पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५९९

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महोने में तिल पकने पर काट लेतर चोर उसे कार दिनों गुणा-या तीन प्रकारके तिय उपजते । तक ढेरमें रखते है। बाद लाठोसे पोट कर समाज का तिल होकी फसल पीती है। वर्षा पन्त निकाल लेते हैं। प्रति बीघे २१३ मन तिल उपजता। बोया जाता पोर सिमपारी बाट लिया जाता है। ढाकामें कहीं कौं पासस, मामन और तिल तीनों एक लोहरदगा-तिल या तिमलो माद पाखिनमें चो साथ मिला कर बोते हैं। चैत्र मासके पन्समें एक बार पानो जमोनमें बोते और चैव वैमासमें काटी । पचामू हो जानसे पूर्ववत् खेत तैयार करते पोर प्रति बोधे । विभागका यह एक प्रधान स चिवांयी बापो १। सेर तिल, १० सेर पाउस पौर ६ मेर पामम बोते हैं। अपनता है। इस घमे तिस प्रति बोध २॥ मन पैदा प्रहरके उगने पर एक बार हलको चौको फेर देते हैं। होता पोर २) ले कर ३). मन विकता । । जेठ मासमें जव तिन पक जाते है, तो उसे काट लेते। आसाम-यहां सिलको खेतो तो पौर बस देयमें मेदनीपुर-कणतिल पौर सततिल जाली जमीन- रफतनी होती है। में आषाढ़ माममें बोते और प्रगहन वा पूस मासमें काटते सम-तिलको खेतो यहां बहुत कम। मन्द्राणी हैं तथा खशला-सिल रखके खेतमें तमाख मासमें इसको पामदनी होतीस देयमें तिकोने पर मोते और जेठ भाषाढ़ मासमें काटते है। भदई वा भी बनवामी मका व्यवहार राव करते। भाद्रीय तिल दलदल जमीनमें पाषाढ़ श्रावण मास में परार-यहाँ २८५४८ बीघा जमीन तिलको खेतीक बोया और भाद्रमें काटा जाता है। लिये है। प्रति बोधे सवा मनके हिसावले पाता। __हुगली-करणतिम्ल पाषाठ-श्रावण मासमें बोते पौर निजाम राज्यका और बरार प्रदेशमा सिल बहुतायतले प्राखिन-कार्तिक मासमें काटते है। खेसारीको तरस बम्पर होता एषा यूरोप भेजा जाता है। . इस जिले में तिल भो धानको नमोनमें दूसरी फसलक मध्यभारत-नागपुर नर्मदा पादिखामोंम तिसकी ती रूपमें बोया जाता है। पर यह उसो हालसमें होता है, अब होती है। यहां मिलको रवानगो भोपबा ते जब अतिवृष्टिसे धान सड़ जाता है। हुए है। इस प्रान्तम शारद और वासन्ती दोनों फसली फरीदपुर-यहां ऊंची जमोनमें माघ फाल्गुन तिल उपजता है । शरतके तिलको मधई तिल और पस- माममें काला सिल बोते और आषाढ़ श्रावणमें काट लेते तके तिलको हावड़ो तिल करते हैं। गरीबसपाही है। जो अमीन नोचो है, उसमें सफेद तिल श्रावण भादमें की जमोन रसको खेतो करत रस न तो बोते ओर अग्रहायमा पौष में काटतास जिलेमें मिल पधिक परिश्रम करना पड़ता है और न पषिक पपवेती और तिलका तेल दोनों ही प्रस्तुत होते है। ध्यय होते हैं। जमोन परके जंगपादिको साकार रंगपुर-यहां थावगा भाद्रमें कण तिल बोया जाता एक दो बार लजोत देते और तब बीज बोत भोर अग्रहायगा पौषमें काटा जाता है। जची जमीनमें हैं। एक मुट्ठो सिजसेतोबाघा जमोमबार जाती। हो यर फमल अच्छी लगती है। कहीं कहीं उरदके साथ हो साथ मे बोते हैं । अछो फल लगने पर प्रति बोधे एक बार कोड़मा भी पड़ता है। जब तक या पच्या तरह पक नहीं जाता, तब तक गो, बार, भेड़ १॥ या २ मम दाना निकलता है। सरसोंको दरमें इसकी पादि इसका कुछ पनिष्ट नहीं कर सकते। पके साथ विक्रो होतो है । लाल वा पाउस मिल बहुत कम बोया की से काट सेना चाहिये। पोसेपछी नमोनमें जाता है। पोष माघमासमें से बोले चौर चष्ठ पावाट. में काट लेते है। इसको दर सरसोंसे कम रहती है। बाप्रति बोधे २-३ मा उपजता पोर २॥)-10. मन __राजशाही-धामको जमीनमें चैत बैशाखमें बोते विकास निवा प्रतिबोधे में रुपये पाठ पाने सर्व और पाषाढ़ श्रावण में काटते है। लणतिल माख भी पड़ता है। तिल काट कर उस जमीनमें वानरा वा मासमें बोया जामा पोर पग्रहायणमें काट लिया जाता ज्वार बोई जाय तो सपाटेको पूर्णिोबर सामने स.मिलेमें तिलको खेतो बहुत कम होतो।। भातार तिरेरक निवसता.