पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५००

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वाया-तिकानी बादशाहने शिल्पकार्य राजाको बब भड़कोनो मनका पेड़ । तस्येदं पण । २ ससम्बन्धो। समबोर' दो हैं : वेगगाम और रेशम कपडाँका निरोतासुनो (मत्रा) सासुन स्त्रियां डोप । शनिमित क्षण कर रहे हैं । व नग ता गमि भार ढोनवा ने जन्तुप्रांमखला. मन को डोरो। को प्रतिमूत्तयां है , फिर एक प्रकार के तामें वंगा- नाकय (म. क्ला. ) तस्करस्य भावः तस्कर था । राज मिहामन पर बैठ कर गान सुन रह वजोर तकरता, चोरी। गायक बार वाटकाको तदबोर कराई है। अनिष्ट तामान्द्र मलो०) सामभेद । साशाम गायक और वादकाकी पतिमूप्ति चित्रित हैं। ताम फा अन्य ) तोभो, तिमपर भा, फिर भो। अार एक प्रकार का ताश है जिममें रोप्यगन प्यमुद्रा गामीरपुर १ बङ्गालका एक विख्यात परगना। यह वितरगा कर रह है। वजोर दानका तदारुक कर रहे हैं दिनाजपुर जिले में अवस्थित है । दमका परिमाणा लगभग शप ताशर्मि प्यमुद्रायन्त्रक कामचारियों को तमधार ७६२ वर्ग बोघा है। यह परगना केवल एक जमो दारो है। एक दूमी प्रकार : तागमे अमिराज तनवार चना रहे है। वजोर पायुध गार का तदारुक कर रह हैं।। २ राजसाहो जिने के अन्तर्गत एक विख्यात जमा अन्य दग ताशाम आयुधागार के कर्मचारियों को प्रति.. दागे । यहाँ के अमो दााने वङ्गादेगम विशेष ख्याति प्राम मूर्तिया चित्रित हैं। ताजपति - राजा राजचिह्न प्रदा: | को है और गवर्मेटमे उन्हें उपाधि भी मिली हैं। जमो- कर रहे हैं, वजारको पोढ़ा दिया है, पोढ़े में भी गजनि । दार वारेन्द्र श्रेग।के भादुड़ोग्रामोण ब्राह्मण हैं। है। कोतदामपति-गजा हाथो पर और वजोर बन्नगाड़ो ति (म० अय.! इति बने । पृषा माधुः । इति शब्दाय । तिक (म0पु0) तिक-क । कृषि भद, एक ऋषिका पर जा रहे हैं। अन्यान्य ताणोंमें काई भृत्य ता जैठा नाम। हमा है, कोई शगव पो रहा है, कोई गान कर रहा तिककितवादि ( म०पु. ) पाणिनिका एक गण | तिक है और कोई देवताको उपामनामें हो मम्त है। किसव परभण्डोरथ, उपकलमक, फल कनरक, वक पाईन- अकबरा में लिखा है, कि बादशार प्रक नरव-गुदपरिगाह उन्मककुभ, कम्तहगान्तमुव, उत्तर बर जिम सागसे खेलते थे, उममें बारह संग थे और शलट, क्षणाजिनवाण सुन्दर, भ्रष्टक कपिष्ठल पोर १.४४ पत्ते रहते थे । भबुन्न फजलन उन मच ताशाको | अग्निवेशदशेरुक ये शब्द तिककितवादिगण-भुत है। भारतवर्षसे हो प्राप्त किया था। वे सब ताण यदि भारत- ' कहो (हि. स्त्रो०।१ वह जिममें करिया हो । २ वर्ष के न होते, तो उनमें भारतोय नाम नहीं रहता। तोन तान रस्सियोंको एक माथ लेकर चारपाई आदिको पहले हर एक रंग के केवल बारह हा पत्ते होते थे । बुनावट। 'गुलाम' तो पाधान्य देशोंकी नई सृष्टि है। आजकल | तिकादि (मपु.) पाणिनिका एक गण । अपत्य जो ताश खेले जाते है, वे युगेपमे हो पाते हैं। अथ में तिकादि शब्दके बाद फित्र होता है। तिक. दशावतार ताश देखो. कितव, मजा, वाला, शिखा, उरस, गाव्य, मधव, ताशा ( अपु० ) एक प्रकारका बाजा जिम पर चमड़ा यमुन्द, रूप्य, ग्राम्य, नोल, अमित्र, गोकक्ष, कुरु, देवरथ, मठा हुआ रहता है। इसे गले में लटका कर दो पतली तैतिल, ओरस, कौरव्य, भोरिकि, मोलिकि, चोपत, चेट- लकडियांस बजाते है। यत, शोकयत, सै तयत, ध्यानवत्, चन्द्रमस, शुभ, गङ्गा, ताष्ट्र ( म. वि. ) तष्ट -ण । विश्वकर्माका बनाया हुआ। वरण्य, सुयामन्, पारब्ध, वाधक, स्वल्प, वृष, लोमक, सासला (हि. पु. ) भालुपांक गलेको वह रस्मो जिम उदन्य पोर यन्न इन शब्दको लेकर निकादिगण बना है। पड़ कर कलन्दर उमे नचात है। तिकाना (Eि स्त्रो. ) एक प्रकारको तिकोनो लकड़ो तामार (प. स्त्री० ) प्रभाव, गुण, अमर । ओ पहियेके बाहर धुरोके पास पहियको रोकामेके लिये तासन(स.पु.) तसवाइलकात उन ।१शणवृक्ष नगा होती है।