पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तिकमाइस किपालावि ता। यह एक प्राचीन विषमन्दिर है, जिसमें तिवसापि-सबा संस्वत नाम दर्भशयमन्' यह विभिन्न पक्ष खुद ये शिलालेख है। स्थान मदुरा जिले के गमनाद जमींदागेके मध्य राममाद मरुप्पार्कल-सत्तर वाकट जिलेके अन्तर्गत बन्लाजापिट गारमे ३ कोस दक्षिणम पड़ता है। स्थलघुगण पोर से ४ कोस दक्षिण-पूर्व में अवस्थित एक पुखतोय। सेतुमाहामा म स्थानका एक पवित्र तीर्थक जैसा यहांका विष्ण मन्दिर विख्यात है। स्थानीय स्खलपुरणमें वर्णन किया है। रामनरके याविगण प्रायः इस स्थानको विष्णु मन्दिर और धत तीर्थ का माहात्म्य वर्षित। देखने जाते पोर यश के विण को दर्भ शयन मूत्तिको .यहाँ बहुतसे प्राचीन शिलालेख है। विसौके मतसे पहले पूजादि करते है। सेतुमाहामा लिखा है कि रामचन्द्र यह शिवमन्दिर था. फिर वही पब विष्ण मन्दिर के रूपम जी सहा जाते समय समुद्र किनार पा कर वरुणदेवको परिणत हो गया है। राध करने के लिये तोन दिन तक दर्भ वा कुख-सबा पर तिरप्याशूर (विपासुर)-बलपा जिलवा एक बार। सोये थे सोने या स्थान दर्भशयन नामसे विख्यात यह तिरुवा रमे १ कोस पश्चिम पक्षां१६६ २०७० । यहाँको मूलमन्दिरस्य शेषशायो विष्णु-मूत्तिको और देशा. २८५५ पूछमें पवखित । लोकसंख्या हो पण्डा लोग रामचन्द्रको दर्भशयन-मूर्ति बतलात प्रायः साढे तीन हजार है। १। देखनसे हो मामा म पड़ता है कि किसी समय या यह खान एक पवित्र तीर्थ समझा जाता है। पिन्दू स्थान समुद्र किनारे पर था। भी उस जमा राजापोंकि समयमें निर्मित यहां एक प्राचीन शिवमन्दिर समुद्र प्रायः तोन मोल पीछे हट गया है। मूल मन्दिरक है। यहां के स्थलपुराणमें इस स्थानका तथा शिवमन्दिरके सामने एक बड़ा सरोवर है, जिसे सेतुमाहामा चम माहात्म्य का विस्तारपूर्वक वर्णन है। मन्दिरमें जगह तोर्थ बताया है। यह सरोवर चारों पोर पत्थरसे बधा जगह चोल-राजापोंके समयको शिलालेख है। यहां था, किन्तु पभो उसका पधिकांश नष्ट हो गया है। स्थलपुराणमें लिखा है, कि महाराज करिकालने पुरम्ब- उत्तरमें एक पुकारियो है, जिसे रामतीर्थ कही। रियोंकोजोता था। मन्दिरको दोवारको लम्बाई तथा चौड़ाई प्रायः ४.. पहले पलिगारियोंके दौरामासे रक्षा पानेके लिये बहुतसे मनुष्य इस दुर्ग में पाश्रय लेते थे। १७ में पाट होगी। प्रवेश-हारके अपर एक बड़ा गोपुर । सर पायर कूटने इस दुर्ग पर पानामण किया। कम्पनी मूल मन्दिर यद्यपि बड़ा नहीं है, तो भी उसके चारों के समयमें यहां विनिव श्रेषोके सैनिक वास करते ___ोर बड़े बड़े मण्डप । बिसयमाघ मेतपतिने पण न्थे । बाद कभी कभी गोरोंकी फोज भी यहाँ पाकर ठह- . प्रत्यरक मडपोको बनवाया था। यहां के जगवाथजीका रती थी। मन्दिर ही सबसे प्रधान है। प्रवाद -तिरमाके तिरुप्पिाम्बियम्-यह स्थान तखोर जिलमें, कुम्भकोणमसे पाल्वर नामक एक व्यक्तिने चोय छत्ति कर या.मन्दिर २॥ कोस उत्तर-पश्चिममें अवस्थित है। यहां एक पति निर्माण किया था। मूलमन्दिर मरकत नोल पत्थर से बना प्राचीन शिवमन्दिर, जिसमें यत्र तत्र बहुतमे शिलाहुपा है। यह मन्दिर कब बनाया गया इसका निमय नहीं है। किन्तु यहाँक चोल राजापोंके ममयमै उत्यो तिरुप्पुण्ड-सखोर जिले के नागपहन शहरसे ५ कोस तेरहवीं शताब्दोके शिलालेखमें इस मन्दिरका प्रसङ्ग रह. दक्षिण-पश्चिममें अवस्थित एक स्थान । यहाँ एक प्राचीन नेसे अनुमान किया जाता है कि या मन्दिर उसके पाले शिवमन्दिर है, जिसमें बहुतसे शिलालेख देखनेम . पात। दर्भशयनके मन्दिरके ममीप वरुणकुण्ड है। मेतुः तिरुप्पुरापुर-साणा जिले में विनुकोण्ड पारसे 8 कोस माहात्मामें लिखा है-रामचन्द्रजोने तीन दिन दर्भ- सत्तरम अवस्थित एक पाम । यहाँ पसभ्य जातियों के शयनमें रह कर जब देखा कि वरुषदेव नहीं पाये, सब मृत-समाधि-निर्देशक बहुतसे प्रस्तरामन। । सनोंने गुस्सा कर समुद्रको मुखानिके लिये तोर शेड़ा।