पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तिमि ५ बाको बचने पर पूर्ण तिथिम मृत्य, होगो। चतुर्द गोको पश्चिममें, मममी पोर पूर्णिमाको वायु मतान्तरमें ऐमा भो है-वयसका पा, राशिका अङ्क कोणमें, हितोयाको पौर हादयोको उत्तरमें तथा पष्ट को पोर खरा इनको एकत्र ओड़ कर. युताइका ५से और अमावसयाको ईशानकोणमें योगिनी रहती। भाग लगावें : जो बाको बच्चे उससे नन्दा भद्रा आदि यात्राका फल-षष्ठी, अष्टमी, हादयो, पूर्णिमा, तिथियांका निर्णय करें। कष्ण प्रतिपद, अमावस्या. रिता, यमद्वितीया, अवम उन रागि और स्वराङ्गको एक माथ जोड़ कर, युक्ता- और नास्पर्थ में यात्रा करना निषिद्ध है। इन तिथियों के कामे भाग करने पर जो प्रवशिष्ट बचे, उममे मृत्य- सिवा पन्य दिनकी यात्रा शभ होती है। तिथि का निगा य करें । वयसार, स्वराज और गशिक रविवारको हादयो, मोमवारको एकादयो, मल- अङ्गको एक साथ जोड़ कर, युकाङ्गको ६मे गुणा करे, वारको दशमो और बुधवार को मनमो होनेसे, वह तिथि फिर उस गुणफलका १५ से भाग करने पर जो प्रव. दिनदग्धा होतो है। उनमें कोई शुभ कार्य न करना शिष्ट रहे, उससे मृत्यु-तिथि का निश्चय करें। १ पवशिष्ट चाठिये। होनेसे प्रतिपदा, २ बचनेसे हितोयाम, ३ पशिष्ट रहने वर्षप्रवेशमें तिथिका आनयन-गतवर्षको संख्याको पर तोयामें मृत्यु होगी। इसी तरह पागे समझे। ११ से गुणा कर डालें, फिर उसके गुणफनमें चर-बल-साधन-गला प्रतिपदासे १० दिन अर्थात् १७०का भाग लगावे। जो भागफन उपलब्ध हो, उसका दशमी तक चन्द्र मध्यबल रहता है । एकादशीसे ले कर उपयुक्त गुणफल के साथ जोड़ लगावें। इस युत्तारको दश दिन अर्थात् कणा पञ्चमो तक चन्द्र पूर्ण बल और ३०से भाग करने पर जो बाकी बचेगा, उसके साथ जम्म- काष्णाषष्ठोसे ले कर दग दिन अर्थात् प्रमावसया तक तिथिके पकका जोड़ लगानसे जो अब होंगे, उस पर चन्द्र होनबल होता है। बारा वर्ष प्रवेशको तिथिका निर्णय हो जायगा। वह तिथिविशेषमें द्रमादि भक्षणका निषेध-प्रतिपदाके दिन प्रा.से अधिक होने पर ३०से उसका भाग करें', जो बाको बच्चे, उमे ग्रहण करना चाहिये । कभी कभी निल- कुमाण भक्षण करनेसे अर्थ को हानि होती है। हितोयाको छाती, हतोयाको पटोल, चतुर्थीको मूली, पित तिथिसे पूर्व की वा बादको तिथिमें भो वर्ष प्रवेश हुधा करता है। (ज्योतिष) पचमीको बेल, षष्ठीको नोम, सप्तमोको ताड़, अष्टमीको तिथिमेदसे देवपूजामेद । मांस पोर नारियल खाना निषित है, तथा नवमीको __"यदिने यस्य देवस्य तहिने तस्य सस्थिति ।" ( नारद ) तुम्बी ( लौकी), दशमीको कलम्बो, एकादशोको सेम, जिस देवताके लिए जो दिन निहारित है, उम दिन हादशीको पूतिका, व्योदशीको वार्ताकु, चतुदं शोको उसी देवताको स्थिति होती है। प्रतिपद, अम्निको उड़द और मांस तथा प्रमावस्या और पूर्णिमा तिथिमें दितीयाको वैधाकी, दशमीको यमको, षष्ठीको गुहकी, मांस खाना निषिद्ध है। चतुर्थीको गणनायको, हतीयाको गौरोकी, नवमोको पाषाढ़को का एकादशोसे ले कर कात्तिकको सरस्वतोकी, सप्तमोको भास्वरकी, अष्टमी, पतुदं शो और पला हादगी तक सफेद में म, पटोल, वरवटो, कदम्ब, एकादशीको शिवको, बादशीको हरिकी, त्रयोदशीको कलमोशाक, वार्ताकु पौर कैथ खाना निषित। मदनको, पञ्चमीको फणीशको तथा पर्व (पष्टमो, चतु- कात्तिकको शला एकादशीसे पूर्णिमा तक मत्मा। दशी, अमावस्या और पूर्णिमा) के दिन इन्द्रकी पूजा और मांस खाना निषिद्ध है । ( स्मृति ) करनी चाहिये; इस प्रकार पूजा करनेसे शीघ्र ही फलकी तिथि-विशेषमै योगिनीका निर्णय-प्रतिपदा और प्राशि होती है। (अमिपु.) • नवमीको योगिनी पर्व दिशामें रहती है। हतीया और तिधितत्व (न' ली.) तिथिषु शत्वं, ७-तत्। तिथि. एकादशीको पग्निकोणमें, पक्षमो और वयोदपीको विहित कार्य, विवाहादि मासिक कर्म जो निर्दि विष, पर्थी और हादपोको नम्रतमें, षष्ठी पोर तिथिमें किये जात।