पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५११

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कोतिकामासवी सपनीय प्रतिपदाक दिन वणिराज बार बारमा संत्रित । भगवानको को पूजा की जाती है। सातिधि जो बलिराजको अत्यन्त प्रीति होतो।। पूजा करता है, उसे पवविध सुख होता है : पूजा करके यमहितीया-कातिकमासको तापक्षीय हितीयाको रात्रि जागरण पारना पड़ता है। इस प्रतिपदाका नाम भारतीया करतेस दिन बहिनीको भाइयोंको धूतपतिपद है। पूजा करनी चाहिये। कार्तिवमासके प्रथम दिन अर्थात् एकपक्षीय प्रनिषदा- यम-हितीयामें यम पोर यसमामा की जातो है। कोरगरीने छतकोड़ा की थी, इसलिए उक्त तिधिको यत्पूर्वक उम दिन बहन के साथका भोजन बार, बानका यतातिपदा करते है। इस कोड़ा शहर पगजित दिया एपा दान प्रतिग्रह करें एव बानको दान दे। हुए थे और शारोने विजय पाई थो, इसलिए शिव पपरपरके बादको साहितोया, कोजागरके बादको दुःखो पोर दुर्गा सुखो हुई थीं। वर्तमान समयमें भो अणहितोया, चैत्रको पौर कार्तिकको पूर्वमासोके बाद- उता दिवसमें लोग जमा खेला करते है। उसमें राजावो को बणहितोया, इन सबका तोयाके साथ बुग्माहर जय पोर पराजय होती है, सम्बत्सर उसको सुख पोर है। पता उस दिन पमध्धायक है। दुःख होता है। संवत्का फलाफल जाननेके लिए उस यमहितोया के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिये, यावा तिथि व सकोड़ा विधे । उस सिविमं यदि गङ्गा करनेसे मृत्व तो है। बम तिथि धरती (बड़ोस) खान और दान किया जाय, तो शतगुण पुण्य होता है। खाना मना है। "स्नानं दान शतगुणं कार्तिकेऽस्यातियो भवेत् ॥" (तिषित०) बसोया-रभावतके सिवा देव पोर वर्म में यदि पग्रहायण मासको मष्णपक्षीय प्रतिपदा रोहिणे चतुर्थीयुक्त ततोया पाहर है। पेटमासको एकपक्षीय मशनयुक्त हो और उस समय यदि गणमान किया जाय, तोयामें रभाबत पा करता है। बेशासमासकी तो शतसूर्य ग्रहण कालीन गङ्गाखानका फस प्राम हो। पक्षोय तोयामें कत्तिका पौर रोहिणी नक्षत्र हो, तो उता तिथिमें कुमाण-भक्षण, तेलमर्दन पोर चौरकम विष फल होता है। नहीं कराना चाहिये। इस दिन खान पोर दानादि करनेसे उसका पक्षय रितोया-जो द्वितीया प्रतिपदयुक्त हो, वह ग्राह्य फल होता है, इसीलिए उसका नाम पचय-वतीया पड़ा है; यह नियम शुक्ला और छष्ण दोनों पक्षोंके लिये है। है। उस दिन जलदान करनेसे महापुण्य होता है तथा किन्तु कोई कोई परयुतको ही ग्राद्य बसलाते हैं। विष्णुको चन्दनात देखनेसे विशुलोका वास होता है। अपवाम-तिधिमें जो तिथियां पाती हैं, उनमें परयुत्ता या सत्ययुगको प्रथम तिथि है। वैशाखको समा- पौर पूर्व युक्त इस प्रकार दो प्रभेद हैं, जैसे हितोया, तोयामें भगवानने यवको सृष्टि कर सत्य युगको मष्टि एकादशी, अष्टमी, त्रयोदशी और अमावस्या, उपवास- को थी, इसलिये यवसे विष्णु को पर्वमा पोर होम विधिौ परयुक्त ग्राह्य नहीं है। मष्णपक्षीय तिथियोंके करें एवं ब्राह्मणको यवाबका भोजन करायें। तिथि- लिये उस नियम लागू है, शलापक्षके लिए नहीं। में गङ्गा प्रमोबसे पृथिवी पर उतरी थी, इसलिए भार, एकपक्षीय एकादशी, पष्टमी, षष्ठी, हितोया, चतुर्दशो गङ्गा, हिमालय, केलाथ पौर सगर नृपतिको पूजा करें। बयोदशी पौर अमावस्या, पनका उपवास शेषको पकड़ उस दिन जो पहासे गङ्गाखान और तपहोमादि करता 'कर करें। (विष्णुरहस्य ) है, उसका पनन्तकाल पर्यन्त खर्गवास होता है। इस पाषाढमासको पलपक्षीय पूज्यानवयुवा हितीयाको तृतीयामें युग्मादर नहीं है । हतीया तिथिमें मांस और जगनाथदेवकी रथयात्रा हुपा करतो, इसलिए उस- पटोल खामिका सर्वथा निषेध । दिन यावा महोत्सव पौर बाजाय भोजन करावं। यदि चर्तयों-चतुर्थी पौर पक्षमी मंगल पाहत होने पर ममता न भी हो, तो भी निधिक माहात्म्य एकादयो, पाष्टमो, षष्ठो, पमावस्या और पती, इनमें