पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४४३

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खाम्बूस ४३९ ताम्ब लके अग्रभागमें परमायु, म सभागमे यश और धारक और उत्तेजक है। सके सेवन करमेमे नि:खास- मधादेश में ली परस्थान करता है। इसलिए ताम्बूल में सुगन्ध पातो है, स्वर माफ होता है पौर मुके दोष के अग्रभाग, म लभाग, और मधादेश को छोड़ कर बाको नष्ट होते हैं। का भाग खाना चाहिये । ( राजनिर्घ ट ) पानका उठल यदि बच्चोंके गुचदेशमें प्रयोग किया ताम्ब लके म लदेशके खाने से व्याधि, अग्रभागके खान- जाय, तो उनकी कोष्टवद्धता नष्ट होती है। पानके पत्ते को से पापमञ्चय, चर्ण पान खानमे परमायुका हास और भिगो कर कनपटिया पर रखनसे मिरका दर्द जाता रहता ताम्ब लकी गिराखानेसे बुद्धि नष्ट हो जाती है। है। गाल और गलेके समाने पर उस पर पानका पत्ता (राजवल्लभ ) बांधनेसे कुछ फायदा पड़ता है। स्तनों में कठिन पोड़ा या पान, सुपारी प्रादिके खाने पर पहले जो रम बनता सूज जाने पर उन पर पानके पत्ते बांध देने चाहिये, इससे है; वह विषोपम, दूसरी बार जो रस बनता है, वह पो: शांत होती है । फोड़े पर पान बांधनेमे, धाव दूषित भेदक और दुर्जर तथा तीसरी बार जो रम बनता है, नहीं होता और भाराम पड़ता है। पानके साथ चूना. वह अमृतके समान गुणदायक ओर रसायन है। प्रत. मुपाग, कत्था और अन्यान्य मशाग्ने मिला कर खांना गव ताम्ब लका वही रस पान करने योग्य है, जो तीसगे भारतको मभी जातियों में प्रचलित है। यह पागन्तुकको बारके चबानेसे निकलता है। ज्यादा पान खाना भी अभ्यर्थ ना करनेके लिए प्रति प्रिय पोर उपादेय उपहार- हानिकारक है। दस्त के बाद तथा भूख लगने पर पान न रूपमें दिया जाता है। नित्य भोजनके उपरान्त भो लोग खाना चाहिए । इदसे ज्यादा पान खानेवालेका शरीर, पान वाया करते हैं। यह परिपाक-कार्य में सहायता दृष्टिकंश, दांत, अग्नि, कान, वर्ण और बलका सय पचाता है। पम्नरोगो के लिए ज्यादा पाम खाना पच्छा होता है तथा अन्तमें पित्त और वायुको सहि हो जाया है। पानका रस गरम करके, कानमें डालनेसे कानका पीब करती है। पौर प्रखमें डालनसे नाना प्रकारके चक्षुगेग तथा मधु __दांतों की कमजोरी और चक्षुरोग, विषरोग, भूछा- या चामनी के साथ चाटनेसे बच्चोंकी बैठी हुई खामी जाती रोग, मदात्यय, आय पौर रक्तपित्त, इनमेंसे कोई भी एक रहता है। हिटिरिया (बेहोशी) रोगमें दूधके साथ पानका रोग होने पर पान न खाना चाहिए । ( भावप्रकाश ) रम सेवन करनेमे उपकार होता है। इसको जड़ जह विधवा स्त्री, यति, ब्रह्मचारी और तपस्वियों के लिए रोली होती है । स्त्रो यदि पानको अड़को वट कर खाने, पान खाना निषिद्ध है। इन लोगों के लिए पान गोमाम तो उसकी गर्भ ग्रहणको शक्ति जन्म भरके लिए नष्ट हो तुत्व है। (ब्रह्मवै०) जातो है । वैद्यगण पानकै रमके माथ कपासको जड़ बट बिना सुपारोके पान नहीं खाना चाहिये। यदि कर होरकचूर्ण को औषधक लिए शोधित करते हैं। कोई सुपारोके बिना पान खावे तो जब तक वह गङ्गा पानका फल मधु वा चासनोके माथ खानसे खासो आता गमन न करेगा, तब तक उसे चाण्डालके घर जन्म लेना रहती है। खागै जमान पर रहनेवालोको पान खाना पड़ेगा (कर्मलोचन ) फायदेमंद है। भोजनके बाद कुल्ला करके पान खाना चाहिए। ताजे पानको पानी में चुभानसे कुछ पीले रंगका दो विहान लोग देवता और ब्राह्मणों को बिना दिये ताम्ब ल तरहका तेल बनता है। एक तो जलसे भारो होता है नहीं खाते। और दूमरा हलका । दोनाम हो पानको सुगन्ध होती है। वंधगम पानके भेषजगुणके बड़े पक्षपाती है। नाना थरके साथ पानका पत्ता गलानसे भाराकिम प्रकारको पौषधोके अनुपानमें पानका रस काम पाता नामका एक तरहका चार निकालता रससे कोकेनको भांतिका लवण बनाया जाता है। सुनतके मतरी-पान सुगन्धित, वायुनिःसारक, साम्ब सकरा (स.पु.) ताम्बलस्य करा: सत् ।