पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४३६

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४३२ वामिल पढ़नस मानम होता है कि प्राचीन द्राविड़ वा तामिल तामिल शब्दको देख कर कल्डवेल प्रादि. विमो देश सागरके किनारे था। किमी भाषाविदुने स्थिर किया है, कि दाक्षिणात्यमें पार्य "द्विजातिमुव्येषु धन बिमा गोदावरी सागरगामगरछत् । उपनिवेशसे पहले तामिल लोग कुछ कुछ सभ्य हुए थे। ततो विपाप्नाद्रहपु रामन् समुद्रमामाय च लोकपुण्यम् ॥' उस समय भी उनके राजा थ, राजगण दुर्भध ग्रहमें (वन ११८४ रहते और छोटे छोटे भूभागका राज्य करते थे। उत्सवमें 'आर्चित: प्रययो भूयो: दक्षिण मलिलार्णवम ।। बन्दो वा गायकगण गायन करते थे । साड़पत्र पर लेखनो तत्रापि बाडिरान्, रौद्रमौलिपिक पि ॥" (अश्व ०:३॥१) से लिवन के अक्षर थे । वे एक ईश्वर मानते थे। जिसको मि• कल्डवेलने द्राविड़ीय व्याकरणमें निग्वा है-.. 'क' अर्थात् गजा करते थे। उनके मम्मानार्थ वे 'को- ममम्त कर्णाटक अथवा पूर्व और पश्रिम घाटक नोचे, इन' अर्थात् मन्दिर बनवारी थे। वे टीन, सीमा और पुलिकाटमे लगा कर कुमारिका अन्तरपस तथा उत्तरी जम्ता के सिवा अन्यान्य समस्त धातुओंके विषयको जानते में वोपनागरके उपकूल त 5 नाभिन्न भाषा प्रचलित है। थे। वे मोसे लगा कर हजार तक गिन सकते थे । ओवश्व, भाषा प्राधारमे सो दाक्षिणात्य मम त दक्षिण शको कुञ्ज, ग्राम, छोटा नगर, नाव, छोटे-मोटे समुद्रयान भो हो द्राविड़ वा ता भल देश कह सकते है। इम म्मय थे। हां. उनका कोई बड़ा शहर वा गजधानो नहीं ता'मन्न देशका रकचा करीब ६०.०० गंगास्न रोगा। थी। उन्हें अन्यान्य मात ग्रहेकि नाम माल म होने पर जातितत्व ।-पावात्य पुरातत्त्वविद न ता मल, तेलङ्ग, भो वे वुध और शनिग्रह का नाम नहीं जानते थे। तोर, कनाही, मलयाली, सुन्न , तोडा, कोटा, गोण्ड़ और कन्ध धनुष, तलवार और फम्मा ये उनके युवास्त्र थे। युद्ध उमणों को द्राविडीय जाति वा उनको गावा माना और कषिक य में उनको बडा प्रानन्द पाता था। वे एक है। किन्तु वचसूची उपनिषदम उक्त जातियों को ट्राविड़ तहका कपड़ा बुनना और रंगना जानते थे तथा कहा गया है, जैसे- मिट्टोका पात्र व्यवहार करते थे । किन्तु उनमें लिखने 'आन्ध्राः कर्णाटकाश्चन गुर्भग दावि स्तथा। पढ़नेको चर्चा न थो। दर्शनशास्त्रको बात तो दूर महारास्टवा इति स्याता: पञ्चते द्रविड़ा स्मृताः॥" रही, व्याकरणका भो कोई नियम नहीं बना सके थे। ( वज्रसू ५६) महात्मा अगस्तासे इनमें विद्याशिक्षाका स्रोत बहा है। मान्ध्र, कर्नाटक, गुजर, द्राविड़ और महाराष्ट्र इन अब वह दिन चले गये। आर्य-सस्पर्श से उनमें पांचों को एक माथ पञ्चद्राविड़ करते हैं। द्रविड़ देखो। आर्य भावोंका मबार हो गया है, किन्तु वाघदृश्य में वह पुरातत्त्ववेत्तानों ने तामिलाका प्राय नहीं माना है। आयेतग्भाव अभा तक चिल्क ल दूर नहीं हुआ है ! इस उनका खयाल है, कि यह भारतको प्राचोनतम अनार्य ममय जहां रुपया है, वह तामिल हैं; जहां बहा घर जालिसे उत्पन हुई एक जाति है। रामचन्द्र जिम मिलता है वहाँ तामिल घुम पड़ते हैं। इनमें पूर्व सन कपिमेनाको ले कर राक्षमराज गवण के माथ युद्ध करने कुमस्कार बहुत कुछ दूर हो गये हैं। इस समय सभी गये थे. सम सेनाके सभी लोग प्राचोन ट्राविड़ वा तामिन कट्टर हिन्द होने पर भो समाजके वाधा-विनोंको परवा जातिसे उत्पन थे। वे उस समय बहुत पसभ्य थे और न कर उच्च शिक्षा तथा उनतिके पथमें अग्रसर हो रहे है। सनको भाषा आर्य जाति के लिये प्रबोध्य थी, इमलिये धर्म । -पूर्व कालम तामिल लोग भूत प्रेतोंको पूजा वाल्मीकिने उनका वानर नामसे उसेख किया है। करते थे। अब भी दक्षिणको तरफ नोच लोग भूतकी किन्तु जैन-रामायण (वा पद्मपुराण) में उत मेनाको पार्य पूजामें आसक्त हैं। उनके मतसे जिन मनुष्योंको पपघातसे पौर सुसभ्य मनुष्याथ बतलाया है। इसका विस्तृत विवरण वा अकस्मात् मृत्यु होतो है, वे हो भन हो कर मनु- नैन-उपपुराणके २य परिच्छेद में देखो। वास्तव में वे वानर थका पनिष्ट करते है। ये भूत अत्यन्त अलिशालो कर पौर मौका पाते ही गरदन पा दबाते। सभी बलि-