पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६३१

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और काला । सका.पैट कुछ भारो, दुम छोटो चौर परमें वास्ववियाको प्रयोग लोगों में प्रचलित नहीं है। चार जगलियां होती है। यह एक जगह कमो खिर नहीं . स्त्रियां प्रायः पाचारो होतो। विवाह के समय रहता । हिन्दुस्तान में यह प्रायः कपास, गई या चावल के कोई विशेष अनुष्ठानादि नहीं करने पड़ते । खाना पोना खेतोंमें मालमें फसाकर पकड़ा जाता है। इसके पंडे पोर नाच गान यहो विवाहका प्रधान पा । रस चिकने और धब्बेदार होते है। ममय बन पोर नदो देवताकै उहेश एक सुपरके . विशेष विवरण तित्तिर शब्दमें देगे। बच्चे को बलि दो जातो है। बाबाको माता एक पानमै तोता (हि.वि.) १ तिल, जिसका स्वाद तोखा और शराब लाकर उसे कन्याकेश पप करतो फिर चरपरा हो। २वट, कडपा। गोला, नम। कन्या वरको गोद में बैठ कर उस पावको वरने हाथमें (हि.पु.) ४ जोतने बोनेको जमोनका गोलापमा दे देतो है। माधो शराब ताबा खुद पो सेता पौर ५ जपर भूमि । । को या रहटका पगला भाग। माधो पानिनोको पिलाता है। बाबा मातापिताको ७ ममोरके झाड़का एक नाम। पहासे यदि विवाह हुमा हो. तो बरको तीन वर्ष तक सोन (हि. वि.) १ जो दोसे एक पधिक हो। (पु.) ससुराल में रहकर काम काज करना पड़ता है। वह संख्या जो दो पोर एकत्र योगसे बनतो हो। वे लोग काली पोर सत्यनारायचकी पूजा करते सोमपान (हि.पु. ) एक प्रकारका बहुत मोटा रसा। । पूजाम बाब नियुश नहीं होते। .पोचार नामक इसकी मुटाई एक फुटसे अधिक नहीं होती। खजीतोय एक घर है, जो भानुनामसे पुरोहितका काम सोनपाम (हि.पु.) तीनपान देखो। करता है। जब किसोको मत्यु होती है, तब मत. तीनखड़ी (हिं. स्त्री० ) तीन लड़ियों की माला, तिलड़ी। को घरके बाहर ले जाति पोर एक मुर्गीको मार कर तोनी (हिं. स्त्रो०) तिबोका चावल। . चावल के साथ उसे मत व्यक्षिके पांव तले रख देते, सोपड़ा(हि.पु.) एक प्रकारका औगार जो ममी जहाँ दाहकर्म होता , वहां मृतक पानीयगण ७ दिन कपड़ा बुनमेवालोंके काममें पाता है। इसके नोचे अपर तक पात पोर प्रति दिन मतवी देशसे एक एक मुर्गों दो लकड़ियां लगी रहती है। मार कर उसे चावल के साथ वहीं रख जति । पोहे तोपरा (ढिप रा)-त्रिपुरा और चायामको पार्वस्व प्रदेश मतको भका लाकर पहाड़के अपर रखते और उसके वासी एक भ्रमणशील जाति। पाराकानमै रम्ह मरा अपर एक कोटामा घर बना पर उसमें मतके पास कहते है। इस जातिका प्रक्षत जातिगत नाम तोपरा बहुत सावधामोसे रख छोड़ते। नमसे एक बेयो नहीं है। इनमें से बहुतोंका त्रिपुराके पाय त्य प्रदेशमे बास राजवंशो नामसे प्रसिद्ध है। वे अपनेको विपुराक राज. होने के कारण ये लोग तोपग नामसे मशहर हो गये वंशीय बतलाते है। है। पूछने पर भो ये अपनेको बङ्गालके 'तिपारा' बत- सोमारदारी (फा• स्त्रो०) रोगियोंकी सेवा-वृषाका वाम। लाते है। यूरोपीय मानवतत्त्वविदगण इस जातिको तोय (हि.खो०) खो, पौरत। लोहित्यको मुक्त करते है। इन लोगोंका पाकार प्रकार तोर (सको०) तोपच । नबादिका कूल, नदी पादि- बहुत कुछ बङ्गालियों जैसा होने पर भी ये उनसे मज- का किनारा। नदो विनारसे ५० हाथ तक परिमित खान. बूत माल म पड़ते हैं। को तोर कहते है । भाद्र मासकी सणा पतदर्थी तिथिम ये लोग खेतीवारी करके अपनो जीविका निर्वाह जहाँ तक जल शावित होता है, वहा तक गर्भ और उस करते है। जगह ५. हाथ तक तीर कालाता है। पुराणों के मतसे रन लोगोंको खेतोबारो मघ जातिसी होती है। गङ्गादि पुण्य नदोके किनारे किया मा पुस्य या पाप लुमाई, मध घोर हिन्दुपाको अपने दलमे सानिमें ये चिरस्थायो रहता है, इसलिये भूलसे भो पुणानदियों तनिक भी. पापत्ति नहीं करते। के किनारे पाप कार्य नहीं करना चाहिये और सदा . खेतोबारोमा