पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कर बीजापुरकी तरफ चल दिये । मुगल-मेना पूना छोड़! १७०७९०में सिन्दखेडा यादव और विखेड़के कर आगे बढ़ो हो था, कि इतनम नाराबाईने शारजी मिन्दियाको कन्याक माथ हाममराहमे महका विवाह नागयगाको मिरगट अधिकार करने के लिए आदेश दिया। हो गया। नाना यौतु की माश औरङ्गजेबने माइको शोध को गहरजो मिगढ़ और बाद में कोल्हापुरम्य पन. शिवाजोको प्रमिह भवानो अमि और अफजलखाँको हाला अधिकार कर है। हममे औरङ्गजेब बहुत ही तलवार उपकार दी। इमो मान्न औरङ्गजेबको मृत्यु दुःखित हए थे। काफिग्वा के 'मन्तावनानुवाच' नामके फारमो इति- ताराबाई पर महाराष्ट्र मात्रको भक्ति श्रद्धा थो । मुगल. हाममें निग्वा है कि, इम ममय ताराबाई महाराष्ट्र मेनाके चले जाने पर ताराबाई पूना अधिकार करने के मनाका हृदय अधिकार कर महोत्भार और महादर्प मे लिए तैयारियां करने लगीं। धनजी यादवन पूनामें मगन-अधिक्कन प्रदेश नटने लगीं। औरङ्गजेब बहत मुगल-मेनापति लोटोग्बो को परास्त कर चाकन अधि: कोशिश करने पर भी इनका कुक्ल बिगाट न मके। कार का लिया किन्तु थो दिन माद लो धजो माह के मगल-बादगाह युद्धोदयोग, अवरोध पार पणिविधानक माथ मिन गये। अब महक वन बहा कुछ बढ़ गया। जितन उपाय रिजलग तारानाको प्रचनामे मना- महारष्ट्वांमें जिन लोगांन म ई .वरुद्ध आचरण महाराष्ट्रकि बलवोय का हाम न हो कर उतनो हो वृद्धि किया. उनका वे मावान लगे। 14 ममय गरजो नाग- हनि लगो। बादशाह जिम तरह मन्य मामन्त गार याने तागबाको नरफमे पुरन्दर-दुग अधिकार किया अमीर लमगवोकं माथ महाममागेही दाक्षिणात्य अव- था। माइन उनको पुर र छोड़ देन क निए प्रादेश दिया, स्थान कर रहे थे, उमौतरह महाराष्ट्र-मेनानायकगण भो किन्तु शरजोन उन आदेश पर कुछ भी ध्यान न दिया जब जहाँ उपस्थित होते, वहीं गजवाजि शिविर और इम पर'माहन शिवाजीको प्रथम राजधानो (राजगढ़) छोन पुत्रपरिजनोंको ने कर महा श्रानन्दमे ममय विकात थे। लो। गरजोन तारबाई : मामन प्रतिज्ञा को थो, कि उनका मारम खच ही बढ़ गया था। न जति हुए। जब तक उनके घटम प्राण रहंगे, तब तक वे उनका स्थानममे एक एक परगना एक एकने बांट लिया। (ताराबाईका ) माथ न छाडगे अब उन्होंने प्रतिज्ञा मगल वादगाह नियमका अनमरमा कर उन परगना- भङ्गको अपेक्षा मृत्य को महस्र गुना य य ममझ कर में एक एक शूर्बदार, कमाइमदार और रमादार प्रादि जलसमाधि अवलम्बनपूर्व क अपने प्राण त्याग दिये । कम चागे नियुक्त हुए । (१) ताराबाई शङ्कर जोको मृत्य में अत्यन्त दुःखित हुई ___ महाराष्ट्री के पुनरभ्य दयमे औरङ्गजैव विचलित हो थों । इम समय बताने उनका साथ छोड़ कर साहका गये थे । विशेषत: सिंहगढ़ के हम्तव्य त ो जाने पर उन पक्ष ग्रहण किया था। को उम दुःखमे कुछ दिन तक पोड़ित होना पड़ा था। १७१२ ई. के प्रारम्भमै ताराबाई क पुत्र शिवाजो को कुछ स्वस्थ इति हो उन्हनि सम्भा जो के पुत्र साहको जुन वसन्तरोगमे मृत्यु हुई । इसमे ताराबाई अपनी राजकोय फिकार खां । माय मिहगढ़ जय करने के लिए भेजा। क्षमता खो बैठौं। अब उन्हीं की अपनो राजमबाई के पत्र जलफिकारने माहको मारफत महाराष्ट्र नामक पास सम्माजोने उनका स्थान अधिकार कर लिया। अब तारा- एक पत्र लिखवा कर भिजवाया कि, 'माह हो महाराष्ट्र बाई और उनको पुत्रवध भवानोबाई दोनों हो बंदो हुई। मिहामनक यथार्थ उत्तगधिकारो हैं। महाराष्ट्र मात्रको म समय भवानीवाई गर्भको थों, यथासमय उनके उनको महायता करना चाहिये ।" रमदक प्रभावसे एक पुत्र हुआ । ताराबाईने बहुत सावधानोसे उसको मिगढ़ जुलाफ कार हाथ आया, पर उनको भो यहो छिपा रकवा, किन्तु इस समय बारमहिला ताराबाई के दशा हुई । शरजोन पुन: मिंहगढ़ अधिकार कर लिया। कष्टकी सोमा नहीं थी। (१)tulit's Muhammadi. | In-toriansi. vial. I. 1.::.-75 ११५८ में साइको मृत्यु हुई। अब तक ताराबाई