पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

होता है। कायणोधनतीर्थ-यहाँ बान कर देशकी पदको प्रालि होतो ।। फलकोतोच और मित्रवती- सधि होती है। मोकोहारतो-फन्त, स्वकीय लोको. नारदने यहां सभी तीचं मिलाये थे । साम करनेसे सर्व हार । श्रीसोर्थ --फल, उत्तम श्रीप्रालि । कपिलातोर्थ- तीर्थ खानका फम्त होता है । मनुवटीतीर्थ-बान देवता यहां स्नान तथा देवता और पितरोंकी पूजा करनेसे और पिपूजन करने सहम गोदाम तुल्य फल होता है। सहन कपिलादानका फल होता है। सूर्य तीर्थ -यहां कोषकोहषहतोसङ्गमतीर्थ-स्मानसे पापोंका नाश होता उपवास, पिटपूजा और सान करनमे अग्निष्टोम फल और है। किन्दमकूप तोर्थ --तिलप्रस्थदान करनसे ऋणत्रय. देवनाकको प्राप्ति होती है। गोभवनतार्थ ---यहां अभि- से मुक्ति पोर परमसिद्धि प्रालि होती है। वेदोतीर्थ- षेक करनसे सहम गोदानका फल होता है। शझिनो सान करनमे महन गोदामका फम्न होता है। पहः तौथ-यहाँ सान करने मे उत्तम वोर्य को प्राप्ति होती और सुदोमतीर्थ- यहां दान करनेसे सूर्य लोक प्राप्ति होती है। .. ब्रह्मावत तोर्थ मानका फल, ब्रह्मलोकको प्रालि। मृगधूम्तोथ में खान और वाममपूजा करनेसे सम्पर्ष मुत्तीर्थ-यहां खान, पिट और देवपूजा करमेसे पखमेध पापोंका नाश भोर सूर्य लोकप्रालि, सरस्वतातीर्थ में स्नान तुल्य फल और पिटलोक को प्राप्ति होती है। अम्बुमतो. करनेमे स्वर्गवास पौर नैमिषकुजतोर्थ में स्नान करनेसे तीर्थ-यहां स्नान करनमे समस्त रोगीका नाश हयमेधका फल होता है। कन्यातो में स्नान करनेसे और ब्रह्मलोककी प्राप्ति होता है । शीतवमतीर्थ-या ज्योतिष्टोमका फल, ब्रह्मस्थानतीर्थ में स्नान कर सेि शूद्रको केशमुण्डन करनसे पवित्रता होती है। ज्वाननोमापह- ब्राह्मणत्व-प्रालि, सप्तमारस्वततीर्थ में स्नान पौर जप करनेमे तोर्थ -यहां स्नान करनेमे परमगति । प्राप्त होतो ब्रह्मलोक-प्राप्ति, अग्नितीर्थ स्नानसे वडिलोक लाभ, । दशाखमेधतोर्थ-स्नानका फल, निश्चमागति- विश्वामित्रतीर्थ मानम बामण्यप्राप्ति, योनितीर्थ को प्राप्ति । मानुषतीर्थ ---यहां व्याधपोरित कृष्ण- स्नानसे ब्रह्मलोकवास, पृथं दकतीर्थ में अभिषेक करनेसे मृगों को, अवगाहन करनेमे मानुषत्व प्रान हा था। अश्वमेध-फल पार पापियोंको स्वर्ग लाभ होता है। फल, पापोंका विनाश । पापगानदो-यहां देवता और मधुम्रवतीर्थ में स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल पितराँके उपलक्ष में ब्राह्मणभोजन करनेसे कोटि ब्राह्मण होता है। सरस्वत्यरुणासङ्गमतीर्थ में तीन रात्रि उप- भोजनका फल लाभ होता है। प्रमोडम्बर तीर्थ- वास और स्नान करने ब्रह्महत्याजनित पापका नाश यहाँक मलर्षिकुण्ड में स्नान करनेसे सम्म ण पार्षीका नाश होता है। पौर ब्रह्मलोककी प्राप्ति होती है। अवकोण तीथ खानसे दुर्गतिका नाश होता है। कपिलकेदारतीर्थ-यहां तपस्या करनेसे समस्त शतसहस्रतीर्थ और साहसकतीर्थ में स्नान करनेसे पापों का नाश और अन्तनिको प्राप्ति होती है । मरकः सहस्र गोदानका फल होता है, दान और उपवाससे फल- तोर्थ-वृषध्वजको प्रणाम करनेसे समस्त काममाओंको को शतगुण सधि होतो है। रणकातीर्थ में अभिषेक, सिद्धि और शिवलोक प्राप्ति होतो है। इलास्पदतीर्थ- देवता और पिपूजन करनेसे समस्त पापोंका नाश पौर खान, देवता और पिटपूजासे दुर्गतिका विनाश और पम्निष्टोमयन्त्रका फल होता है। विमोचनतीध में मान वाजपेयका फल प्राम होता है। किन्दानतीर्थ-स्नानसे ___ करनेसे समस्त प्रतिग्रह-पापोंसे मुक्ति मिसातो है। पक्षवट पप्रमेव दानका फल प्राप्त होता है। किंजप्यतोध-स्नान तीर्थ-फल, महत् पुण्यलाभ पौर स्वर्गगमन । तैजस- से प्रममय अपका फल होता है। अम्बाजन्मतीर्थ-यह तीर्थ-यहां ब्रह्मादि देवोंने कात्ति केयको सेनापति पद पर नारदका स्थान है ; यहां मृत्यु होनेसे अनुत्तम लोककी अभिषित किया था। कुरुतीर्थ में स्नान करनेसे कद्रलोक प्राप्ति होतो । वैतरणोनदीतीर्थ-यहां महादेवको प्राव होता है। स्वगहारतीर्थ में जानेसे पम्निष्टोमयाका पूजा और शाम करनेसे समस्त पोपोर मुक्ति और परम फल प्राप्त होता है। अनरवतीर्थ में जानने दुर्गति नष्ट