पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५९७

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है। (भाष. १३१५) (वि०) २ वागामी, जिसको पाचस्व पलित लोग जो बाप पर तिकका शव गति टेढो हो। हार भारतवर्ष में बहुत पहलेसे ला पाता है। यरोप तियं च (स.पु.) जैनमतानुसार मनुष्य, देव पोर नार- जब फ्रोकाका विवरण बिलकुल नहीं जानता था, कियों के सिवा जगत्में जितने भी जोव है। वे सब नियंत पोकाकी जय परबोय सभ्यता विद्या नहीं हुई थी, हैं। नियंञ्च जीवके दो भेद-बम और स्थावर। सभीसे भारतमें तिलका व्यवहार प्रचलित है। पृषीके जैनधर्म शब्दमें नीर-तस्व प्रकरण देखो। प्राचीन ग्रन्थ वेदमें मका (पत्रवेद २०१० सिर्यवानुपूर्वी (# स्त्री०) जैनशास्त्रानुमार जोषको ६.१०४०।१, शक यजुर्वेद १८१२ और शतपयवाचवमें एक गति। इसमें उसे तिय ग्योनिमें जाते हुए कुछ काल ८.११॥३) । इसके सिवा हिन्दू के शाह और तपादि तक रहना पड़ता है। बहुत प्राचीन काल मे तिनका व्यवहार चला पा रहा तिर्यची (स.ली) तिर्यच स्त्रियां डोष । तिरखो, पशु- पक्षियों को स्त्री मादा पशु वा पक्षी। है। एतजिव भारतवर्ष के विभिन स्थानों को विभिष भाषायों में रस शस्यक जितने भी नाम प्रचलित,उन तिल (स० पु. ) तिलति नियति तैलेन पणों भवति तिल- सभोम सिम्म यह नाम एक प्रकार पविक्षत भावने क। स्वनामख्यात रविवस्यविशेष ( Sesamum in. dicum )। इसके पर्याय-होमधान्य, पवित्र, पिटतर्पण, ले लिया गया है। किसो दूमर शस्यके नामों को इस पापन्न, पुत्रधान्य, मोहफल और फलपुर । प्रकार समता भारतवर्ष में नहीं है। जिङ्गलि. विचलि तिलकी गिनती 'पञ्चशस्य में की गई है। इसका पादि चलित नाम यद्यपि परबोय 'जुम्म शलान्' शब्दशा व्यवहार मस्कृत में प्राचीन है, यहां तक कि जब और रूपान्तर है, तो भो यही पादिम नाम है, ऐसागहों पर किसी बोजसे तेल नहीं निकाला गया था. तब तिलसे सकते। भारतीय पायुर्वेद शाखा सबसे प्राचीन है। निकाला गया। इस कारण उसका नाम हो "तेल' उसमें भी तिलके आतिभेदसे गुणभेद पादि बतलाये गये । ( तिलसे निकाला इमा ) पड गया। पर पाज कल है।बीममण्डलका शस्य जान कर मध्यभारतके किसी अन्यान्य तेलके बीजोंसे (सरसों, पोस्त, बादाम पादि) जो निर्याम निकलता है, वह भी "तल" नामसे हो हिमालय, अफगानिस्तान, फारस, परब, मियपादिमी प्रसिद्ध हो गया है। अभी 'तेल' करनेमे तिलवा तेलन में जो रसको खेतो होतो है, उसमे अनुमान किया जाता ममझ कर सरसों का तेल ही समझा जाता है। है कि यह भारतका प्रादि शस्य न भो होपर या पार्टी तिल ग्रोममण्डलका शस्य है। पासात्य उजिद- हारा इस देशमें पहले पहल लाया गया था, इसमें सन्दे। शास्ववेत्ताओं का अनुमान है, कि तिलका पादि स्थान नहीं। इसका प्राय-नाम निल और ईरानो माम मम अफ्रीका महाहोप है। आज तक केवल १२ जातिके तिल मेम' देख का अनुमान किया जाता है कि वहस पारी 'ये गये हैं। अफ्रीका प्राय: बारह प्रकारके तिलो मेसे तिल एक ऐसे स्थानमें उपजता था जहाँसे रसको सेतो सिय प्रकारके तिल जङ्गली उपजते हैं। तेलहन बीजकी पूर्व और पलिमको भोर फैलरी फेलते बहुत दूर तक तियक फोकामें भी बहुत पहलेसे प्रचलित है। ग्रीक, फैल गई है। अंगरेज लोग रसोपाधार पर करते. को छोड़ा अरबीय प्राचीन ग्रन्धकारों के पन्नों में सिसम कि उफ्रेटोश नदोके किनारसे ले कर उत्तर-भारत तक क्योंकि खड़पब्द (भरबीय सिमसिम् ) पाया जाता है। मध्यएशियाके किसो स्थानमें इसका प्रादि वास था। प्रष्टस पौर दिउस कोरिदिस ने लिखा है, कि "मिसमें उमो खानसे पाय लोग रसे भारतवर्ष में, पीछे भारतीय सिमेम नामक तेलहन बीजको खेती होती है।" मोनो होपपुल में लाये । भारतमें प्रचार होने के पहले तिल परब कुछ और ही लिख गये हैं कि तिल भारतवर्ष से रस वा युरोपमें नहीं भेजा जाता था, यह मसातमासके देशमें लाया गया है। अरबोय "समसेम" वा "सिमसम" प्रमापसे पता चलता है। फिलहाल गवर्मेण्टको सरफ. दसे हो ग्रीक 'मिसेम' शब्द निकला है। से भारतीय पण्य द्रवोंका विवरण संग्रह करने के लिए Vol. I. 147