पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५६६

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तिरहुँत ग्राम अवस्थित है। इसके दक्षिणमें एक दुर्गका भग्नाव- कर रहने लगे । यह ग्राम पहले राजपूतीका या। महा. शेष देखा जाता है। पहले रम दुर्ग में ईटोको टोवार गज छत्रमिकको खो गर्भिगो हो कर प्रसव काल तक थो। रघुमिर नामक एक व्यक्तिने यह दुर्ग निर्माण इस घरमें थीं, इसोसे छतसिंहने इस ग्रामको खरोद किया था। ये दग्भना-राजके वंशोव थे । १७६२ ई० में लिया। यहाँ रमामालादेवोका एक मन्दिा है। इम, इनके वंशीय प्रतापमिह यहांमे अपना वासस्थान उठा ग्रामका पोतलका पनवटा पोर 'गङ्गाजली' नाम का जल. कर दरभा ले गये।यन एक ममजिदका भग्नावशेष पात्र बहत प्रसिद्ध है। है। अकबरके ममसामयिक शासन का अलाउद्दोनने मधेपुर (मध्यपुर)-गृह बरहमपुर, हरसिंहपुर, गोपाल. यह मसजिद निर्माण को थो। पुरवाट मोर दरभङ्गाके मङ्गमस्थान पर अवस्थित है। विग्टपुर (विगटपुर) यह ग्वालो थाना के अन्तर्गत प्राचोन मियिनाका केन्द्रस्थल होनेमे यह मधेपुर पोर एक ग्राम है। यहां भी एक दुर्ग मा ध्वं गावशेष और ग्रहः मध्यपुर नामसे मिड है। महाराज मधुमिहके चौथे प्राचीरादिक चित्र हैं। ए जगह गर्ट में महादेवको लिङ्ग लड़के रमापतिसिंह पञ्चि परगना पा कर इस ग्राममें मृप्ति के कछा हैं। कहा जाता है कि महाभारत के रहते थे। तिरहुत पोर पूर्णियाके रास्ते पर यह ग्राम अनुसार राजा विराटने इस दुर्ग को निर्माण किया था। अवस्थित होनेसे व्यवमायका केन्द्रस्य न माना गया है। तेलो लोग राजाको स्व जाति और गले के शिवलिङ्गको बासुदेवपुर-मधुबनोसे ५ कोस पूर्व में यह ग्राम प्रब. कोलहका मूसल बतलाते हैं । स्थित है। पहला इसका नाम शङ्करपुर था । पोछे मका मौगठ-यह मधुवनामे ४ कोमको दूरी पर है। ३० नाम शहरपुर-गंधवार पड़ा और अन्तमें वासुदेवपुर हुमा वर्षपरले दरभङ्ग के राजा ने यहां एक शिवमन्दिरको है। इस विषयमें किम्बदन्ती इस प्रकार है यहाँ गन्ध और प्रतिष्ठा को है। उमो मन्दिरके निकट तिरहुतोय बाह्य- भैरव नामके दो भाई रहते थे। दोनों पराक्रमगाली पोर गोंका वार्षिक मेला लगता है। कभी कभी लाखसे नाम मात्रको तिरहुत गजाके अधीन थे । सिलगुजाके पूर्व पधिक ब्राह्मणा एकत्रित हो जाते हैं । इस मेलेमें वरकर्ता तौरव कई स्थानों में गन्धको जमींदारो थो और कराई पोर कन्याकी पुत्रकन्याका विवाह सम्बन्ध स्थिर नदोके दक्षिणमें भैरवका अधिकार था। तिरइतके गजाने करते हैं। स्वयं उन्हें दमन नहीं कर सकने पर किमी दो झारपुर-यह मधुवनोमे पूर्व दक्षिणमें ७ कोसको विदेशियोसे उन्हें मरवा डाला। जिम हत्याकारोने जिसे दूरी पर अवस्थित है। इस छोटे ग्राममें दरभङ्गा राज- मारा, उसने उसीको जमींदारी पुरस्कारमें पाई। वशीय प्रतापसिंहके नाम पर प्रतापगञ्ज और राजा मधु- गन्ध हन्ताके वंशधर गन्धमारिया' और भौर हन्साके वंश- सिंहको बहन थोदेवों के नाम पर योगञ्ज नामक दो धर 'भोरमारिया' नामसे प्रसिद्ध हुए। गन्धमारियावंश बाजार है। दरभङ्गागज को सभो सन्तान इस ग्राममें शहरपुरम और भौरमारियावश मिहिया ग्राममें रहते भूमिष्ठ हई है, सोसे यह प्रसिद्ध है। राजवंशके बहुतौके है।इमोसे भरपुरका गन्धवार नाम पड़ा है। महाराज निःसन्तान अवस्था में मरने पर गजा प्रतापसिंहने निकट- छत्रहिने विवाह के समय यह ग्राम यौतुक पाया था। वर्सी मुर्गामग्रामवामी महन्त शिवरतनगिरिको सेवा- महारानो छत्रपति कुमारी मरते समय यह ग्राम प्रपने सुश्रुषा को । महन्त झभारपुर आये और अपनो जटाको मंझले लड़के वासुदेवको सौंप गई । छलसिंहको मृत्ल के एक शिखा इस स्थानमें जन्ना कर बोले कि जो यहाँ बाम बाद कुदरसिंहने राजा हो कर वासुदेवको जराइल पर. करेगा उसके पुत्ररत्न होगा। उनके कथनानुसार प्रताप- गना दान किया, उन्होंने इस राज्यपर अपना दावा करके सिंहने यहां एक वामस्थान निर्माण किया, किन्तु विवाद दान दिया। पन्समें कुमार बासुदेवने जराइल मकान तैयार होने के पहले ही अपुत्रक अवस्था में उनको परगनेको ग्रहण न कर, मावदत्त शहरपुरका नाम बदल मृत्य हुई। बाद उनके भाई मधुसिंह मकान तयार कग कर अपने नाम पर रखा और वे वहौं जाकर रहने लगे।