पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४८७

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पालना-पालनवमी निवासो। ३ एवं यदुवं गौ राजा। इनके पुत्रोंने राजा पुष्पालि देकर प्रणाम करें। तत्पशात् एक फलहाथमें सगरके पिता पसितको राज्यथ त किया था। ले कर व्रतको कथा सुननी चाहिये। व्रतकथा इस प्रकार है-- तालजटा ( सं स्त्रो० सालस्य जटेवा व तत् । तालहान- रुक्मिणी उवाच- का जटाकार पदार्थ विशेष, ताड़ के पेड़को जटा । केनोपायेन भगवनारी दुःन विन्दति । तालदण्डा-उड़ीमाको एक नहर। इसको लम्बाई २२ सौभाग्यमर्थसौन्दर्य पुत्रपौत्रादिक लभेत् ॥ मोलको है। यह कटक शहरसे महानदीको प्रधाम इहलोके महत्सौख्य परलोके परां गति। शाला में मिल गई है। नोकाके जाने माने तथा खेतो- तन्मे कथय तत्त्वेन सद्भावो यदि ते मयि । में पानी सौंचने के लिये यह नहर काटो गई है। श्रीकृष्ण उवाच- तालध्वज (सं० पु.) सालो ध्वनो यस्य, बहुव्रो०। १ बल- अणु देवि महाभागे सौभाग्य येन जायते । राम। २ पर्वतविशेष, एक पहाड़का नाम । ३ वह पुत्रपौत्रादिकं नित्य धनधान्यविवर्द्धनं ॥ जिसको पताका पर ताड़के पेड़का चित्र हो। इहलोके महत्सौख्यं परलोके पर्ग गति। तालध्वजा ( म स्त्रो०) तालस्तालदेव ध्वजचि यस्या, तालनवमीव्रतं पुण्य त्रिषु लोकेषु विश्रुतं ॥ बहुव्रो०। पुरोविशेष, एक नगरका नाम। कुरु देवि प्रयत्नेन सर्वकामसमृदिद। तालनवमी ( स० स्त्रो०) तालोपहाग नवमो। १ भाद्र भादमासि सिते पक्षे नवमी या शुभा भवेत् ॥ शुक्लानवमो, भादो सुदो नौमीको तालमवमो कहते हैं। तस्यामारभ्म कर्तव्य नव वर्षाणि सुव्रते। "मासि भाद्रपदे यास्यानवमी बहुलेतरा । कृत्वा च तद्गत देवी त्यजेत्तालस्य भक्षण। तस्यां संपूज्य वे दुर्गा::श्वमेधफलं लभेत् ॥" तालस्य व्यजनाद्वायुर्नकर्तव्य: कदाचन । भाद्र मामको शुल-नवमोको दुर्गाको पूजा करनेसे अष्टम्यां नियमीभूत्वा प्रातरुत्थाय सत्वरं ॥ अश्वमेधका फल होता है। स्नान कृत्वा नवम्याच व्रतसंकल्पमाचरेत् । २ व्रतविशेष, एक व्रतका नाम । भाद्र शुक्ला नवमी- तालगावमारोप्य तत्र गौरी प्रपूजयेत् । को सौभाग्यको कामना करके स्त्रियां साल या ताड़का पाथादिभिः समभ्यर्च नवेद्य नवतालक। उपहार दे कर इम व्रतका अनुष्ठान किया करती है, म मम्पूणे नवमे वर्षे प्रतिष्ठामाचरेत् ततः॥ लिए इसका नाम तालनवमो पड़ा है। यह व्रत ८ वर्ष फलानि नवदत्वा च तालस्य बलकोत्तमे । तक किया जाता है। इसमें प्रारब्ध वर्ष से ले कर नवम वर्ष तक प्रतिष्ठा को जाती है। पिडखजूरजाती व एला चैव हरीतकी ॥ नारिकेलं तथा पूर्ण रम्भा पक्वफलान्वित। व्रतप्रयोग-पहले दिन संयत होकर रहें, प्रतके दिन तत्र मुख्य प्रदातव्य तालस्य फलमुत्तम। प्रातःकालमें नित्यक्रियादि सम्पन्न करके स्वस्ति-बाचम वस्त्रेणाच्छाय दद्यात्तु डल्लक दक्षिणाम्वित । पूर्वक संकल्प करें,-"श्रोविणुन मोऽद्य भाद्र प्रतिष्ठा प्रदातव्य कांचन रजत तथा ॥ मासि शतपक्ष नवम्यान्तिथावारभ्य अमुक गोत्रा श्रो- व्रताहनि तु भुजीत निरामिष सताळकं । पमुको देवी मौभाग्य-मौन्दर्य-पुत्र-पौत्रादि नित्यधन एवं कृते न सन्देह: पूर्वाञ्च फलं लभेत् । धान्य विवईने लौकिक महामुख परलोकाधिकरणक-परम कथित तव यत्नेन कुरुष्प व्रतमुत्तमं॥ गति प्रालिकामा नववर्ष पर्यन्त तालनवमो व्रत- रुक्मिणी उवाच- मह करिये ।" इस प्रकारसे सकल्प कर सूर्यादि पञ्च प्रत केन कृत देव मर्त्यलोके प्रकाशितम। . देवताको पूजा करें। पोछे ताडपत्रसे गौरोका पावा. तम्मे कथय तत्वेन व्रतमेतत् सुदुर्लभम् ॥ हन कर षोडशोपचारमे पूजा करें और नवयुग नैवेष श्रीकृष्ण उवाच- प्रदान करें। "नमो गौर्यै नमः" इस मबसे तीन बार रम्ये तु यमुना कंसस्य तावृन्दके।