पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५४७

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तित ५४३ जब दोनों भाई बड़े हुए. तो राज्यके लिये पापसमें हिभाषी पगिड़तम (तिब्बतम सह-तसे नामले परिचित ) विवाद उठा । अन्तमें समग्र राज्य दो भागों में बांटा गया। पण्डित थल रिणव पौर स्मृतिको तिब्बतमें बुलाया । किन्तु 'होदन नने पश्चिम भाग और युमरीनने पूर्व भाग पाया। जब वे पण्डित सियतमें पहुंचे, तो उनको मृत्यु हो गई, गज्यकै भापममें बट जानसे गम्यभरमें युद्धविग्रह चलने पोके किसोने उन पगिड़ताको ग्राह्य भो न किया। स्मृति लगा। इससे राज्यको प्राभ्यन्तरिक अवस्था धोरे धारे यहाँ निर्वान्धव अवस्थामें रहतनग नामक स्थानों पर खराब होने लगो। पालत्तिका अवलम्बन करके जाविकानिर्वाह करने लगे। ८८० ६०म हादस्तु नका द हान्त हुपा। उनके पुत्र कुछ दिन बाद तिब्बतो भाषामें उनमा प्रवेश हो मानेसे पल-खारत सन सिर्फ १३ वर्ष राज्य कर (८८३ ई में) उनको विद्याको कथा धोरे धोरे फलने लगो। अन्त में ३१ वर्ष की अवस्था में मरे । उनके दो पुत्र थे, तसेगप उन्होंने खम प्रदेश के पण्डितों के साथ शास्त्रालोचना की। पल और थि-क्यि-देत निमगोन । कनिष्ठ सेगप नाहरि उन्होंने तिब्बतो भाषामें एक 'शब्दमाला' बनाई जिम ( लदाक ) देशको गये और वहां उन्होंने गजा होकर का नाम उन्होंने "कथाशास्त्र" रखा। 'पुराण' नामको राजधानी घोर नि-सुन नामक दुग की गजव शोय श्रमण येशहीद के यन, परिश्रम पोर प्रतिष्ठा को। उनके तीन पुत्रों से बड़े पलग्यि-दरि चेष्ठासे तिब्बतमें बौद्धधर्म का पुनरुत्थान हुआ। १०१३ गल्प-गोम मन युल प्रदेशमें, म झले तसि-दे गोम पुराण में इसका सूत्रपात हुआ था। उता श्रमणने मगधर्म प्रटेशम और छोटे तमुहागोन शानसम (वतमाम गुणमे) भारतीय पण्डित धर्म पालको बुलाया। उनके माथ सोन प्रदेशमै राजा हुए। देतसुग-गोनके दो पुत्र थे, बड़ा शिष्य भो पाये हुए थे । राजाने इन लोगोंको महायतासे खारी और छोटा सोनने । ज्येष्ठ येशे-छोट नाम धारण देशमें पुनः धर्म कला, शास्त्र और विनयशास्त्र के प्रचारमें कर संन्यासी ही गये। विशेष सुविधा पाई। तमि तसेग प पिताका मृत्य के बाद राज्य सिंहासन खोरी श्रमणके पुत्र लह-देने पण्डित सुभूति श्रोधान्ति पर अभिषित हुए-उनके तीन पुत्र थे-पलदे, हीद-दे को बुलाया। इस महापरिहतने इस देशमें पाकर ममस्त और क्यि दे। प्रज्ञापारमिताका (शेर-चिन) अनुबाद किया। विख्यात __ इस ममय तिब्बतमें बौध धर्म का पुनरुत्थान हुआ। अनुवादक रिनछेन-समानपो सुभूति हार। याजक पद पर लन्दर्म के समयसे इस समय तक कोई भारतीय पंडित प्रतिष्ठित हुए । महदके तोन पुत्र थे होद दे, शिव होद तिब्बतमें नहीं आये। बहुत समयके बाद एक नेपाली और यन-छुब होद । कनिष्ठ पुर्न बौद्धशास्त्र और उसके

  • युमतेनकी वंशावली इस तरह पायी जाती है बिरूह मतके दर्शन शास्त्रादिमें विशेष अभिज्ञता लाभ

युमतेन को। बौधर्मको सवतिके लिए इस पण्डित राजपत्रने यी-दे-गोनपो पार्यावर्त में सर्वशास्त्रविशारद ज्ञानी पण्डितोंको दृढ़ने- के लिए पादयो भेजा । तालाश करने पर प्रभु प्रतिश गोनपो णेन् पण्डितका नाम और यश तिब्बतमें मभोका मालम हो गया। यन-छुव हीदने उनको बुलाने के लिए भगतवो रिगप-गोनपो नि होदपल-गोन लोचवके साथ और भी कई एक मनुषयोम भेजा । लोचव थि-दे-पो निहोद-पन-गान पार्यावत्त में वहां के बौद्ध धर्म के प्रधान स्थान विक्रमशील थि-होद-पो गोन प्यो. नगरको पहुंचे। वहकि तत्कालीन गजान उनका खूब सत्कार किया। वह राजा तिब्बतोय लोगों से ग्य-तसोन- तष-नक येशेगा-लतषन सेनगे नामसे अभिहित हुए है। बाद उन्होंने पण्डित प्रभु अंतर गोणपो-तसन गोनपो-तसेग। पतिथके सामने साष्टाा प्रणिपात हो उन्हें राजप्रेरित