पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५४२ ८४५ मे ८६.०के मध्य ग्ल-पचनका जन्म हुआ। घूम कर कहा करते थे कि बुरकी प्रधानता होमेसे उनके इनके ममयमै तिब्बतो भाषाका एक युगान्तर उपस्थित असत्य उपदेयमें पा कर ही भारत और चीनके मनुष्याने हा। इन्होंने मगध, उज्जयिनी, नेपाल, चोन प्रभृति नामा अपनो सुख शान्ति खो दो है। बौद्ध पण्डित उनके दोरा- स्थानों में लोगोंको भेज का असंख्य बाजधर्म ग्रन्थ मंग्रह मासे देश छोड़ कर भग चले। लन्दम ने किसो श्रमण- किये। तिब्बतो भाषाम उन समस्त पुस्तकों को अनुवाद को तो ग्रहस्य बनाया पोर किलोको उनके वास्ते पर कर प्रकाश करने के लिये उन्होंने भारतवर्ष मे भत्कालोन शिकार कर लाने वनको भेजा। जहा जितने बोई ग्रन्य विख्यात बोड़ पगिडत जिनमित्र, सुरेन्द्रबोधि, शिलेन्द्रबोधि, पाये गये, वे जला पोर फाड़ दिये गये। कितने बोह दानशील अोर बोधिमित्रको बुलाया । पहले जिस अनुवादमें मन्दिर उनके पादेशसे विध्वस्त हुए। जिम मन्दिरको भ्रम था और जो असम्पूर्ण था, उसोका मगोधन कर तोड़नेको सुविधा न थो, उसके सामने दोवार नेके किये रबरक्षित, मन, शोवर्मा. धर्म रक्षित, जिनसेन, खड़ा कर उसका दरवाजा बन्द कर दिया गया। उनके रत्नेन्द्रशोल, जयरक्षित, कव-पनतमेग, चोदेस्यल-तषन मन्त्रो और खुशामदो टष्ट प्रोन फिर दोवारमें बहुतम प्रभृति पण्डित नियुक्त हुए थे । व्यवसायियों को सुविधाक बुरो तसवोरै भलित कर दी। ये सब अत्याचार धार्मिक लिये राजा रल-पचनने चोन देशको तोल और मापका तिम्बतवासियों को पसघ मालम पड़ने लगे। लहलुन अपने राज्यमें प्रचार कर दिया । भारतीय बौद्ध पल पल-दोर्ज नामक एक साधु पापिष्ठ राजाके हाथमे याजकगण जिस तरह विधि और रोतिनोतिका पालन धार्मिकोंको बचाने के लिये एक दिन रणनृत्य करते करते करते थे, उन्होंने यहाँक' याजको में भी वे हो नियम राजार्क निकट जा पहचे और एक तीक्ष्ण शर हारा उन्हें प्रचलित किये। वे जानते थे, कि याजको के हो हाथमे विधकर वहसि बहुत शोघ्र चम्पत हो गये। उस शरा. धर्म शामन है । इमोसे वे उपयुक्त मनुषयों को देख कर घातसे हो राजाको प्राणवायु उड़ गई । उनके साथ साथ उन्हें याजक बनाने लगे। तिम्बतोय राजाओंका एकाधिपत्य भी जाता रहा। इन्होंके समयमें चोन और तिब्बतमें विवाद छिड़ा सन्दर्म के दो रानियाँ थौं । छोटो रानो गर्भवतो थो। था। चोन पर आक्रमण करने के लिये राजा रस-पचनने इससे बड़ी रानीको बहुत ईर्षा हुई। उन्होंने भो गर्भ बह तसी सेनायें भेजों । चोन पोर तिब्बतके युद्दमें रत होनेका एक ढोंग रचा। यथा समय छोटो गनोके एक को नदी बह चली थी। दोनों दे शक जानियों ने इस पुत्र रत्न उत्पन्न हुमा, जिमका नाम नम दे होद-सुन रखा अनर्थ कर रक्त-घातके निवारण के लिये खव चेष्टा को। गया। बड़ी रानोने उसका बध अथवा हरण करनेको उन्होंके यनसे लड़ाई रुक गई और सन्धि भी हुई। इस चेष्टा को थी, किन्तु उस नवजात शिशके निकट एक समय गुरु मेरु नामक स्थानमें एक पत्थरका स्तम्भ गाड जलती हुई वत्ती रहने के कारण उनका उद्देश्य सफल न कर दोनों राज्यको मोमा निर्दिष्ट हुई । एक प्रस्थर स्तम्भ- हुा। इससे बड़ी रानो और भी सुब्ध हो गई और में वह मन्धि-पत्र खोदा गया था। - उसी समय उन्होंने बदला लेने के लिये एक गरीब लड़के रलपचन के समय तिब्बतमें अनेक सनियम प्रचलित को ला कर उसे अपने पुत्रसा प्रचार किया। बड़ो हुए थे। इस समय सन्यासो और याजकमगहलोके प्रति गनोसे सभी भय खाते थे, इस कारण किसोके सन्देश राजाका विशेष लक्ष्य था, जिससे कि वे शास्त्रविधि होने पर भी वे उस पुत्रके विषय में कोई बात नहीं छिड़ते लान ब कर सके । पन्तमें किसो दुष्टने गला घोट कर थे। उस बालकका नाम थिदे युमतेन पड़ा। राजाके प्राण लेलिये । ८०८ से ८१४ ई. के मध्य राजार पहले बोह मन्त्रिगण हो राज्यशासन करते रहे। भाई लन्दम को उत्तेजनासे यह दुर्घटना घटी थी। उन्होंने पुनः सभी बोचकीर्तियोको स्थापन करनेको यथेष्ट अब दुष्ट लन्दम राजा बन बैठे। उनके समान मोह चेष्टा की थी। लन्दर्म के दौरामासे जो सब मन्दिर प्रा विषो राजा और कोई देखे नहीं गये थे । वे सदा घम | होन हो गये थे, मन्तिगण उनका संस्कार कगने लगे।