पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५४०

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पण्डित विमालमित दम श्रेणीके प्रतिष्ठाता है। दुपैदो सियोंने उनको राजा मान लिया। वे अपने नजर श्रेणीका मलमात्र दो प्रकारका है-मूनतन्त्र और वाक्य शान्त प्रिय व्यवहारमे उन लोगों के सामाजन हा कर नन्छ । भारतीय पगिडत दानरक्षितने काश्मोरके धर्मबोधि राज्य करने लगे। इसके बाद ईसा जन्मके चारमो वर्ष घोर वसुधर नामक दो पण्डितोको उता दो पुस्तकोंको पहने तक तिब्बतका पोर कोई इतिहास जाना नहीं शिक्षा दो। पोछे उन्होंने ही इसे तिब्बत में प्रचार किया। जाता पोर न तो कितो प्रवाद हो सुना जाता है। मेम-छोग श्रेणो भारतीय पण्डित कालाचार्य के प्रव. मन पूर्व चोथो शतान्दोका विवरण पठनेसे मालम तार रोन-मेम लोचवसे स्थापित हुई । स्यग्रोव (तामन) होता है, कि रूपति वश ध्वस होने पर तिब्बत कईएक इम श्रणों के तान्त्रिक देवता है। ये क्रोधप्रतिक और छोटे छोटे स्वाध'न भागौम विभक्त हो गया। दैत्यविनायक है। पन लोगोंके मतानमार जम्मल कु, भोट-पण्डित बुतानको तालिकाके पनुमार बुद्ध- पद्मशुध, ग्मदुचि, योतनम और कुथिनले नामक पञ्च निर्वागाके ४१७ वर्ष बाद अर्थात् १२६ ई० को पहले भारत देवोपामना मोक्षसाधक है। जम्पल कु नामक देवता- वर्ष में तिब्बतके प्रथम क्षत्रो राजा नर-थि-सप्तम्मान जन्म की पूजा शान्तिगर्भमे प्रवर्तित है। हम देवताको मन लिया। उनका भारतीय नाम क्या था, वह तिच श्रीके प्रतिरूप मानते है, किन्तु प्रतिमाको पातति भय- इतिहासमें नहीं लिखा है। उनके पिता प्रसेनजित्- पर पनेक मस्तकयुक्त और बाहुमें बुरी तरहसे पालि. कोगन देश के राजा थे। प्रसेनजितके पश्चम पुत्र ने एक गित स्त्री मूर्ति है। यंदन नामक देवोपासना . हुशार प्रत पाकारमें जन्म ग्रहण किया। तुर्कोको नाई नामक तान्त्रिक योगोमे प्रतिष्ठित है। हयग्रोव, फप उनका गात्र वर्ण, भौंक रोए नोलवण, दोनों प्रोख और दुचि उपामना विमलमित्रमे स्थापित हुई हैं। असमान और गलियां जलचर प्राणोको नाई पतली • अनुत्तरयानतन्त्र हो अभो नेपालमें प्रचलित है। चमडीसे परस्पर संयुथीं। सद्योजात शिशके सभो इसका दार्शनिक भाव बहत बड़ा है। अभियोग इसका दाँतोका पूर्ण विकाश हो गया था, और वे शंख के जमा प्रधान अनुष्ठान है। इसके मेमदे, लोनदे और मननगदे सफेद दीख पड़ते थे। प्रसेनजित्ने दम पुत्रको कुन नगा नामक तीन प्रकारके शास्त्रग्रन्य हैं। सेमदे अन्य १८ क्रान्त समझ कर उसे मांबेके बरतनमें रख गङ्गामें वहा हैं, जिनमेंसे ५ वैरोचनमे और १३ विमलमित्रमे बनाये दिया । एक सपकने उसे निकाल कर प्रतिपालन किया। गये है। लोनटे ग्रन्थ हैं, जिनके रचयिता वैरोचन वह कषक भोलाभाला मनुष्य था, अत: उसने यह पुत्र पोर पंमिकम गोनय है। लामा धर्म बोधि और धर्म - उसके औरमसे उत्पन हुआ है ऐसा कहों भो सिहरम शास्त्र प्रधान उपदेशक थे। मनगदे शास्त्रके प्रचार न किया, वरन् वह उमे राजकुमार कहा करता सोन ग्रन्द सुन्दर प्रान्तारिक भाषामें बने हैं। विमल- । था। जब लड़का बड़ा हुआ तब उसने अपना जन्म मिलने से गजा थिस्रोनको सिखाया। बुद्ध बच्चधरमे वृत्तान्त सुन मन ही मन बहुत बुब्ध हो प्रतिज्ञा की, पहले पहल भारतवर्ष के पगिडत आमन्दवजन इमे "राजपुत्र होकर मैंने जन्म लिया है, किन्तु अदृष्ट दोषसे पाया था। पीछे उन्होंने यह पपने शिष्य श्रोमिंहको कषकके धरमें कषक-त्तिमें समय व्यतीत करता है, दिया। उन्होंसे पडसम्भवने से पाया। इससे मरना हो अच्छा है। यदि राजा हो सकू, तभो ' इतिहास-याक्यसिंहके पहले कुरु पागड़वके युद्ध में अपना जोवन रख सकताई, अन्यथा इस कष्टदायक कालमें रुपति नामक एक क्षत्रिय राजा युद्ध में भय खाकर जोवनको किसी हालतसे रख नहीं सकता।" कुछ तुषारात तिम्मतको भाग गये। वे कौरव पक्ष के सेना दिन बाद वह बालक प्रतिपालकके घर पौर जन्मभूमिको पति थे। दुर्योधमके भयमे वा पाण्डवके पश्चादानुसरणके छोड़ कर चुपके जङ्गसमें भाग गया। जङ्गली फससे भय से उन्होंने स्त्रीके भेषमै एक हजार अनुचरोंके साथ औषन धारण कर वह लड़का कुछ दिन पोहे हिमालय पुग्घल देशमें पाश्रय लिया। यहाँ आदिम पधिवा- पर्वतको पार कर उससे और भी उत्तरकी और जाने