पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४७१

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तारानाथ तर्कवाचस्पति-चारावाई तागनाथ तर्कवाचस्पति-एक प्रसिद्ध बङ्गाली विद्वान् । पौर दाहानू तालुकका एक प्राचीन शहर। यह पक्षा. १८१२ में वईमान जिलेके कासना प्राममें इनका १८५२ ७० पौर देशा० ७२४१ पू० के मध्य प्रवस्थित जन्म हुपा था। बचपनसे को इनको पढ़नेका बहुत है। लोकसख्या लगभग २०५१। जिनमेंसे पधिकांश शौक था। थोड़े ही दिनों में इन्होंने सस्तममें अच्छी पारसो और वानो है। पारसो विजेता विकाजी मेह- व्य त्पत्ति लाभ की और 'सकंवाचस्पति' उपाधिसे विभूषित रजीका १८२० ई. का बनाया हुपा यहाँ एक मन्दिर है। हो गये। फिर काशो जा कर इन्होंने वेदान्तशास्त्रका यहाँ चावल, नमक, गुड़, महोके तेल तथा सोहको पाम. अध्ययन किया। अध्ययन कर चुकने पर इन्हो ने अपने दनो तथा धान, मछली पौर लकड़ोको रफतनी होती है। ग्राममें चतुष्पाठो खोल दी और नेपालसे सीमम ताराप्रमाण (म.ली. ) ताराणां प्रमाण, ६-तत् । लकड़ी मगा कर उमका रोजगार करने लगे। किन्तु अखिनो प्रभृति नक्षत्रको स्वरूप-निरूपक संख्या। वह दुर्भाग्यवश इसमें घाटा हो गया और ये कर्जदार । सहितामें इस संख्याक विषयमें इस प्रकार लिया है- हो गये। शिखि ३, गुण ३, रस ६, इन्द्रिय ५, अनल ३, शशी १. संस्कृत-कालेजमें ये व्याकरण के अध्यापक नियुक्त हुए विषय ५, गुण ३, ऋतु, पञ्च ५, वसु, पक्ष २, एक १, कालेजक अध्यक्षन इन्हें प्राचीन संस्कृत ग्रन्य छपा कर चन्द्र १, भूत १४, पर्णव ४, पग्नि ३, रुद्र ११, पग्नि मार प्रचार करनको सलाह दी इन्हों ने काउएल साहबकी ८, टहन ३, शत १०० तथा हाविशत् ३२. यह सलाहसे ग्रन्थ प्रकाशन कार्य प्रारम्भ कर दिया और कर्ज सारका प्रमाण है। पश्खिनो पादि नक्षत्रों के साय पूर्व घुका कर निश्चिन्त हुए। इसके बाद इन्होंने शब्दकल्प लिखित तारासयुक्ता है। इनका फल तारों को सख्याके द्रमा तुलनाका "वाचम्पत्य' नामक एक वृहत् अभिधान पनमार हमा करता है। ( वृहत्संहिता : ९८०) सङ्कलित किया। इस कोषके प्रकाशनमें करीव १२ वर्ष ताराबाई- महाराष्ट्रनायक राजारामको ज्येष्ठ पत्नी पौर ममय और ८०००० रुपये व्यय हुए थे। इसके सिवा भारतप्रमिद्य शिवाजीको पुत्रवधू । इन्होंने शब्दस्तोम-महानिधि ( कोष ), तत्त्वकौमुदो- १७०००में सिंहगढ़में राजारामको मृत्य हुई। बाद. टीका, पाणिनिको मरन टाका, धातुरूपादर्श आदि शाह औरङ्गजेबने सिंहगढ़ घेर लिया। गजारामको बहतसे मस्कृत ग्रन्थ लिखे है। ज्येष्ठा महिषी ताराबाईने इस ममय शोक, लज्जा पौर तारापथ (सं० पु.) ताराणां पन्थाः ६-तत् अच् समा- भयको जलाञ्जलि दे कर अपने धर्म, देश और पति- सान्तः। आकाश। राज्यको रक्षाके लिए अस्त्रधारण किया। इस ममय बहुत- तारापोड़ (स० पु०) ताराणां प्रापोड़ः भूषणमिव, ६-तत्। से मराठोंने पौरङ्गजेबका पक्ष भवलम्बन किया था, किन्तु १ चन्द्र, चन्द्रमा । २ चन्द्रावलोकके एक पुत्रका नाम । ये रानो ताराबाई की। ना और उत्साहवाक्योंसे अयोध्याके राजा थे। इनके पुर का नाम चन्द्रगिरि था। बहुतसे महाराष्ट्र-वीरोंने उत्तेजित हो कर पुन: मारा. ३ काश्मौरके एक विख्यात राजा। काश्मीर देखो। बाईका साथ दिया था। तारापुर- बम्बई प्रदेशके खम्बात राज्यका एक नगर । यह पहले ताराबाईने रामचन्द्र पन्य अमात्य, शारजी खम्बात नगरसे ५ कोस उत्तरमें अवस्थित है। नारायण सचिव और धनजी यादवको महातासे १० वर्ष- २ थाना जिलेका एक बन्दर । यह पक्षा० १८५० के बालक ( २य ) शिवाजीको सिंहासन पर बिठाया उ० और देशा० ७२.४२ ३० पू० पर पड़ता है। यह और छोटी सपत्नी गजसबाईको कैद कर रक्ता। खाडीके दक्षिण बैसर स्टेशनसे ३ कोस उत्तर-पश्चिममें १७०० से १७०३ ६० तक पौरङ्गजेबने सिहगढ़ अवस्थित है । खाड़ीके उत्तरमें यह सारापुर छिवनो नाम- अवरोध कर अन्तमें अधिकार कर लिया। गढ़का नाम से मशहर है। यहां लाख से अधिक रुपयेका कारोबार बदल कर 'वकसिन्दबक्सी' (पर्थात् ईखरका दान) नाम होता है। रक्खा गया। तारापुर-चिनचनी-बम्बई के थाना जिलेके पन्तर्गत माहिम १७.५ में मुगसवाण्यात सेनासहित पूमा छोड़