पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५३४

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५३० तिन्नत पहली प्रतिमा शिरा-सस्थान और मांसपे ममूह माफ | (को टुङ्ग-मर्पो) है। इस प्रामांदमें लोकेसारको प्रतिमा साफ दोरख पटती हैं । साङ्गाकु उपत्यकामें मेहजोङ्ग नाम- पोर कोनगम-जप नामक ५म दलर लामाषी समाधि है, का प्रामाद और दुर्ग है। यहां फगमो-दुबवगीय मित जिममें तेरह खन लगे हुए हैं। पोताला प्रामादी दक्षिण- चए-कुर ग्यगान नामक गजा रहते थे। उनका भग्ना पश्चिममें चग पोपरी पर्वत पर चिकित्साशास्त्र सिखानेका वशेष व गावाका वामस्थान कहा जाता है। विद्यामन्दिर है। यह मन्दिर वचपाणिके नाम पर तथा कत दर पूर्व को पोर जानसे विभी-गकन्न नामक पर्वतके पश्चिममें दरि पर्वत पार्य मन्त्रोके नाम पर पव तन ममोप पदनद-पुन नामका आथम है. जो समस्त उत्मगं किया गया है। यहाँ दल ह यादुङ्ग राजा है। उत्तरी एशिया में विख्यात है। यहां बर्ड उपामनाय. पोताला और लामाके मध्य में पम्पन नामक एक राजकम- में मैत्रं य ( च्यम्पथोङ्गन्दो)-को बड़ो प्रतिमा स्थापित है। चागेका वाम है। ये दलालामाकी गतिविधि पर दृष्टि दमक मिवा यहाँ भारतवर्षीय चन्द्र पगिडतके हस्तलिखित रखने के लिये चोन-सम्माट द्वारा नियुक्त किये गये हैं। ग्रन्थ, अवलोकितेखर ( चनरमिग) को प्रतिमा पार व उम नगरके उत्तरमें मेर थेग के-लिङ्ग नामक पाश्रममें लोचबको समाधि भी है। यहां दलर लामाका एक अवलोकितेश्वरको ग्यारह मुख की प्रतिमा विराजमान प्रासाद है। यहां के तान्त्रिक मतके देवता वचभैरवको है। उ-छू नदोके किनारे होकर पूर्व को ओर जानसे एक प्रतिमा बहुत प्रमित है। यहां विनय, अभिधर्म और जगल पार भोना पड़ता है, उमके बाद तग्यर नामक माध्यमिक दर्शनको शिक्षा दी जातो है। इसके सिवा पहाड़के जपर अतिषदेवका सयोवम पोर गुहा, पाचार्य प्रज्ञापारमिता तथा नि-ता-ताङ्ग तान्त्रिक के मतका कुछ (दफुग) पद्मसम्भव तथा ८० योगियों की गुहाएँ देखी अंश भी पढ़ाया जाता है। इसके पूर्व में तिब्बतको राज- जाती है। यहाँ अवलोकितेश्वरमृत्ति, मणप्रस्तर-सम्भूत धानो पा-ल हदन (लामा ) नगर है। आर्यावर्त के स्वयंभू मणि, नोलास्तरक्षेत्रके मध्यगत खेतप्रस्तरसे स्वयं किसी बृहत् नगर माथ हमकी तुलना नहीं होने जात तारामूति, जम्भल (कवेर। मूर्ति, रिगचोम (वेद- पर भी तिब्बत क मधा यह एक प्रधान नगर गिना जाता मती )मूत्ति और दुव वाव विवपम त्ति है। चार है। लामा नगरके बीच में एक ऊंचा तिमजला शाक्य- मैवयोंमें येरप चामछिनने इस प्रदेशमें अमृतको वर्षा बुद्ध का मन्दिर है। इसमें शाक्यमिहको जो प्रतिमा है, को थी । यहाँ पल इशिव नामक एक पहितीय देवता. वह उनके बारह वर्षको अवस्थाका प्रतिरूप है। राजा को प्रतिमा है। उ छ नदोके दाहिने किनारे प्रमिह स्रोनत्मन गम्पोने चीनको गजकन्यामे विवाह किया संस्कारक शरचोङ्गहारा खप स्थापित गधन नामक पात्रम पौर वहीं में इस प्रतिमाको अपने देशमें लाये थे। और उनका समाधिस्थान है। इसके सिवा यहां यह अवलोकितेश्वर (चन रमिग) और मैत्रेय बुद्धको यमान्तक महाकाल कालरूप नामक देवताको प्रतिमा स्वयंभू प्रतिमा है। इसके सिवा तमोङ्ग प, श्री-सुन्, पौर गुच्छ समाजका मण्डल है। गध नके उत्तर पूर्व में ग्यमोदेवो (भारतमें शची कामिनो नाममे ख्यात) छगल पर्वतके दूसरे पारमें रदेश नामका पात्रम प्रभृतिकी मूर्तियां हैं। इसके दक्षिणमें चोनका यूमान नामक स्थान पड़ता है। तिब्बतके अधिकांश सम्भ्रान्त और जौंदार नासा नङ्ग नामक स्थान के पूर्व पूर्व तक दूसरे पारमें खम लहरी नगरमें रहते हैं। चोन, काश्मीर, नेपाल, भूटान प्रभृति अवस्थित है। इसके पूर्व में छ (रौप्य ) मदोके बायें स्थानास यहाँ वणिक जाते है । इस नगरसे पाध मोल- किनारे रिभोले नामक प्रसिद्ध समाराम है और साराम- को दूरी पर पोताला नामक प्रासाद है। प्रवाद है, कि के पूर्व में मरणम् प्रदेश है। यहां राजा सोन्-त्मन इस प्रामादमें जगनाथ अवलोकितेश्वर वाम करते थे। ये गम्पोके समयमें निर्मित कई एक मन्दिर रमके पूर्व । हो दलइ-लामा रूपमें वर्तमान हैं । स्रोन्त्सन गम्पो में कोप-व नामक स्थान है, यही चीन पौर तिम्बतको नामक राजाने इमे निर्माण किया था। यहां लोहित प्रामाद सोमा । कोजचे-खके पूर्व में बार विभागके मन चुक-