको प्राप्ति होतो है। मृकण्डे , शरभङ्ग मुनिक क्षेत्रम उज्ज्व लेखर, युग्मक्षेत्रमें तायोके किनारे गो नानदो के जल में बान करनेसे कुछ महालिङ्ग, परमुक्ति में सुरेखा लिङ्ग और प्रभयागनि. रोग नष्ट होता और उनके मात जन्म तक कुष्ठ नहीं नान्दिकचेनमें नन्देश, नारदक्षेत्रमें व्यालेखर, ब्रप्रक्षेत्र में होता। सिखर, प्रकाशके अपर मतङ्ग क्षेत्रमें गङ्गश्वर, अर्जुन- अक्षमालातोर्थ-तपतोक विभवको देख कर महात्मा क्षेत्रमै अजुनेश, यौधिष्ठिरक्षेत्रमें श्रीकावर, अम्बिकाक्षेत्र- गौतमके हाथ से अक्षमाला गिर गई थो, नभोसे यह में अम्बेश, क्षणाशिवक्षेत्र में कल्मषापह, पञ्चमुखक्षेत्र में स्थान पक्षमालातोथ के नामसे प्रमिह है। यह एक भामर्द केश्वर, कपिलक्षेत्रमें मिहेखर और व्याघ्रखर चतुः प्रधान तोर्थ है। इसमें जो मनुष्य पिणदान और भंजक्षेत्रमें चतुभुजेखर, वृहनदीके किनारे मन्त्र खर सानादि करता है, उनको निगमय पद पोर पितरोंको और भूतेखर, गौतमक्षेत्रमें गौतमेश्वर. नारदक्षेत्रमें गलि- अक्षयाटल होता है। दम सोथ में सङ्गमेखर नामक संथ, इस स्थान पर रत्नसरित्तीरमें श्रीकण्ठके क्षेत्रमें रक्षेश्वर गुन वाम्बक लिङ्ग हैं, जिनको पूजा करनेसे समस्त लिए और षोडशो शक्तिः वरुणक्षेत्रमें प्राचतम और वास- मनोरथोंको मिहि होतो है। वेश; भोम क्षेत्र भीमेश्वर करायवन क्षेत्रमें करने . गजतोर्थ- तपतो के उत्तरकूलमें जहां गौतमोके माथ खर, खनन मुनिक क्षेत्रमें बञ्जनेखर पोर ववकेश ; तापीका मङ्गम इपा, उस जगह यह तोर्थ है। कासपके क्षेत्र में कश्यपेश, भैरवो क्षेत्र में भेरव, मोक्षश्वर, या तीर्थ मनुष्योंके लिये समस्त पापीका नायक है। Vol Ix. 107