पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५६८

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तिरहुत है और लगभग १.बार मनोका समागम होता है। नामका काठ वर्षाकालमें नदी में बहा ले जाते हैं। चैत्र- एम मेलेमें न कोई चीज खरादो जाती है और न बेचो माममें यहां पन्द्रह दिनका एक मेला लगता है। जातो, केवल पुण्यकार्य का अनुष्ठान होना है। यात्रो मेलेमें रामनवमोवे दिन हो खुब उत्सव होता है। इसमें लोग यहां पा कर परले देवकालो नामक पवित्र कुगड में सब प्रकारको चोजोको बामदनी होती है। हाथो खान करते है, बाद एक पत्थर परके एक पदचिह्नको देख और घोड़े भो विकने पाते हैं, किन्तु बैलोक विक्रायके कर पाते हैं। यह मोता वा गमका पदचिह कह कर लिये ही यह मेला प्रसिद्ध है। सोतामढ़ी के बैल बहुत प्रसिद्ध है । इमो चिटके 'जपर एक मन्दिर बना है जिसे ताकतवर और सुन्दर होते है। प्रवाद है-सोतामढ़ो ही परख्यास्यान करते है। रामायण के अहल्यागौतम- गजर्षि जनकको कर्षित यज्ञभूमि थो। इसो जगह • सम्बादमे इसकी उत्पनि बतलाई गई है। यहाँ दरभाके सोताका जन्म हुआ था। खेत जिस गढ़ में सौताको गजका बनाया हुअा एक बहुत ऊँचा देवालय है। उत्पत्ति हुई थी, वह प्रभो पुष्करियों के रूपमें परिणत हो मालीनगर-छोटो गगड़क के उत्तरी किनारे पर अवः गया है। फिर किसोका मत है, कि निकटवर्ती पनौरा स्थित एक पाम। यहां रामनवमोसे ले कर पांच नाम के स्थानमें मोताका जन्म हुआ था। मोतामढोमें दिन तक मेला लगता है, जिसमें २ हजारसे ४ हजार मोताका एक मन्दिर है। इसो मन्दिर के निकट हनुमान, नक मनुषा एकत्रित होते हैं। १८४१ ई० में यहां एक शिव, दाही पादिकं मोर भो ८ मन्दिर है। शिवमन्दिर प्रतिष्ठित हुआ है. उमो मन्दिरके निकट "रामः शिउहर (गिवहर)-प्रोतामढोसे ८ कोम दक्षिण- नवमी" नामक उक्त मेला लगता है। गिव नामक कोई पश्चिममें यह ग्राम पवस्थित है। यहां वेतिया राजके एक मध्यवित्त बैश्य थे। गुरुके उपदेशमे उन्होंने एक देव. जाति राजा है। उन्होंने एक लाख रुपये खर्च करके मन्दिर निर्माण किया। उनके वशधर क्रमशः धनो हो ग्राममें बहुतसे मन्दिर बनवाये है। गये और सिपाही विद्रो के समय इसो वशक बाबू पनोरा-यह मोतामढोसे सोन मोल दक्षिण-पश्चिममें मन्दोपत्सिंहने गवर्मेण्टको महायता कर रायबहादुर अवस्थित है। लोग इस स्थानको मोतादेवीको जम्मभूमि उपाधि पाई थो। पूमा जमींदारो की लोगों को है। बतलात है। यहां एक मधोका बना हुआ बड़ा राक्षम इस वशक मुखियाके मतानुसार शिक्षक पुरोहित और बामरको मूर्ति है। जो अनुमान तथा रावण के निर्वाचित होते हैं। युद्धका दृश्य कह कर प्रसिद्ध है । राषस मूर्ति के दो मस्तक पूसा मानोनगर ओर पखतियारपुर नामके गव- है। इन दोनों प्रतिमा के निकट एक महन्त रहते है मेण्ट के दो खास ग्राम है। मालोनगर पहले दरभङ्गा और प्रतिवर्ष उनका अङ्गराग होता है। राजको मिलकोयतमें गिना जाता था। पहले यहां गव देवकालो --शिवहर ग्रामसे २ कोस पूर्व में यह ग्राम मेण्ट घोर अवस्थित है। यहाँ फाल्गुन महीने में एक मेना लगता नेका स्थान था । किन्तु १८७२ में वह काम बन्द कर है और एक बहुत ऊँचा शिवमन्दिर भी है। शिवको दिया गया। यहां अफोम तथा कुसुमफल उपजाये जाते जल चढ़ानके लिये बहुत दूरसे यात्रो पाते हैं। भैराम्निया-उत्सर सीमान्तवी एक स्थान। यहां सौतामढ़ी-लाखहण्डाई मदोके पश्चिमो किनारे पर एक बड़ा बाजार है । जहाँ नेपालो ओर पहाड़ो वणिक' पक्षा. २६३५ उ० और देशा०८५२२ पू०में यह शहर पण्य द्रव्य बेचा करते हैं। इसके दक्षिणको भोर वे पवस्थित है। यहां प्राय: ६ हजार मनुष्य बास करते है। नहीं जाते है। यह सोतामढ़ो उपविभागका सदर थाना है। सरमों वेलामो चपकोनी-स ग्रामका नाम बेला है, किन्तु पादिका तेलहन अनाज, धान, गायका चमड़ा और नेपाल. यहाँका जन्म बहुत खराब है। के द्रव्यादि हो यहांक प्रधान वाणिज्य द्रव्य है। सपा हाजीपुर-यह गडकके उत्तरी किनार पक्षा. २५