पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६००

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चौर । मेर खली । प्रत्ये क काहका खर्चा , या।) करनेसे सिसकी छोमी नरम हो जाती है। बाद पौधोंको है। घानौसे तेल निकालनेजा कोई स्वतन्त्र रास्ता नहीं एक एक करके रस्मोमें गूंथ कर धूपमें पौधे लटका रहता है। तेन्द और खलो दोनों एक माथ मिल कर देते हैं। नोचे कपड़ा भी बिछा रहता है। धपमे धानीक अपर चले पात। बाद पानी दे कर खुली जब छोमो फट जाता है, तब तिल नोचे भर कर और तल पलग अलग कर लिया जाता है. इमामे यहाँका कपड़े में जमा हो जाता है। इस देशमें १५ मेर तिलमें- तल खराब होता है। से मेर तेल निकलता है। तिलका सूखा डंठल जलाने. पप्राब- प्रायः सभी जिलों में थोड़ा बहुत सिल हुमा के काम पाता है। हो करता है। करांची बन्दर हो कर इमको अधिकांश करनाल-यहां तिलका श्रेणोमेद नहीं है। नई रफ तनी होती है। रावलपिगडोकी पहाड़ी जमीनमें कड़ी जमोनमें यहां तिल अच्छा होता है। इसी कारण रमको फसल पच्छी होती है। इस देश में निम्न प्रायः नदक ममोप तिलको खेतो कुछ अधिक होती है। यहां अन्यान्य शस्ययुक्त खेतकि किनारे किनारे जाता है। इसे ज्वारके साथ मिला कर बोते है, कारणा, जिस तरह काला तिस हो यहां अधिक उपजता है। गरम जम्न ज्वारको खेती होतो है, उसो तरह इसकी भो । तिल सागरसको भूमी अलग कर बाजाग्में बेचते हैं। यहां काट कर ध पमें सुखाने हैं। अच्छी तरह सूख जाने मेर तिनसे २ मेर तेल निकलता है। पर छोमो काट लेते हैं भोर डंठलको फेक देते हैं । यहाँ झग-सरम इस्को महोमें तिल अच्छा होता है। पाँच सेर सिलमें एक सेर तेल मिलता है। रसोई तथा इस देवी पतली महोको तहसे पाच्छादित बाल के जपर दीपमें यही सम्म काम पाता है। इस देशम तिलके पोधेमें सिल बोया जाता है और उपजता भो खूब है। ज्वार, एक प्रकारका कोड़ा लगता है । जिसके एक बार लगन. उरद, मूग पादिके साथ मिला कर इसे बोते हैं। एक से फिर पौधेको बचाना मुश्किल हो जाता है। ही दो बार जोसमेमे खेत तैयार हो जाता है । श्रावणा युक्तप्रदेश-इस देश मष्ण और खेत तिल उत्पन्न भाद्र मासमें से बाल में मिश्रित कर प्रति बोधे ६॥ सेर होता है । कष्ण तिलको 'तिल' पोर खेत सिलको 'तिलो' बोते हैं। उत्तरी वायुके सगनसे फ ल झड़ जाता है। कहते हैं। तोसोको अपेक्षा तिल देरोसे पकता है। मोण्टगोमारी-यहाँ ज्वार, मोथा, मूंग बादिक साथ तिलको ज्वारकं साथ और तीसोको कपामके साथ मिला कर बोया जाता है। वर्षाकालमें इमको खेतो मिला कर बोनसे फसल अच्छी होती हैं। तिलके होती है। जल सौंचनेको सुविधा रहनसे दूसरे समय भी तलको अपेक्षा सोसोका तेन रन्धन कार्य में अच्छा को मकतो वर्षाके बाद इलसे खेतको एक बार जोत माना गया है। हिमालयके मोचे देरा, पोलिभीत, लेने और तब महो या किसी दूसरे अनाजमें मिला कर बस्ती, गोरखपुर भादि स्थानों में तिलको खेतो से बीत बोनेके बाद एक बार फिर इलमे जोत देना साधारण तौर पर होती है, पर बुन्देलखण्ड में पछा है। प्रति बीघे तीन पाव बीज लगता है। यदि अधिक है । इलाहाबादमें भो तिल उपजाया जाता है। पौदे धने जगे हो. तो कुछ उखाड़ डालने चाहिये । जन- इस देशमें इसको गिनती खरोफर्म को गई है। मोसममें साधारणमें प्रवाद है, कि जोक फरक फरक बाने, तिलके यह बोया जाता और कातिक प्रगहनमें काटा जाता है। धने बोन, भैसके बछड़ा जनने तथा स्त्रोके कन्या जनने में हलकी जमीनमें यह ख़ब होता है। बुन्देलखण्डम जो कष्ट होता है वह कहा नहीं जाता । यहाँ केवल काला हलकी पोलो महो सके लिये उपयोगी है । तिलके बाद तिल हो उपजता है। इस देश में विजलों के अधिक कड़ा उस जमोनमें निशष्ट कोदों वा कुटकोके सिवा और कुछ कर्ममे खेतीमें बहुत नुकमान होता है । तिल काट कर नहीं उपजमा। तोन बार खेतको भली भाँति जोत उसके डंठलों के मंहको एक ओर करके ढेर कर रखते कर कपास ज्वार भादिके साथ से मिला कर बोते हैं। पौर पर कोई भारी चीज दबा देते हैं। ऐसा किसान अपनी पच्छानुसार तिल मिलाते है । सिफ सिल