पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४३८

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वामिल भाषा और साहित्य-भारतमें जितनी भी वर्णमालाएं तामिल भाषा भी नितान्त प्रप्राचोन नहीं ।। शायद है, उनमें तामिल-वर्णमाला अमम्य है । डा. बुन सके शोर मचन्द्र ने भी यहां वर्तमान तामिल भाषाके प्राचीन मनसे, तामिल-वर्ण माना वत्त लुफ्त, नामक एक प्राचोन स्वर सुने होंगे। बाइबिल के माचोन भागमें हिरम के जहाजम वर्ण मानासे हो उद्भावित है और अति प्राचीनकाल में मलोम'नके पास मयूर ले जानेका प्रसङ्ग है। बाइबिल में फिनोक बगिग कोम लो गई है। किन्तु एम विषम उम अगर मय का जो नाम लिखा गया है, वह माग मतमंद है। वर्णमाला देखो। तामिलभाषा मूलक है। इसके अलावा ग्रोक भाषामें इम भाषाम अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ( दोघ) ए, धान्य प्रादि भारत के बहत प्रयोजनोय शस्यादिक जो नाम श्री, । दाघ ) ओ, ए, और पो ये बारह स्वर तथा क, निखे गये है, और जो पहले पहल भारतमे हो य रोपमें ट, त, 0, र, ङ, अ, ग, म, म, स, य, र, ल, व, ड़, पहुंचे हैं, उनके अधिकाँग नाम हम मंस्कृतभाषामें नहीं नये १८ राजन वर्ण हैं। पात, किन्त तामिलभाषामें वे मिलते हैं। हम भाषामें क, ख, ग, घन चार अक्षरों का उच्चा तमिलभाषा दो प्रकारको है। एकका नाम शेन- रण एकपा है; च, छ, ज, झ, इन चारो का, ट. ठ, ड. दमिर अर्थात् प्राचीन सामिन और दूभरोका कोड़ दमिर द. इन चारोका, त, थ, द, ध, इन चारका तथा प, अर्थात् अाधुनिक तामिल । दानाम इतना पार्थ क्य है, .फ,ब, भ, इन चारों वर्ण का मारण एकमा है । अर्थात् अथात् कि दोनोंको यदि भिन्न भिन्न भाषा कहा जाय तो अत्युक्ति 'क' के रहने पर उममे ख, ग, घ, हम तोनी अक्षरों का न होगी। काम चल जाता है। इसके मिवा श, ष, म, , , , ये वा तो बिल्कल है ही नहीं। मस्कृतभाषामें जमे ___ जनाँके प्रयत्नमे हो तामिनभाषाका उत्कर्ष हा है। आर्य ब्राह्मणगण उक्त दोनों हो भाषामें मंस्कृत शब्द बहमख्यक यताव्यञ्जन हुआ करते हैं, तामिल भाषामें मिला देते हैं। द्राविड़के ब्राह्मण कहा करते हैं, कि वैसे नहीं होते। मिर्फ एट, न्स, ब, म्म, क, च. कुछ ऐम महर्षि अगस्ताने हो विन्ध्याट्रि लङ्घन कर दाक्षिणात्य में और ट क, टप, र क, रच, २५ य्य, ब, ब्व, न ये युक्त- व्यञ्जन देवन में प्रति है। सोन व्यत्रनों का योग सिर्फ मस्कृत-मभ्यता और संस्कृत माहित्यका प्रम र किया था। द्राविड़ और मानवारक लोगांका विश्वास है, कि 'गाई' और 'ध' है। मस्त की तरह ममम्त व्यञ्चम न अगस्ता अब भी जीवित हैं और मनमाचल के पन्नों झोनम तामिल भाषामें जब कोई मंस्कृत शब्द लिम्वा अगम्तादिमें रहते हैं। अब भो कुमारिका प्रतिरोपके जाता है, तब उमका रूपान्तर हो जाता है। जैसे निकट अगस्ता खरकै नाममे वे पूजे जाते हैं। कोई महतका क्षषण शब्द तामिल लिपि में किरहिनन् वा 'किटिनन्' लिखा जायगा। कोई दाविड़ पगिड़त कहते हैं, कि सुन्दर पागडय के ममय- रोपीय भाषाविदों ने शिर किया है, कि तामिन्न में हो अगस्त्य न पा कर तामिन-वर्णमाला और तामिल. भःपा मस्कृतमूलक नहीं है। यदि मस्कृतमूलक होतो, व्याकरण का प्रचार किया था । ऐसो दशामें पाण्डाराज के तो इममें इतने थोड़े अक्षर वा अपम्प ण वर्ण माना सममामयिक अगस्त्यको हम पुराण-वणित. अगत्स्य महो रहती। कोई कोई पालतमूलक द्राविड़ो भाषाको नहीं समझ सकते । सम्भवतः ये अगस्ता नामधागे और हो तामिल ममझ कर उसको संस्कृतमूलक बत नेको ही कोई व्यक्ति थे। सामिलोका यह भी कहना है, कि तैयार है। आधुनिक तामिल भाषाम बहुतसे मस्कृत अगस्त्यने ही उनके पूर्व पुरुषोंको पहले पहल चिकित्सा शब्दोका प्रयोग होने पर भो, तामिल भाषामें लिखित शास्त्र, रसायन, इन्द्रजाल पादिको शिक्षा दी थी। पौर जिसने भी प्राचीनतम शिलालेख पोर ग्रन्य मिले है, तो क्या, बहुतसे पाधुनिक ग्रन्थ भी अगस्त्य के मामले चल गये हैं। उनमें संस्कृतका प्रभाव बिल्कुल नहीं दोखता। इन कारणोंसे मूल तामिलको संस्कृतमूलक कहना मङ्गत

  • बाइविलमें मयूरका 'ट्रकि' नाम लिखा है, यह शब्द

तामिल 'टागै' या 'टूग शन्दसे गृहीत है।