पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५७४

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dिai (तिरुपनि )-तिमनस्थिर , सनिमें से पाये। उत्तर पाक टक अन्तर्गत चित्तर विशेष समारोहके साथ उत्सव होता है, जिसमें दूर दूर तालुकके मेलपादि पाममें बमोन्माना पालक पिता रहता | के देशोंके यात्री पाते है। टेवमेना पोर बनो माता- था। इस ग्रामसे । मोन पश्चिममें जहां पहले दोनों में ! का मन्दिर पृथक रूपसे निर्दिष्ट है और पूजादि भी पनग मुलाकात हुई, पोछे मिलन पोर विवाह इमा। वहाँ । अलग होती है। तिरुतनि चार शामें विभक्त है । १ ला अब भी एक मन्दिरमें सुबंधण्यस्वामो और बलोम्मा. स्थान निरुतनि, या पर्वतके जपर और देवालयको की मूर्ति विराजित है। बनोको माता किमो अस्पृश्य बगल में है। यहां अधिकांश वैदिक अर्चक बास करते जातिको कन्या थो । कोई कोई कहते हैं, कि बलोको है। श्रा, मठ पाम, यहाँ ३० मढ़ो १० छ-और २३ माता सुप्रसिद्ध तामिलकवि तिरुवल्म्न वरको बहिन मण्डप, रसोभे रस स्थानको मठम कहते है। श्रा. सिवा और कोई नहीं। नमोनगुण्डा, नझोन नामक किमी राजामे ८० वर्ष ___ २रा प्रवाद-किसी समय लक्ष्मो और नारायपने पहले एक बड़ी पुष्करिणो खुदवाकर पहाड़के चारों पीर हरिण और परिणीके रूपमें कोतक कोड़ा को थो। माधवोंके लिए एक पक्के का घर बनवा दिया है, तभीसे हरिणी कपको सो पम ममय एक कन्या प्रमव कर राजाके नाम पर उक्त ग्राम का नाम पड़ा है ' ४ था, उसे उसी स्थान पर छोड़ स्वस्थानको चन्नी गई । पोछे अमृतपुर-यह ऐसा प्रवाद है, कि यहाँ के वर्तमान सपतीका नगरोके करब नामक राजने बसोमलय नामक जमींदारक पितामा वेष्ट पेरुमल राजाने किसो ममय पहाड पर उमका पालनपोषण किया । बसोमलयक। अत्यन्त कठिन रोगाक्रान्त हो इस स्थानपर दूध ओर मट्ठा निकट पाये जानेसे न्नडकोका नाम बलोमा रखा गया। पोकर पारोग्य लाभ की थी, तभीसे इस स्थान का नाम किसी समय सुब्रह्मण्य स्वामीने शिकार करते समय उसे अमृतपुर हुपा है। देवालय के दक्षिण ? मोलको दूरीमें देखा। पोर वे उमक रुप पर मोहित होकर राजाक एडुवन नामक एक जङ्गलमें ७ कुण्ड है। इनके समीप निकट रम कन्याक कर प्रार्थी इए। रम पर राजाने समकुमारियों का एक मन्दिर है। जो प्रभो भग्नावस्था बलोम्माको उसे भगा किया। सुब्रह्मण्य उममे विवाद में पड़ा है। कारवेट नगरके जमोन्दारा मन्दिरका कर अपने देशको चले गये। तिरतनिका मन्दिर बहन पुराना है। ग्यारवीं तिकस्तर पुण्डि-तञ्जोर जिलाके तिरुस्तु पुगिड नालुकका शताब्दोको चोल राजाभोंके समयमें इसका मूलपत्तन | सदर। यह तखोरसे १८ कोस पूर्व-दक्षिण में अवस्थित पौर विजयनगर के राजाओं द्वारा इसका संस्कार हमा।।। यहाँ अत्यन्त प्राचीन शिवमन्दिर है जिसमें उत्की यह मन्दिर एक अचे पहाड पर अवस्थित है । पहाडके शिलालेख है। अपर जाने के लिये दो पथ है और दोनों में सुन्दर मोढ़ियाँ तिमत्ताल-तिवेलो जिले के थातुर तालुकके मध्यस्थित बनी हुई है। यात्रियों के रहने के लिये, पथके बगल में एक प्राचीन ग्राम । यहाँ विमन्दिरको बाहरो दोवार- बहुत सो कोठरिया है । मन्दिर के पास ही कुमार, ब्रह्मा, | में प्राचीन शिलालेख खुदे हुए है। अगम्ता, पन्द्र, शेष. गम, विष्णु, नारद और ममर्षि | तिरुत्तरकोशमङ्ग-मदुरा जिलेमें रामनादसे ४ कोस मामके छोटे बड़े नो तीर्थ हैं। प्रत्येक माहात्माका | दक्षिण-पश्चिम अवस्थित एक प्राचीन ग्राम । प्रवाद है कि विषयक स्वतन्त्र इतिहास है। मन्दिरके सामने जो यहाँ पाड य राजानोको प्राचोन राजधानो थो। यहाँ पुष्करितो है, उमे लोग कैम्नामतीर्थ कहते हैं। सुब | का भास्कर और शिल्पकार्ययुक्त शिवमन्दिर देने योग्य अस्य खामोको पत्थरमय मूर्ति चतुभुज . पौर । मन्दिरमें बड़तसे शिलालेख खुदे हुए हैं जिनमें मब- उसकी लम्बाई मनुथ-सो है। कहा जाता है, कि ये से प्राचीन लिपि १३०५ १.मैं वोर पाण्ड य देवके राजत्व. शैशवकालमें अत्तिका हारा बांधे गये थे, इसोमे प्रति | कालमें उत्कोर्ण हुई है। वर्ष कार्तिक मासके अत्तिका नक्षत्रको रस मन्दिरमें | तिवमरियर-तचोर जिलेके मायावरमसे ३ कोस दक्षिण