पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५७

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बहुत दूरसे दिखाई देती थी और दिनको धुएं से मार समें कुछ संस्थाएं निर्दिष्ट घौं । प्रत्येक संस्थाका स्वक माम म पड़ जाते थे । प्रज्वलित मशालको धर उधर पर्थ पुस्तक में लिखा पता था जो पावश्यकतानुसार दंड प्रमा-फिराकर अथवा एक बार छिपा कर पोर फिर दिखा लेना पड़ता था। कर प्रचार किये जाते थे। पीछे महोतके बदले मशाल मि. गैम्बल टेलियामि एक बई काडकी चोखटके पादिके हारा अक्षर निर्देश करनेकी प्रथा चली। १५८४ प्रकोष्ठोम का दरवाजे संयुक्त होते थे. ये किवाड़ में इंग्लैण्डके डाकर रबार्ट हुक (Dr. Robert Ho- इच्छानुसार खोले पोर बन्द किये जा सकते थे। इनको Wike)ने जचे स्तंभादि पर बड़े बड़े अक्षरोको प्रतिक्षति माना प्रकारसे खोलने और बन्द करनेको अवस्थाओं के रख कर दूरसे संवाद भेजने का एक सरोका निकाला हारा नाना प्रकारके सोतीसे पक्षरादि सचित होते थे । रातको अक्षरीके बदले हुकने पालोक हाग सातजापन १७६ में पहले पहल ग्लण्ड में सडनसे डोबर करनका तरीका निकाला। फलतः उन अवरोंका साधा. तक टेलिग्राफ लाइन स्थापित हुई थो। या टेलिग्राफ रण लोग समझ नहीं पाते थे । इसके प्रायः २० वर्ष बाद शेषोक्त टेलिग्राफका ईषत् रूपान्तर मात्र था। कहा जाता प्रा. गटमने (II. Amontou) फ्रान्समें हुककी भाँतिका है कि, इसके द्वारा ७ मिनट में डोबरसे भडनको संवाद एक उपाय उदावन किया। किन्तु पीछे इन दोनों के कोई भेजा जाता था। १८१६० तक ऐसा टेलिग्राफी भी अधिक दिन सक नहीं ठहरे। १७८३ वा १७८४ व्यवहत होता था। में मि• चापि ( M Chappe )ने जिम टेलिग्राफका रसके बाद बहुतोंने नानारूप परिवर्तन वा उत्कर्ष पाविष्कार किया था, वही उस ममय फरामोसो गव. माधन करके मामा प्रकारको तरकीबीका निकालना मैंगट द्वारा वहां प्रचलित हपा था। इसका पाकार शुरू किया। फरासीसो लोग रस समय में एक खटो पर एक वृहत् T की भाँतिका था। इमलिए कभी कभी दो या तीन हतं लगा कर टेलिया करते थे। लोग इसको टो टेलिग्राफ भी कहा करते है। एक मोधी पूर्वोक्त माना प्रकारके सोनीका पनेक प्रकारसे परि- गड़ी हुई लकड़ीके छोर पर दूसरी एक पाड़ो लकड़ी- वतन करके ममख्य प्रकारके टेलिग्राफ लेड पौर के दोनों छोरी पर दी लकड़ियों पर लगी होतो है इन यूरोपमें प्रचलित हुए थे। रम प्रकारके सम्सादि. लकड़ोक टुकडीका रम्सीसे खौंच कर नानारूप अवस्थाओं दूरस्थ जहाजोंके साथ संवाद बादाम प्रहान अत्यन्त में रकवा जा सकता है । इस तरहसे प्राय: २५५ प्रकारक प्रयोजनोय था । बहुत समय इसको पावश्यकता भित्र भित्र प्राकारी हारा २५५ प्रकारके इशारा किये प्रति अपरिहार्य हो जाती थी। जहाजभि सरत करने जात थे । इन चारोंमे अक्षर वा अङ्ग एक शब्द वा वाक्य के लिए प्रधानतः माना वर्णीको भिव भिक पाकारको मभी हो सकते थे । शब्द वा वाक्य पुस्तकामि लिख रहतं पताकाएं व्यवचत हुआ करती थीं। स्खलभागके टेलि. पौर मतानुसार संख्याकै आधारसे उसका पर्थ ग्राफको त उसमें भी सख्या चादि निदिष्ट घी पौर लगाना पड़ता था। फरासौसी विप्लव समय इम टेलि । अर्थ पुस्तक हाग पर्थका निर्णय होता था। १९९८ ग्राफकै हारा बहुत नगह मवाद भेजे जाते थे। दूर- ई में बालगडीय मौसेना विभागसे एक पुस्तक निकली। वोक्षणको महायतासे चिकपादि देखे जाते थे। किमो उसमें प्रायः ४.१ वाक्य सातबारा प्रकट करनेको तर. टेशनसे एक सरहका चित्र दिखाये जाने पर उमो समय को लिखो थौं। किन्तु यदि कोई संवाद सता ४.. परवर्ती टेशनसे भी वती चिक दिखाया जाता था, संख्यासे बाहर होता. तो उस टेलिग्राफसे कार्य नहीं सससे फिर अन्य स्थानम-एसो सरह शीघ्र अति दूरवर्तो चलता था। यह देख कर मर होम पपाम ( Sir Hoin स्थानम वाट पहुंच जाय करता था। Pophan) ने पताका द्वारा प्रक्षर खिर करनेकी . मि. चापिके बाद मि. एजवर्थ ( Edgeworth ) ने प्रथा चलाई। जीने नतम महतोका विवरण मिल हमें इसी तरहका टेलिग्राफ पाविष्कार किया। कर एक पुस्तक कसकसको भेजो। पोरवा पुस्तक Vol. IX.14