पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६२६

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११४ तिसोधु-तिवी तिलोत्तमाको पाने के लिए सुन्द पोर उपसन्दमें पर हुए पदार्थका रस लाइ समय तक रहता है। शरीर के स्पर विवाद हो गया और उमी युद्ध में दोनोंको मृत्यु हो रहा हारा यह रस सोख लिया जाता है तो तिजी पियक गई। कर पूर्व वत् हो जाती है लेकिन इसके पहले यह रससे तिलोथ -शाहाबाद जिले के ससेगम उपविभागका एक बढ़ो हुई दोख पड़ती है। ग्राम। यह प्रक्षा० २४४८७० और देशा० ८७६ पर होने पर यह तिल्ली कुछ बढ़ जातो है। क्योंकि पू में अवस्थित है। लोकसंख्या प्रायः २५८२ है। यहाँ उसमें रम पा जाता है। ऐसो अवस्थामें उसे छेदने से शीतलादेवोको एक प्रतिमुक्ति है, जिस पर १३५२१. लाल लेह निकालता है। इस रोगमें मनुष्य बहुत पडित है। इस देवोके कारण यस स्थान बहुत मगहर कमजोर हो जाता है और मुंह सखा रहता है । वैद्यक. हो गया। प्रति वर्ष कार्तिक मासमें यहां एक मेला शास्त्र में लिखा है कि दामकारक तथा कफकारक पदार्श लगता है जिसमें १००००० मनुष्य एकत्रित होते हैं। के विशेष सेवन करनेसे लोइ कुपित हो कर कफ हारा तिलोदक (स• लो०) तिलमिश्रितः उदक, मध्यन्नो, मोहाको बढता है तब तिलो वद पातो है। पायुर्वेदके कम धा । तिलमिश्रित जल, तिल मिला हुआ पानो। अनुमार जवाखार, पलासका क्षार, शहजो भस्म आदि तिमोरी ( स्त्री. ) एक प्रकारको मैना। लोहाको उपयुक्त घोषध है। डाकरोमें कुनैन, खिया तिलोहमा ( क्रि. ) तेल लगा कर चिकना करना। और लोहा-मिश्रित पोषध तिमी बदने पर दो जाती तिलौदन (म. को०) तिलमिश्रित पोदन. मध्यलो हैं। से मोहा और पिलहो भो कहते हैं। कर्मधा० । कयर, तिलको खिचड़ी। तिन्न नामका पत्र।३.पामाम और बरमामें अची तिलोहा (हि वि०)जिमका खाद या रग सेलसा हो। पहाड़ियों पर मिलनेवाला एक प्रकारका बांस। इसकी तिलौरी (हि. मो. ) तिल मिलो हुई उरद या मृगको जंचाई पचास फुट तक पोर गांठे दूर दूर पर होता है। बगे। तिल्व (सं.पु.) सिललोति तिल-वन्। उल्वादयश्च । तिलपिन (म. पु. ) तिल पिन वेदे डिच्च । बन्ध्यतिल, उग १६५ इति सूत्रण निपातनात साधुः । १ लोधवक्ष, बझा सिल। .. लोधका पेड़। २ खेतवर्ण लोध। ३ रालोध, लाल तित्य (स.की. ) तिलानां भवन क्षेत्र वा तिल-यत्। लोध। विमाषा तिलमापोमाभंगाण्युभ्यः । पा ५।२।४। १ तिलको तिल्वा ( स० पु० ) सिल्व-स्वार्थे कन्। १ लोध, लोध । खेत । ( वि०) २ तिलाय हित हितार्थ यत्। तिलका २ तिनिश । हितकर । तिलोपादक। तिल्वनो (स. स्त्री.) कर्ण स्फोटा, एक प्रकारको बेल । तिजना (हि. पु. ) तिलका मामक वर्णहत्त। तिल्खिल (सं. पु. ) देवयजन-स्थान, वह जगह जहां तिर (हि.पु.) १ एक प्रकारका चिड़िया। (वि०) देवताको पूजा को जाती है। २ तिलड़ा। तिवारोब्राह्मण जातिको एक उपाधि । इस नामक तिमा (५० पु.) १ कलावत का नाम। २ पगड़ी, ब्राह्मण गौड़ व कान्यकुल पादि सम्प्रदायमें विशेष है। दुपर या साडोका कसावत्त का काम किया इषा यह शब्द त्रिवेदी शब्दका अपभ्रंश रूप है। पूर्व काख. चल। ३ वह वस्तु जो शोभा बढ़ाने के लिये किसो में जो लोग तोमों वेदोंके जाता थे, उन' राजधर्मसभासे चीजमैं सगाई जाती है। पौर विश्वविद्यालयोंसे निवेदोको उपाधि मिलती थी। तिजामा (हि.पु.) तराना देगे । तदनुसार उनका कुम भो त्रिवेदी कहाते कहाते भाषा- तिनो (स्त्रिो ) पटके भीतरका एक अवयव । यह भाषियों द्वारा तिवारी कहाने लग गया। मांसको पोली गुठलीके प्राकारको होनी है और पस. तिलामो (हि. वि. ) सिषासी देखो। लियोंके नीचे पेटको बाईपोर रहती है। इसमें खाए तिवी (हि.सी.) खेसारी।