पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४६२

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४५८ तारकास्प-तारकासुर नोक माना जाता था। तारकान स्वर्ण निर्मित पुरका तारकारि (म.पु. ) तारकासुरके शव । अधिकारो था। तारकासुर (म.पु. ) पसर विशेष, एक असुरका नाम। पम ममय तारकाक्ष हरि नामक प्रवल पक्रान्त उमका विवरण शिवपुराणमें इस तरह लिखा है- एक पतने कठोर तपस्या करके प्रजापति ब्रह्मामे एक यह असुर तार नामक असरका पुत्र था। देवताओं- वरके लिये प्रार्थना की, "मैं अपने पुरमें एक तानाज को जीतने के लिये तारकाने एक हजार वर्ष तक घोर प्रस्तुत करना चारतार। सम तालाब जल में जितने तपस्या की, किन्तु तपस्याका फल कुछ न हुअा। तब इसके अस्त्र-निरत बोरगण निक्षेप किये जाय, वे प्रापर्क प्रमाद- मम्तकमे एक बहुत प्रचण्ड सेज निकला। उम तेजमे से पुनर्जीवित और ममधिक बलशाली हो जावें। 'रोमा देवतागण दग्ध होने लगे, यहां तक कि इन्द्र सिंहासन हो होगा" यह कह कर ब्रह्माजी चल दिये । क्रमश: ये परमे खिंचने लगे। इससे इन्द्रादि देवगण अत्यन्त भय अत्यन्त बन्न दपि त हो तोनी लोकमे बहुत ऊधम मचान भोत हुए, और इसका उपाय सोचने लगे। उम ममय लग । देवतापोंने इन आसुरीसे अनेक प्रकारको यन्त्र गाएँ माल म पड़ता था कि अकाल में यह ब्रह्मागड़ लोप हो पायर शिवजीको शरगा लो । शिवजीने उमी माय देव- ' जायगा। ब्रह्माण्डको रक्षा करने के लिये सब देवगा ताओंका प्राधा बन ग्रहण कर त्रिपुरको भेदते हुए उन्हें ब्रह्माके निकट पहुंचे और प्रणाम कर उनमे तारका- मार डाला। (भारत कर्ण ३५ अ०) त्रिपुर देखा। ।.का तपोवृत्तान्त निवेदन किया। देवताओंको प्रार्थना तारकाण्य (म' पु. ) तारकति पाख्या यस्य बहती। पर बल्ला तारकाके ममोप पर देने के लिये उपस्थित तारकान । तारकाक्ष देखो। हुए और उमसे वर मांगने के लिये कहा। तारकातक ( म० पु. ) अत्यति इति अन्तकः तारतम्य तारकासुर ब्रह्माका यह वचन सुन कर बोला, भगवन् ! अन्तकः, ततः। कार्तिकेय। जब आप प्रमत्र है तब कोई चोज अमाध्य नहीं है, प्राप तारकादि ( स० ० ) तारक पादिर्यस्य । पाणिन्य क्त मुझे दो वर दोजिये। पहला तो यह कि मेरे समान गणविशेष, सनात अर्थ में तारकादिके बाद उतच मंमारमें कोई बलवान् न हो, दूसरा यह कि यदि मैं प्रत्यय होता है । तारका, पुष्य, कर्णक, मञ्जगे ऋजोष, मारा जाऊँ तो उसोके हाथमे जो शिवमे उत्पन्न हो।" सण, सूत्र, मूत्र, निष्क्रमण, पुरोष, उच्चार, प्रचार, विचार, 'तथास्तु' कहकर ब्रह्माजी स्वस्थानको चले गये। कुडनस. कगटक, मुसल, मुकुम्ल, कुसुम, कुतूहन्न, स्तबक, वर पा कर तारक भी अपने घरको लौट पाया। मब किसलय, पल्लव, खण्ड, वेग, मिद्रा, मुद्रा, बुभुक्षा, धनुष्था, घसरोन मिलकर उमे गजगहो पर अभिषिक्त किया और पिपामा, श्रद्धा, अंध, पुलक, अङ्गारक, वर्णक, द्रोह. चारों ओर यह आज्ञा प्रचार कर दो कि इस जगत्में अब दोर, सम्व, दुःख, उत्कण्ठा, भव, व्याधि, वमन्, व्रण, किमीका भी शासन प्रचलित नहीं होगा। तारक राज गौरव. प्रास्त्र, तरङ्ग, तिलक, चन्द्रक, अन्धकार, गर्व, पद पर अभिषिक्त हो कर घोर अन्याय करने लगा, विशेष मुकुन, , उत्कर्षण, कुवलय, गध, शुध. सोमन्स, कर देवताओंको अत्यन्त कष्ट पहुँचाने लगा। तब देव, पर, गर, राग, रोमाञ्च, पण्डा, कज्जल, ष, कोरक, दानव, यक्ष, राक्षस, किम्पु रुष प्रभृति सबके सब अत्यन्त कहोस, स्यपुट, दल, कञ्चक, शृङ्गार. अगर, शेवाल, दुःखित हुए। यकुम्ल, वन, पाराल, कला, कर्दम, कन्दल, मूर्छा, इन्द्रादि देवगण निग्टहीत हो कर उसे सन्तुष्ट करने के चंगार, उस्तक, प्रतिविम्ब, विन, तन्त्र, प्रत्यय, दक्षा और लिये प्रधान प्रधान रत्न प्रदान करने लगे। गज ये तारकादिगण है। पन्द्र उच्चैःश्रवा अश्व, धर्म रबदगड, ऋषि कामधुक् तारकामय (स' पु०) शिव, महादेव । धनु और ममुद्र सब रत्न उमे देने लगे। . बारकायण (स• पु० ) विश्वामित्रके एक पुत्रका नाम। सूर्य उरके मार तारकपुरमें प्रखर रूपसे अपनी किरण ( हरिवश २६०) नहीं दे सकते थे, चन्द्रमा भी पभावसे दोनों पक्षों