पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६०५

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पायज्ञ पत्र और होमादिकम सब निष्यान मामलों । चन्दनसे बक, पर, महापौर पाका प्रतिरूपं चिडित को जयपुङ्ग, क्षत्रियोंको त्रिपुण्ड्रक, वैश्योको पाँचन्द्रा किया करते।। कति और शूद्रोंको वतलाकार तिलक करना चाहिये। गापादिक बोधर्म एक रसव की रेखा रातो है, (आहिकतत्त्व०) जो सीखरूप समझो जातो। वायोखण्ड में इन अपुगड, मिट्टोसे, विपुण्ड, भस्मसे पौर तिलक वैणवाचारोंक विषय रस प्रकार लिखा है-ब्राह्मण, चन्दनसे करना चाहिये । (पादन०) जो पानि पौर क्षत्रिय, वैश्य पोर शद्र वा अन्य कोई यदि शरीर पर अनाचारी है तश मनमें पापाचरण करते हैं, वे भो विपु. शाल पादि विपरित करें तो उन्हें देखते हो ण्ड क तिलक धारण करनेसे समस्त पातकोंसे मुल पाप विनष्ट होते है। हो जाते हैं। अध्वं पुण्ड.का धारक चाई जहाँ मरे और बहुतों के पास इन तिलकोंको लकड़ी वा धातुको मर कर चण्डाल ही क्यों न हुआ हो, वह स्वर्गलोकमें परहसोहै। वे उसे ही पनाविशेष पर परित कर जाता है । ( पद्मपु०) शरोरको पवित्र बनाते हैं। कोई कोई उस धातुमय श्राहक को पैत्रिक कार्य पर्थात् बाद करते समय मुद्राको उत्तल करके शरीर पर पति करते है। परन्तु अर्थपुगड, त्रिपुण्ड, वा चन्द्राकार तिलक करके बाद वा यह सावित है। हहबारदोयपुरा में लिखा पत्रिक कार्य न करना चाहिये। (विश्वप्र०) है-यदि कोई पुरुष शहादि चित्रको उत्तम. करके सी. वेदनिष्ठ ब्राह्मणीको अध्वं पुण्ड, विशूल, वालचतु: रसे लगाव, तो वा पातालका भोग करता पा शत रस्र वा अईचन्द्रादि चिक नहीं धारण करना चाहिये। कोटि जन्मपर्यन्त पणालयोनिमें रहता है और नरकम वेदनिष्ठ ब्राह्मण आदि प्रज्ञानतावश न चिडोको धारण जाता है। ऐसे व्यक्षिके साथ बातचीत करनेसे नरक करे, तो वह अवश्य हो पतित होगा, इममें तनिक भी भोगना पड़ता है. सन्देह नहीं। (निर्णयसि सत्र.) श्रीसम्प्रदायको तरस रामानन्दियों में भो तिलकसेवा तिलकमेवा वैष्णवाका एक मुख्य साधन । प्रचलित है। परन्तु या ये अपनो अपनी रुचिके पनुमार ये लोग ललाटादि हादश भङ्गों पर गोपीचन्दन पौर पन्य जईपुण की पन्तवा रखाका रूप पौर परिमाण कुछ मृत्तिका हारा नाना प्रकार तिलक लगाया करते हैं। विशेष कर दे और प्रायः गमानुनको अपेक्षा कुछ इनके तिलकद्रव्यों में हारकाका गोपीचन्दन हो मर्यापेक्षा छोटा बनाते है। प्रशस्त है। व्यङ्टादिको मृत्तिका भी तिलकके लिए दादूपन्दो लोग तिलकमेवा और माला धारण उत्कष्ट कही गई है।* महौं करते । मुलकदासो सम्प्रदाय ललाट पर एक छोटी ___परम भक्तिपूर्वक व्यङ्गटाट्रिक इदको मृत्तिका ले रेखा पति करता है। कर जई,पुण्ड क तिलक धारण करना चाहिए। ऐसा रामसनेही सम्प्रदाय के लोग लखाट पर एक वर्ष करनेसे हरिके सदृश लोकको प्रालि होती है। श्रोवणव. दीर्घ पुण्ड, सगाया करते है। गण नासामुलसे ले कर कैश पर्यन्त दो अव रेखाएं समकादि सम्प्रदाय पर्थात् निमात सोग गोपीचन्दन- अहित करते है और उन दोनों रेखागोंके नासामलस्पष्ट की दो जई और उसके बीच में एक काला वर्तुलाकार उभयप्रान्त, अन्य एक भू मध्यगत रेखाके हारा संयुक्त हो तिलक लगाते है। जाते हैं तथा उन दोनों अर्ध्वपुण्ड के बीच में पीत पथवा * "तथाहि तप्तशक्षावि लिंगचिहतनुर्नयः। रक्तवर्ण की और एक रेखा अहित करते है। स सर्वपातकामोगी चाण्डालो जम्मकोटिभिः। इसके सिवा ये लोग हृदय पौर बाहुषों पर गोपी तद्विज' तसथाहादिलिगांकिततनुहय। सम्भाष्य रौरव याति यावदियश्चतुर्दशा"

  • हरिभक्तिवि. धूत गारुग्वयन, हरिमफिवि. २६वां अ.।

(बृहन्नारदीयपु.) Vol. I. 149