पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५०१

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तिकीय-विक्तगन्धा तिकीय (सं.वि.) तिक-छ । उत्करादिभ्यश्छः । पा ४२०) तितरस छेदन, रुचि, दोषि और शोधनकर एवं तिकके सबिहित देशादि, तिकके पासका देश। कगड, कोष्ठ, कृष्णा, मृच्छ और ज्वरशान्तिकारक.म्त य. तिकुरा (Eि पु०) फसलको तौम बरावर राशि, जिनमेसे शोषक एवं विष्ठा, मुत्र, केद, मेद, बसा और पूयघोषण- एक राशि जमींदार लेते हैं। कर है। ऐमा गुगावि शष्ट होने पर भी अधिक मात्रा तिकोना (हि. वि. ) १ त्रिकोणायुक्ता, जिममें तोन कोने में सेवन करनेमे शगेर स्यन्दरहित हो जाना घोटनेको हों। (पु० ) २ एक नमकोन पकवान । शक्ति घट जाती, हाय पायों में आक्षेप होना तथा शिरः तिकोनिया (हि.वि. ) तिकोना देखो। शून, भ्रम, ताद. भंद, छेद और मुखमें वेरस्य उत्पन्न होता तिको (हिं स्त्री । तोन बूटोदार ताशका पत्ता। है । अमलताम गुरुच, मजोठ कनेर, हन्दी, इन्द्रयव तित (म पु० ) तेजयति तिज वाहुलकात् कतरित। दामादो, वरुणस, गोखरू, मतपणे, महतो. भट १ रसभेदः छ: रसमिमे एक वोसा रम । (को०) २ पप कट या, मूषिकपर्णो, निसोथ, घोषालता. कर्कोटक, कार टकौषधि, पित्तपापड़ा। ३ सुगन्ध । ४ कूटजवृक्ष। ५ बेल्लक ( करेला ), वाताकु, करीर, करवोर, मालतो, वरूग वृक्ष । इन मब वृक्षोंमें तोता रस अधिक रहनेके शाङ्ग हुलो, अपामार्ग, वना, अशोक, कुट को, जयन्तो, मारण इनको गिनतो तितमको गई हैं। (त्रि. ) तिक्त ब्राह्मो, पुनर्गवा, कृथि कालो और ज्योतिष्मतो लता पादि मयता, तोता रसवाला । ७ तितारमवत्, तोतारमके तिला वर्ग के अन्तर्गत है। इनमें पटोन और वार्ताकु समान। उलष्ट है । (म त सूत्र. ४२ अ. ) इम रसके विषयमें सुश्रुतमें इस प्रकार लिग्वा तिताक (सं०प०) तिन तिकारमेन कायति कैक वा तिता है-पाकाश, वायु, अग्नि, जन ओर भूमि इन पञ्च- सजाया कन् । १ पटाल, परवल। २ चिरतित, चिरा भूतोंमें उत्तरोत्तर एक एक कर के बढ़ कर शब्द, स्पर्श, यता । ३ अषणदिर, कालाखैर। ४ इन दोरक्ष । ५ तिक्त रूप. रस और गन्ध ये पांच गुण उत्पत्र होते हैं। अत- रस, तोता रम। ६ निम्बवृक्ष, नोमका पेड़। ७ कुटज एव रम जलीय गुणसे निकला है । एक दूपरेमे समग वृत, कुरैया। (वि.) तितरमयुक्त, जिमका रम तोता रखता है, प्रानुकूला है और एक दूमरे से मिल कर सब हो। भूतोंके सब अंशों में मिला है। लेकिन वह उत्कष्ट पोर तितकन्दिका (स स्त्रो० ) तिक्तरसप्रधानः कन्दो मल अपकष्ट के भेदसे ग्रहण किया जाता है। सोऽस्त्यमा तिताकन्द-कन्-टाप, रत्व । गन्धपत्रा, बन. ___ जलोय गुण मम्भ त वह सप तया पोर मब भूतांक कचूर, बनावट । साथ मिल कर निदग्ध हो जानेसे ६ प्रकारों में विभक्त हो तिजका ( स० स्त्रो० ) तितो न रसेन कायति कैक टाप । जाता है। हो छ रम हैं, जिनके नाम क्रमशः मधुर, कट तुम्बो, कड़, कद्द । इमक संस्कृत पर्याय-इक्ष्वाकु, अम्ल, लवण, कट, तित और कषाय है। विशेष विवरण कट,तुम्बो. तुम्बा और महाफना है। इसके गुण-शोत. रसमें देखो । वायव्य और प्राकाश गुणके अधिक रहनसे वोय, हृदयग्राहो, तितरथ कट विधाक तथा पित्त, तित रस उत्पन्न होता है। किसी किसो पण्डितका काम, विष, वायु और वित्तज्वरनायक । (भावप्र०) कहना है, कि जगत्का अग्निसोमोयत्व प्रयुत रस दो २ काकजना, चकमेनो। ३ करजलता. कजा । प्रकारका है.--प्राग्नेय और मोम्य । मधुर, ति और ४चुञ्च शाक । सवाय सौमा है एवं कट. अम्ल और लवण पाग्ने यो तितकाण्ड ( स० पु. ) भूनिम्ब, चिरायता। कटु, तिल और कषाय लघु हैं। सोम्य का अय' शोतन सिताका रहा ( म० स्त्री०) कट का, कुटको । |ति कोषातको (स. स्त्री० ) तिक्तघोषा, कड़ई तरोई। जिस रमसे गले में ज्वाला, मुखमें वैरसा, पबमें रुचि तिक्तगन्धा ( स०सी०) तित: गन्धो यसा, बहुबौ । १ पोरहो , उसे सितारस कहते है। वराहकान्ता, वराहीकन्द। २ गजिका, मफेद सरसों। Vol. IX. 125