पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४७४ वार्मनस-पास ताा प्रमव (म' पु० ) अश्वकर्ण वृक्ष, एक प्रकारका तार्य (म त्रि०) तर कम णि ण्यत् । १ तरणीय, पार थालवृक्ष (राजनि०) होने योग्य । तर तरण देय पात्र । २ तरणार्थ देय सायंचल ( म' लो० ) रसाञ्जन, रमोत। शुल्क, नदी आदि पार उतारनका भाड़ा, उतराई । ताक्षां मामन् (म० को०) सामभेद । (लाटयायान १२६१६) ताधि ( स० पु.) वृक्षभेट एक पेड़ का नाम । नायगा । म'० पु-स्त्रो० ) वृक्षस्य ऋषेरपत्य युवा गांतान ( म • पु. ) तन एव-अण । १ करतल, हथेलो । दित्वात् यत्र गनि फक । वृक्षऋषिके युवा अप्रत्य। तायत तड़-कर्मगि अच् डस्य ल । (क्लो०) २ हरिताल, तायणो ( म स्त्री०) वृक्षस्य गोत्रापत्य स्त्रो वृत्त. हाताल। ३ तालोणपत्र, तेजपत्ते को जातिका एक लोकतादित्वात् स्फ । वृक्ष ऋषिको वज स्त्रो। पड़। ४ दुर्गा के सिंहामनका नाम । ५ करतनध्वनि, ता! ( म० स्त्री० ) बनलताविशेष, एक बनलताका तालो । ६ वह शब्द जो अपने नवे या बाह पर जोरसे नाम । हथेली मारनमे उत्पन्न होता है। ७ हाथियोंकि कान फट- भाग (म त्रि०। पृणस्य पद शिवादित्वात् अण । १ टण फटानका शब्द। ८ लम्बाई को एक माप, चित्ता । मम्बन्धो, जो घाससे बना हो । २हणजन्य वकि, घाम्मे ताना।१०मजोग या झांझ नामका बाजा । ११ चरम उत्पब अम्नि। मृणात् सक्रियात स्थानादागतः शुगिड़ के पत्थर या कांचका एक पला । १२ विल्वफन्न, बन्न ।१३ कादि० अण । ३ विक्रयरूप अर्थ स्थानजात कर, वर तलवारको मूठ।। ४ एक नरक । १५ महादेव । १६ वृक्ष कर या महसून जो घास पर लगाया जाता है। विशेष, ताडका पड । ताडशब्द देखो । १७ पिङ्गलम ढगणक नार्णक (त्रि.) टणानि मन्यम्मिन् छण कुक च दमरे भेदका नाम जो एक गुरु और एक लघुका होता तोण कोयास्तस्मिन् भवः विल्वकादित्वात् छ मात्रस्य है-5। लुक । तृणयुक्त देशभेद, वह स्थान जहां घाम बहुत १८ गोतके काल ओर क्रियाका परिमाण नाचने होती हो। और गार्नमें उसके काल और क्रियाका परिमाण जो ताण कर्ण (म० पु० स्त्रो० ) मृगकण स्य भूपेरपत्य बोच बीच में हाथ पर ठोंक कर मूचित किया जाता है। शिवादित्वात् अया । सृणाकण ऋषिके वंशज। यह स्वर इतने समय तक गाया जाता है, हम काल तक तार्ण विन्दवोय ( म. वि. ) तृणविन्दः देवता अस्य तणा- विलम्बित होता है, इम काल तक द्रुत है. इत्यादि विन्द छ । छ च । पा ४।२।२८ । णविन्द के उद्देश में जो विषयों तथा अगुनियाँक आकुञ्चन और प्रमारण आदिके दिया जाय। हारा गोत और नृत्यादि विषय काल और क्रियाक परि- तायन ( म० ए० स्त्री० ) टणस्य क.पर्गोवापना नड़ा. माणका नाम हो ताल है। गाने और बजानमें उसके दित्वात् फक । गण नामक ऋषिके वशज। काल और क्रियाकै परिमाणविशेषको ताल कहते हैं। तात्य ( म० त्रि. ) टतोय एव स्वार्थ प्रण । टतोय । क्रियाके द्वारा प्रखगड दगडायमान काल के कन्दोमयायिक पादन्यामा परिमाणविशषका नाम भो ताल है। तातॊयसवन ( स० वि० ) तृतीय सचन मम्बन्धीय। महादेव और पार्वतोके नाचनेसे तालको उत्पत्ति तार्तीयाहिक ( म० वि०) सतीय दिन सम्बन्धीय, जो हुई है। महादेवन तागडव अोर पाव तोन लास्य नृत्य तोसरे दिन होता हो। किया था । ताण्डवका'ता' और लास्यका 'ल' इन दो तामा॑यिक (म० वि० टतोय एव स्वार्थ ईकक । दृतीय, अक्षरोंमे "ताल" शब्द की उत्पत्ति हुई है। मौसरा। (मधुसूदन, अमरटीकायां भरत ) ताप्य (म'क्ली० ) प-ण्यत् । कृपा नामक लताजात गोत, वाद्य और नृत्य, ये तीनां ताल हारा प्रतिष्ठित वरभेद, टपा नामक लतासे बना हुमा वस्त्र । इसका हुए हैं। इसके दो भेद है-माग ताल और देशो तान । व्यवहार वैदिक कालमें होता था। भरतमुनिक मतानुसार मार्ग ताल • प्रकारका है: