पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५०८

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५०४ तिचिर-तिथि वे तनिक भी भीत वा विचलित न हो कर इस सुशिक्षित एवं हिला, विदोष, खास, काम और वरनाशक है। अङ्गारेजी सेनाके साथ भिड़ गये। पहले दिन उन्होंने गोर तोतरमें उससे कुछ अधिक गुण है । ( भावप्रकाश ) जितनी भो अङ्गारेजो सेना नष्ट की थो उनके मृतशरोर २ यजुर्वेदको एक शाखाका नाम । ३ भागविशेष, वाम के किले के बार जचिह्नम्वरूपमें रख दिया था। एक सपं का नाम । ४ यास्क मुनिके एक शिष्य । इन्होंने तितमोर के बहुम व्यक लोगों को मार डालने को तोतर पक्षो बन कर याजघरकाके उगले हुए यजुर्वेदको लेफ्टनेण्टको जरा भी इच्छ न यो। हम कारण उन्होंने चुगा था। भागवत में इसका विवरण इस प्रकार लिखा तितुमोको अात्म म गण करने के लिये करना भेजा। है-यजुर्व दसहिताके जाननेवाले वैशम्पायन के शिष्यों कित्तु निरामरने उन दूतको हो मार डाला। सेनापति का नाम अध्वर्यु था, और ब्रह्महत्याजनित पापक्षय विद्रोहिय को डान, लिये ग्वाला तोरको अावाज पाधन करने तथा अपने गुरुके अनुष्ठेय व्रतका आचरण को। इमों परन्ने हो बाम के किला चार्ग नां पामे उनका दूसरा नाम चरक पड़ा । उस व्रताचरणके चार कमाई व दो गयो श्री अब गम ग्वाला अावाज मम ध याज्ञवल्का नामक उनके एक दूमरे शिष्यने कहा, होता देख मुमलमानोंने ममझा. कि गया में फकोर हो 'भगवन् ! दून अल्प मार गिन्यांक आचरित व्रतहारा उनके सब गो ने निगन रहे हैं, जिममे ग्वालो आवाज आपका क्या होगा? मैं इममे सुदुथर व्रताचरण करके मात्र निकलती है। इस पर वे मन के मब एक स्वरमे आपको पापमे विमुना करूंगा .” यह सुन कर उनके चिल्ला उठे, 'हजरतने गोला ग्वा डला' । यह करते हुए गुरु वैशम्पायन काधने अधोर हो उठे और बोले 'याज. वे एकबारगी अगरेजो सेना पर टट गई। तब मेनःपतिने वत्का ! तुम मेरे शिष्य हो कर ब्राह्मणों को निन्दा करते वाध्य हो कर गोला चलाने का इक्म दिशा दमका हो ; इमलिये तुमने जो कुछ मुझसे मोला है उसे परि फल यह हया, कि बांस का किला तहम नहप हो गया त्याग कर दो और यहां से दूर हो जाओ।" तब देव. और तितमोर तथा उमके कितने दो अनुवर जहां तहां गाके पुत्र याज्ञवल्का पढ़े हुए यजुर्वेदको वमन कर मर गये। बड़े वचे अनुचर कैट कर लिये गये। व से चले आये। इसके बाद मुनियाने उम उगने हुए बहतसे जान ले कर भाग गये। मिनु अङ्गर जी में नान यजुग गाको देखा और उन्हें पान : लिए तोतर पक्षी इन हतभाग्यांका पोछा कर पशुपतिया को तर उनक बन कर उम यजुर्वेदको चुंग लिया। तभोसे उस रमः शिकार किया। कोदे तो प्राणभयसे बांस के बनमें और गाय यजुःशाखाका नाम तैत्तिगय हुआ है। कोई प्रामक वनमें जा छिपे थे। अनुमरणकारो अङ्ग- (भागवत०१२१६५४-५८) र जो सेनाने उन्हें उसो अवस्थामें मार गिराया। इस तित्तिरिक (स पु०) तित्तिरि स्वार्थे कन् । तितिरि देखो। प्रकार ५ सौ निरक्षर लोगोंको जोवलोना समाप्त हुई। तित्तिरोक ( म० लो०) तित्तिरं: पक्षदाहे न जात तित्तिर (सं० पु०) तित्ति इति शब्द गति ददाति राक। तित्तिरि-वाहुलकात् इक। एक प्रकारका अञ्जन जो १ नोतर नामका पक्षो। २ तितली नामको घाम। तोतर पक्षी पखके जलाने से तैयार किया जाता है। तित्तिरि ( म ० पु. ) तित्ति इति शब्द गैति रु-डि । पक्षो तिथ (स' पु०) तेजयति तिज-यक् । तिथपृष्ठगूथयूथप्रोखाः । भेद, तोतर चिड़िया । मस्कत पर्याय-तैत्तिर- उण २०१२ । १ अग्नि । २ काम, कामदेव । ३ काल । याजुषोदर, तित्तिर, कपिञ्जन, लघुमोम, खरकोण, चित्र- ४ प्रावट काल, वर्षाका समय। पक्ष, तितिर और वसन्तगौर। इमके मांस गुण-- तिथि ( म० पु०-स्त्री.) प्रततोति अत-सातत्यगमन प्रत- रुच्च, लघु, वोय बन्लपद, कषाय, मधुर, शोत और त्रिदोष दथिन् । १ पन्द्रह चन्द्रकलाओं को क्रियारूप प्रतिपदा मम । यह कष्ण पोर गोरवा का होता है। काले प्रादि तिथियां। २ अमावास्यासे ले कर पूर्णिमा तक तोतरको आणतित्तिरि ओर चित्र विचित्र तितिरिको और पूणि मासे ले कर अमावास्या तकको चन्द्रमा को गौरतित्तिरिकहते हैं। लणतोतर बलकारक, धारक, कलापोको तिथि कहते है। (तिथितत्व) जो काल विशेष .