पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५१९

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माधमासको अणा चतुर्द योको स्टन्ती-चतुर्द भी कहते है। उस दिन गावान और गााम भोजन करनेस है। इसमें परुणोदयके समय स्नान करनेसे यमभय पिशाचत्वको प्रानि नहीं होतो। इममें फाल्गुनके मुख्य जाता रहता है। मान पोर तर्पण हारा समस्त पापोंसे चन्द्र पौर चेत्रको गौषचन्द्रको व्यवस्था है। छुटकारा मिलता है। इस चतुर्दशोको रटतो पूजा पूर्णिमा-चतुर्द गोके साथ युग्मत्व हेतु पूर्षिमा होतो है। यदि यह तिथि दोनों दिन अरुणोदय काल पाच पोर देवकम के लिए पादरणीय है। अमावस्खा पाये, तो पहले दिन स्नान करें और जिस दिन सन्ध्या- और पूर्णिमामें चन्द्र पोर पति ग्रहका योग हो, तो मुख पावे, उस दिन रटन्तीपूजा करें। यह रटन्तोपूजा उसको मनापूर्णिमा करते हैं। इसमें स्नान पोर प. पोषके गौणचंद्र और मायके मुख्य चन्द्रमें होतो। वामका फल होता है। माघमासके अन्तमें हो या काला नमासके प्रारम्भमें, ज्येष्ठ मामको पणिमाको ज्येष्ठानचनमें यदि गुरु आणा चतुर्दशीको शिवचतदशी कहत पोर उस टिन और शशो हो तथा उम दिन गुरुवार हो, तो वह महा- शिवरात्रिका मत होता है। किन्तु माधका गोणचन्द्र और ज्ये ठो होतो हे अथवा ज्येष्ठा नक्षत्रमें या अनुराधामक्षन. फाला नका मुख्यचन्द्र ग्रहगोय है। माघमासको मणा में गुरु चन्द्र दोनों हों, तो ज्येष्ठमामको पर्णिमा महा. चतुर्दशीको रविवार या मङ्गलवार पड़े तो धमके फलमे ज्ये ही कहलाती है। यदि ज्येष्ठा वा अनुराधा नक्षत्र प्राधिक्य होता है। रविवार वा मङ्गलवारयुत व्रतके दिन वृहस्पति हो तथा रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र में रवि यदि शिवयोग पड़े तो इसका फल उत्तममे भो उत्तमतम हो एव ज्येष्ठानक्षत्रयुत शशी हो, तो वह पर्णिमा हो जाता है। इस तिथिमें यदि पहले दिन महानिणि महाज्यं ष्ठी होतो है। .. और दूमर दिन प्रदोष पड़े, तो प्रथम दिन व्रत और ज्येष्ठ नामक सम्बत्सर, ज्येष्ठमासको पूर्णिमा उपवास करें। पहले दिन महानिशिम चतुद शो न हो ज्येष्ठा नक्षत्रयुक्त होने पर महाज्यं प्ठोयोग होता है। कर यदि दूसरे दिन प्रदोष लाभ हो, तो दूसरे दिन जिभ वर्ष में ज्येष्ठा वा मूला नक्षत्र स्पतिका व्रतादि करें। उदय वा अस्त हो, उस वर्ष को बैठनामा वार पहले जन्माष्टमोके प्रकरणमें कहा जा चुका है, कि तिथिके अन्तमें पारण करें, किन्तु यह नियम मिफ जन्मा. पर्णिमा मन्वन्तराका विषय पहले कहा जा चुका ष्टमोके लिए है, यहां वह विधि नहीं है। यहां जिम कि माघ और श्रावणी पोर्णमामोमें तथा पाखिनको सिधिमें उपवास हो, उसो तिथिमें पारण करना उचित जणाबयोदशीमें बार करना जरूरी है। यदि पहले दिन है। मध्यरात्रिव्यापिनी चतुर्दशीको यदि शिवरात्रिव्रतका सङ्गमके समय पूर्णिमा तिथि पालन हो, तो उस दिन समय हो अर्थात् दिनको चतुर्दशी पतित हो कर यदि हो बार करना उचित है । यदि दानों ही दिनं सङ्गम- मध्यरात्रिव्यापिनी हुई हो, तो उसी चतुर्दशोमें पारण कालका लाभ न हो, तो दूसरे दिन बार करें। सूर्योदयके करें। इसमें फलाधिक्य है- मुहत त्यको प्रात:काल और उसके बाद के मुहतं वयको "ब्रह्माण्डोदरमध्येतु यानि तीर्थानि सन्ति वै । समकाल कहते है। पूजाताति भवन्तीह भूतायां पारणे कृते ॥” (स्कन्दपु.) कोजागर पूर्णिमा प्रदोषके पाने पर हो पात्र होता इस पृथिवी पर जितने भो तीथ है, चतुर्दगोमें पारणा है, अर्थात् जिस दिन प्रदोष और निशोथव्यापिनो तिथि करनेसे उन सबको पूजा करनेका फल होता है। यदि हो, उसो दिन कोजागर पूर्णिमा ममझा जायमो । दूसरे दिन वा चतुर्दशो न रहे और दूसरे दिन प्रदोष. यदि पहले दिन नियोश्रममयमें पोर दूसरे दिन प्रदोषमें व्यापिनी तिथि न हो, तो पूर्व नियोथव्यापिनी चतुदं योउक्त तिथिका लाभ हो, तो दूसरे दिन उमका अत्य को उपवास पौर पमावस्था में पारण करें। होगा। यदि पहले दिन निशोथ समयमें उक्त तिथि हो बमासकामयापतरंगोका नाम पारक-चतुर्दगो और दूसरे दिन प्रदोषके समय उस तिथिवा पतन न हो,