पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५७३

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विदर-विश्वनि (तिनि) एकके पढ़नेसे मालूम होता है कि उस मन्दिरका सम्म व तिकचिरई-सबोरके मध्यवर्ती कुम्भकोषम्ने । बोस वर्ती गोपुर १५८५ १०में मदुराके विजयङ्गा चोकलिङ्ग दक्षिण-पूर्व में अवस्थित एक प्राचीन ग्राम। यहाँ एक मायक द्वारा निर्मित पा है। यहां एक तामचासनमें प्राचोन विष्ण मन्दिर जिसमें बहुतसे शिलालेख। लिखा है कि शेलचूड़ास्थ मन्दिरको देवसेवा के लिये तिरुनि (तिरुत्तनि)-१माजके पाट जिस को एक १६५६६ में महिसुरकै कणराज उदय्यारने बहुतमी जमोदारो तहसोस । क्षेत्रफल ४.१ वर्ग मोल पौर गोश- जमीन दान को थी। संस्था प्रायः १७१००५ है। रममें सो नामका एक इस शहरको जनमख्या हजारसे अधिक है। वस्त्र शहर ओर २२७ ग्राम लगते है। बुननेकां व्यवमाय हो यहाँ प्रधान है। यहां अत्यन्त २ उक्त जमो दारो तहमोलका एक प्राचीन शहर । उहाट चन्दनकाष्ठके गोली प्रस्थत होते है। यह अक्षा० १३११७० और देशा० ७८.२७ पू. शोलि. तिरुचेन्दूर-तिब वेलि जिले के तेवराई तालुकके मध्यवर्ती भसे १५ मौलको दूगे पर अवस्थित है। लोकमवा एक शहर । यस पक्षा०८.२८ ५० उ० पोर देशा ७६ लगभग ३६८७ है। 'निरुतमि' इस नामको उत्पत्तिके १० ३०० बोवैकुण्ठम्मे ८ कोम पूर्व-दक्षिण कोणमें विषयमें स्थानीय प्रवाद इस तरह प्रचलित है- ममुद्रकूल पर अवस्थित है। यहाका सुब्रह्मण्य स्वामोका प्राचीन कालमें सुनाख खामोने तारकासुर, मन्दिर अत्यन्त विख्यात है । म्यलपुराणमें यहांका सिंह, चक्रासुर, सुरपद्मासुर प्रभृति असुरोको मार कर रस माहात्म्य वर्णित है। प्रतिवर्ष अनेक यात्रो यहाँ आया स्थानमें पा विधाम किया था। "तिरुत्तषिगो" शदका करते हैं। मन्दिरका शिवाने पुण्य अत्यन्त सुन्दर है, अर्थ सुविधाम है, इसीसे यह नाम उत्पब एमा और जिनमें अनेक प्राचीन शिलालेख पाये जाते हैं। समुद्र के उसोका अपभ्रंश तिस्तनि है। इन्द्र उपद्रव-रहित किनार सोलह स्तम्भ खड़े हैं, उनमें भी प्राचीन लेख हो स्वराज्य में रहने लगे और सनाख स्वामीके खुदे हुए हैं। कार्यों से संतुष्ट हो उन्होंने अपनो कन्या देवसेनाके उन्हें तिरुचान न--पार्कट जिलेका एक पुण्य स्थान । यह तिम. पण किया। सुब्रह्मण्य एनसे विवाह कर यहा रहने पतिमे १॥ कोम दक्षिण-पूर्व में प्रवस्थित है। यहाँ लक्ष्मो नगे। इसके पोछे रन्होंने वल्लोमा नामको एक दूसरी वरदराजखामो, कृष्णस्वामो ओर अम्मवार प्रभृति रुपवतो रमणोका पाणिग्रहण किया। इस विषय में दो प्राचीन देवमन्दिर है, जिनमेंसे यहाँक स्थलपुराणमें प्रवाद सुने जाते हैं। १ ला प्रवाद वलीमा किसी लक्ष्मोका माहात्म्य विस्तारपूर्वक वर्णित है। लण- एक ब्रायणके पोरस और चाण्डाल-कन्याके गर्भसे उत्पा खामो ओर पम्मवार के मन्दिरमें कई एक गिलास्लेख है। हई थी। उसको मातामे अपने स्वामी निकट यह तिरुचुनई - मदुरा जिलेका एक ग्राम। यह मेलरसे ७॥ प्रार्थना को कि सद्योजात शिणको जंगल झड़ कर कोस उत्तरमें त्रिशिरापल्लो के रास्ते पर अवस्थित है। वह पापका अनुसरण करेगो । सुतरां वीके अमनोने. कहा जाता है कि यहांका देवमन्दिर पराक्रम हारा के साथ हो उसको माता उसे जंगलमें छोड़ पाप पति- चोलराजासे बनाया गया है। उस मन्दिरमें बहुतमे को अनुगामिनी हो गई । किसो पस्पश्य जातिने उसका शिलानेख देखे जाते हैं। जिनमेंसे एक आधुनिक शिला- भरण पोषण किया। युवतो होने पर वह (बहुत लेखक पढ़नेसे माल म पड़ता है कि १७०५ १०में उम रूपवतो होनेसे) सब जगह प्रसिद्ध हो गई। वही मन्दिरका संस्कार हुआ था। पहाड़ पर बैठ कर अपने पासक पिताके अस्वयेत्रको तिरुचूलई-मदुरा जिलेके मध्य रामनादसे २२ कोस रक्षा करतो थो। एक दिन सुब्रमख स्वामो उसे देख पश्चिम उत्तरमें अवस्थित एक तालुकका मदर। यहाँ मोहित हो गये। बाद उससे विवाह करनेके उद्देश्यमे पराक्रम या निमित एक सात् शिवालय है। प्रति वे तिरुतनिमे एक सुर ग खोद कर मौके हारा प्रति दिन वर्ष बहुतसे यात्री शिवलिङ्गको देखने पाते हैं। वशीके निकट पाने जाने लगे,पोछे उसे चादी कर तिक- Vol. Ix. 148