पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४३०

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४२६ वापी जो तापीसागरमझममें मस्त्रोक मान करके जरत्कन्य को किनारे अत्यच गिरिवेष्ठित निविड़ जङ्गल है। इस देखते हैं, उनका किमो ममय भो वियोग नहीं होता अगमें नोकालय नहीं है. बाच बोचमें कहाँ दो एक और ओ प्रमाक्रम वा दैववश यहां पा कर मान करते घर अरण्यवाग्गै भोलजातिको झोपड़ियां दोख हैं, वे निरापद हात पार पितगेका तर्पणादि करनसे वे पड़ती हैं। अक्षय होने हैं। कन्दपुराण नापीख. ) यहाँ तापो पाषाणके घातप्रनिधातमे प्रबल स्रोताकार यह तापोको पागणिक कथा है। अब यह नदो धारण कर बहुत कम चोड़ो जगहमे गिर रहो है। इस तपता वा तापतो नाममे प्रसिद्ध है। यह दाक्षिणायक सरोण पथका नाम है 'हमनफान'। इसके बाद हो. गुज- पश्रिमशिका एक प्रधान नदो है।। रात का विस्तृत प्रान्सर पारम्भ हुआ है उक्ता शमें मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में ( अक्षा० २१ ४८ उ० तापतो नदो करों खन चोड़ो और कहीं बहुत कम चौड़ो और देशा० .८२५ पू. में ) समको उत्पत्ति है। हो कर गिरि, दरो ओर निर्जन वनर जि भेदतो हुई मूलताई नगरम (अक्षा० २१४६ २६ उ. पोर देशा. प्रायः ५० मौन त चनो गई है। दाङ्ग नामक जङ्गलको ७८. १८५६ पू०में ) एक पवित्र मोर्थ है। बहुतांका पार कर यह नदा पश्रितमु वो हो कर सूरत जिले में मत है कि मोमे सापतीनदोको उत्पत्ति हुई है। पहचा हा ____ पहले मूनताई नगरमे सुजला सुफला भूमि ऊपर . यहां राजपोपमा के पहाड़को छ'ड़ कर ओर कोई भो प्रबलवेगमे इममे मासपुग पहाडको दो शाखाए' भेटो है। पवत तापतो के मुख पतित नहीं हुआ यहाँसे ७० मोल इमको बाई और मेवाडस्थ चिकलटा पहाट बौर दहिनो चन कर तापतो मागरमें जा मिलो है। इसके मध्य और कालीभीत-गिरिमाला है। प्रायः १५० मोल तक कहीं तो साधारण उवग और कहीं कहीं समधिक शम्य. तापतोनदीको उपत्यका पर तुङ्ग गिरिशृङ्ग चला गया है। शालो कृषि क्षेत्र दृष्टिगोचर होता है। अमरोलोसे ले कर एमा प्रकार सातपुरा पहाड़से नोचेका पार आ कर उमन भ ने मूरत तक तापीक एक बड़ा भारो घुमाव है। स्थलपथम मुगभोर पोर प्रायः ७५ से १०० हाथ नक विम्त त स्रोतः अमगेलोसे सूरत एक कोम की दूरी पर है। किन्तु जल- म्वतीका पाकार धारण किया है। किन्त किमो किमो पथमे जाने से प्रायः ५।६ कोस घूमना पड़ेगा। मूरतसे स्थान पर पानी इतना कम है, कि ग्रोमऋतु में अना. दक्षिण पश्चिममुखो प्रायः ४ मोल तक जा कर खूब चौड़ो हो गई है और सागरमें जा मिन्नी है। याम की पैदल पार हो मकते हैं। रममें दोनों किनारे तापतोको लम्बाई ४५० माल है और प्राय: तीस ऊँचे होने पर भी टापू नहीं है। केवन मुहाने मिवा मत की दोनों तो भाग ढाल और नाना प्रकार के हजार वर्ग मील स्थानके अपरमे प्रवाहित होने पर भो सब जगनाव जापानही महतो और तो क्या इसके हसणगुल्मलताकोर्ण है। मुहानसे १० मोल पर तक ज्वार वढन पर जगह जगह ___ इसके बाद तापतो ग्वानदेशको ऊंचो भूमि पर गई है। यहां पूर्वाश समुद्रपृष्ठसे ७०० मे ७५: फुट ऊंचा पंदन्न पार हुआ जा सकता है । मडानिके पास बहुत तो और टापू है, दमोलिए पातादि तब ममय निरापद नहीं होगा। यहॉमे यह क्रमशः निम्त्रमुग्यो हो कर जा हैं। सूरत बन्दर में जा जहाज पा कर लगते हैं, वे सो मालभूमि सूरत जिलेसे खानदेशको पृथक् करतो है, वहां नदीमे जाते है। पा पहुंचा है। यहां तापतोनदोमे बहसमो शाखाएँ पाखिनसे चैत्र मास तक यहां निवि नतया जहाज निकाली है, जिनमें बाई भोर पूर्णा, बाघर, गिरना, बोरो प्रादि लङ्गड़ डाल कर रह सकते हैं. किन्तु इसके बाद पांजड़ा और शिवा तथा दमिनी पोर स्को. अनेर, पर फिर निरापद नहीं है। मुहान के पास बोच बीच में गावती, गोमई (गोमतो) पोर बला प्रधान हैं। छोटे छोटे टापूसे दीख पड़ते हैं, जिन पर वृक्षणो भी खानदेशमें पहले १६ मोल तक समसल और कषिक्षेत्र के ! दिखलाई देती है। किन्तु स्रोतके समय इनमेंसे बहुतसे अपरमे प्रवाहित हुई है, किन्तु शेष २० मोल तक दोनों | डूब जाते है।