पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३८ तिब्बत और पात्र ) भरे थे। इन्होंने हो इस तरह तिब्बतके अनुमान करते थे। वह चिङ्ग बहुत माफ साफ दीखता गजानों में मबमे पहले देव प्रमाद प्राप्त किया तथा तथा उमसे ज्योति भो निकलती थो, इसो कारण राजा तिब्बती नोगों में देवमम्मान पाया है। एक समय राजा उसे एक लाल साटनको टोपोमे मदा ढके रहते थे। मन्त्रोके माथ इन द्रव्यों को पालोचना कर रहे थे, इतनः। तेरह वर्ष को अवस्था में राजमिहामन पर बैठे। इनके में आकाशमे देववाणो हुई, कि उनमे निम्न चौथ पुरुष- : राजत्व कालमें अनेक पर्वतगुहा और पर्वतक नाना के बाट पाँचवें गजाके ममय इन ममस्त विषयों का अर्थ स्थानोंसे अवलोकितेश्वर, तारा, व्यग्रोव प्रभृति देवताओं. प्रकाशित होगा। रम पर राजाने यत्नपूर्वक उन्हम को स्वयम्भ मूतियां पाविष्कत हुई। इनके अलावा बन-पो ( अपरिजात द्रव्य ) नाम देकर गज-प्रामाटमें बहुतसे उत्कोण शिलालेख भो पाये गये, जिनमें 'षों रख दिया और उमी दिनों में प्रतिदिन उनको पूजा करने मणिपञ हुँ' यह षडक्षर मन्त्र भी खोदा हुआ था। लगे। ५६१ ई०को १२० वर्षको अवस्थामें उनको मृत्य, राजा उक्त देवमूर्तियांका दर्शन कर अपने हाथमे पूजन हई। इनके प्रपौत्र जन्म की अधेि थे, किन्त कोई उत्त करते थे। प्रभो जिम जगह पोताला प्रासाद अवस्थित गधिकारी न रहने के कारण अनेक तर्कवितक के बाद है, उस जगह राजाने नौ-खनका एक प्रामाद निर्मागा अन्ध राजकुमार हो राजमिहामन पर चंठे। इन किया। उन्हें बहुत से संन्यदल ध और विद्याबलमे उन्हां- अभिषेकके ममय उन ममस्त देवदत्त द्रव्योको पूजा करने में अनेक भूत-प्रेतोंको वश कर उनका एक मैग्यदल उनका अन्धत्व दूर हो गया। प्रांख के खुन्नत ममंय मबमे बना लिया था। ज्ञान और वलवार्य मे राजाने अधिक पहले उन्हें मालूम पड़ा, कि नग्रि पर्वत पर एक भेड़ प्रमिद्धि पाई थी। प्रतिवेशो गजगण इन्हें बहुमूल्य उप- भागा जा रहा है। डमो कारण इनका नाम तनि नन· हार भेजते थे। राजा भी उन लोगांको सभामें दूत प्रेरण मिग रखा गया। इनके बाद उनके पुत्र नम-रि-स्रोन करते। इनके राज्य काल के पहले भो तिब्बतमें कोई लिखना तमन गजा हुए । उनकै राजत्व कालमें तिब्बती लोगान प्रणालो-सम्बलित भाषा नहीं थो; किन्तु राजा विदेशो चीनमे चिकित्साशास्त्र और अङ्गशास्त्र पहले पहल मोम्वा।। राजाको उन्हीं के देगाको भाषामें पत्रादि लिख कर इम ममय पशुपान्नन और गोधनका इतना आदर था और मित्रता रखते थे । सस्कृत, चोन और नेवारो (नेपालको) अधिकता भी इतनी थी. कि राजाने अपना राजप्रासाद भाषामं उनका पूरा प्रवेग था। राजाने पास पामक बनाते समय गाय और चमरोक दूधसे सभी मसाला | कई एक प्रदेशोंको लड़ाई में जोत कर अपने राज्यम भिगो दिया था । इन्होंने ( लासाकै निकटवत्तौं २० मोल मिला लिया। अन्तमें वे लड़ाइको भोरसे धान हटाकर विस्तृत ) ब्रगसुम-दिनम नामक इदके किनारे एक धर्मोवतिको ओर विशेष धान रखने लगे। सुन्दर द्रुतगामी और बलशाली घोड़ा पाया। यह घोड़ा राजा स्वयं बौद्धप्रिय और भक्त थे । वे स्वराज्यमें बौद्ध- उनका बहुत प्यारा था और इसका नाम दोव'चरखा धर्म प्रचारके लिये विशेष यत्नवान् हुए। उन्होंने देखा, गया। एक दिन इस घोड़े पर सवार हो एक दुन्ति कि लेखनप्रणालीविशिष्ट भाषाके बिना धर्म प्रचारको चमराका शिकार कर लौटते समय राजाने विख्यात च्यमा सुविधा नहीं हो सकतो तथा देश शासनके लिये गि छ नामक लवण क्षेत्रका मबसे पहले आविष्कार किया। विधि भी प्रचारित नहीं हो सकती है। यह तभो ६३० ई०में इनको मृत्यु होने पर इनका पुत्र सुविख्यात उन्होंने अनुके पुत्र थोन्-मि-सम्भोटको १६ सादायक अतकर्मा सोन-त्सन-गम्यो राजा हुए। उनके ममय साथ भारतवर्ष में संस्कृत भाषा और बौहधम छ तिब्बतमें एक नया युग आविर्भूत हुआ। मोख के लिए भेजा। राजाने उन लोगों को संस्थान स्रोन-त्सन-गम्पोने ६००से ६१७ ई०के मधा जन्म पनरके पाधार पर तिब्बतोय भाषाके उच्चारण के अनुसा ग्रहण किया था। इनके सिर पर एक उभड़ा हुआ छोटा उस भाषाके लिए उपयुक्त वर्ण निकालनेको चेष्टा कर चित था, जिसे लोग पमिताभ बुद्धको मूप्तिका चित्र को कहा।