पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४९५

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तालु-पालुपाक चौनो ॥ ( प्राधा ) सेर, उन सबको मिना कर मोदक गेगळे अनुमार पत्रकार्य करें। तालुपाक रोग पित्त प्रस्तुत करना पड़ता है। चीनोके समान जलमें सबको नायक क्रिया करनी चाहिए। तासुम्योफ से खेद, यथाविधानसे पाक करने के बाद गोली प्रस्तुत करते है। और वायुधान्तिकर क्रिया करें। जो मोदकको अपेक्षा कुछ छोटी होनी चापिये। इसके ( सुश्रुत चिकित्सितस्थान २१.) सेवन करनेमे कास, ज्वाम. परुचि और लोहा इत्यादि ' तालुक (सलो०) साल स्वार्थ कन्। १ तास । ममस्त रोग जाते रहते हैं। । २ ताल का एक प्रकारका रोग। तालुस को०) तरन्तानम वर्णा रति र अण रस्य नश्च । तालुकण्टक (म' पु.लो.) एक रोग जो बच्चोंके साल में बोरश्च ल:। उण १५ । जिहन्द्रिय के अधिष्ठानका स्थान, | होता है। इसमें ताल में कोटेसे पड़ जाते है और साल मुंहके भोतरको जपरी छत जो ऊपरके दातोंको पंक्तिमे ! धंस जाता है। इसमें बच्चोंको पाले दस्त भी पाते। लगा कर कौवा (घांटो) तक होतो है. ताल । पर्याय-तालुकदारी ग्राम-वाई एक ग्राम । वयानुक्रमिक बन्दो- काकुद, तालुक । वस्त के अनुमार सक्त प्रामोंका राजस्व गवर्मेण्ट तथा ___ मुहमे ताल निर्मित्र हा है. उममें जिला उत्पन्न तालुकदार पापसमें बांट लेते हैं पौर तालुकदारको ग्राम- हुई है। इममें नाना प्रकारके रम उत्पन होते हैं, जोभ के शासन तथा व्यवस्था के सम्बन्धमें कई एक निर्दिष्ट उनको ग्रहगा करतो है। काय करने पड़ते हैं। जब कभो तालकदास्पद पपने विराट पुरुषका ताल निभित्र अर्थात् पृथक रूपमे कतव्य कार्यासे मुख मोड़ते हैं, तब गवर्मेण्ट उनके हाथसे उत्पन्न होने पर लोकपाल वरुण अपने गोंमें जिला अधिकार छीन लेती है। किन्तु गजस्वका हिस्सा देती माय अधिदेवतास्वरूप उसमें प्रविष्ट हुए । (भाग० ३३६४१) हैं। इन ममस्त ग्रामीको तालुबदारो ग्राम कहते है। मालुगत रोग होने पर उसका प्रतोकार सुश्रुतमें रम राजपूत, कोलि और कुशवतो मुसलमानों में ही इस तरह- प्रकार लिखा है-गलगगिडकारोगमें अंगूठे और दूसरो को तालुकदारी देखी जातो है। उंगलीको सटा कर गलगण्डिकाको खोंचे और जोम तालुका ( सं स्त्री. ) ताल को दो माड़ो। अपर रख कर उमे मण्डलाग्र शस्त्र द्वारा छेद दें : इसको तालुक्ष्य (म पु-स्त्री०) सलुतोलापत्य यज । अल्पांश वा पूर्णा शमें नहीं छेदें और न खींचे, किन्तु १ नलुक्ष ऋषिके गोबज । (खो०) लोहितादित्वात् ष्फ एकाशको छोड़ कर तीन बश छेदें। अत्यन्त छेदन पित्वात् डोष । २ तालुक्ष्यायणी। करनेसे छेदन के कारण मृत्यु हो सकती है। होनच्छद तालुजित । स पु. ) तालु एव जिज्ञा यस्य, बहुवी। होनेसे शोक, नालास्राव, निद्रा, भ्रम और तमोदृष्टि ये १ कुम्भौर, घड़ियाल । इसके जीभ नहीं होती। यह तालसे सब उपद्रव होते हैं। इसलिये दृष्ट कर्मा और चिकित्सा- ही रसास्वादन करता है। इससे कुम्भोरका नाम तासुजित विशारद वैद्योंको चाहिये, कि गलगण्डो रोगमें छेदन पड़ा है। २ पालजिश, गलेका कोवा ( nvula)। करके नीचे लिखो प्रक्रिया करें। मरिच, पतिविषा, तालुन (स० वि०) तलुनस्यापत्य सलुन-पत्र । उत्सादिभ्योऽ पाठा, वच, कुड़ और शोनवृक्ष, इनका काथ वा चणं न । पा ४८६ । सलुन सम्बन्धोय । मधु और मैन्धव लवणकै माय प्रतिमारणमें प्रयोग करें। तालुपाक (संपु० ) सुश्रुतोता तालगत रोगभेद, एक पच, अतिविषा, पाठा, राम्रा, कुटको पोर नीम इनका ताल को बोमारोका नाम । इस रोगका विषय सुन्वतमें इस काथ कवलग्रहमें प्रयोजनोय है। इन दो, दन्तो, सरम्न प्रकार लिखा है : ताल गत रोग ८ प्रकारका है, जैसे- काठ, देवदारु और अपामार्ग, इनको पोस कर बत्तो गलण्डिका, तुण्डिकेरी, अधष, मासकच्छप, अर्बुद,. बनावें और सुबह शाम उसका धूम्रपान करें। इसमें मांमसलात, ताल पुप्पट, तास शोष पौर साल पाक। क्षारयुक्त मूगका जस खाना चाहिये। ___ोपा चौर रसहारा तान्न म खमें वायुपूर्ण वस्तिकी प्रदूष, तण्डिकेरी, मैसलात और तालुपुष्प टरोगमें तरह (स्कोस मशककी भांति ) दीर्घ सबत योफ हत्या