पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६४४

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६३२ तीपाक-चीपर वादेशः । बहुसंख्यक तो विशिष्ट, बहुत तोसे ३ वा सहर जातिविशेष । 'ब्रह्मवैवर्तक मतमे, • घिरा एमा। यह जाति क्षत्रियके पोरम और राजपूत स्त्रोके गर्भ से तोर्थ वाव (म. पु. ) तोय स्य व वाको वचन यस्य, उत्पनी हुई है। पराशर पदति के अनुसार यह जाति बहुव्रो । केश, बाल। चूर्णक्षके पौरसमे उत्पन हुई है और प्रधानता मत्सा तीर्थ वायस ( म० पु. ) तोथेवायस ५व । तोय काक और हलव्यवसायो है। यह जाति पन्तान है। सो तीर्थ काक दम्रो। तोवर जातिसे तेलोको स्त्रो-हारा दस्यु और लेट जातिका सो शिला (संस्खो .) किमी तीर्थ में स्नान करने को उत्पत्ति हुई है। तोवरी भोर. लेटसे भाम, मन. माठर पत्यरको सोढ़ो। भड़ाकोल और कान्दर इन छ: जातियों को उत्पत्ति है। तोर्थ शौच (सं० लो. ) तीर्थस्य खस्य शोच परिष्कारः बङ्गाल और विहारके किसो किसो स्थानमें यह ६-सत् । खटादि परिष्कार । सोयर, तोपोर, गजवंशो अथवा मछुपा नामले प्रसिद्ध तोर्थ मेनि (सं० पु. ) कुमारानुचर माटभेद, काप्ति केय. को एक मालकाका नाम । किमो किसोने सोयर पोर धीमर इन दोनों जाति- सोर्थ मेवा ( मं० स्त्रो०) तोर्थ सेवा, ७-तत्। तोथ गमन, यों को एक बतलाया है, पर ऐसा समझना है। तीर्थ यात्रा। धोमर कसार जातिको एक श्रेणी है। परन्तु तोवरोंका सोथं भवो (सं० पृ. स्त्रो० ) तोथ घटादिजलप्रालिस्थान कहारों से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। पावति और सवत मेव-णिनि । १ वकपक्षो, बगन्ना । (वि०)२ तोथ - प्रतिमें भो धोमगेको पपेक्षा तोवर निकष्ट मालूम यात्रो, जो तीर्थ में जाता है। पड़ते हैं। तोर्थाटन ( म पु०) तोर्थ यात्रा। ___ भागलपुरके तीयगेमें बामनयोग्य पोर गोवरिया ये सोयिक (सं० पु.) १ तोयं कारो ब्राह्मण, पंग। २ बोह- दो थाक पाये जाते हैं। बामनयोग्य सत्शूद्र समझी जाते मतानुसार बौद्ध धर्म विषो ब्राह्मण । ३ तोहर। पौर मैथिल ब्राह्मण उनका पौरोहित्य करते हैं। ये सोर्थि या (जि. पु०) सोर्थ कराको माननेवाले, जैनो । दशनामो गुरुके शिष्य है। परन्तु गोदावरिया लोग तीर्थ करण (सं० वि० ) पवित्रोकरण, जिससे पादमो. होन समझे जाते है और शराब, सूपरका मांस प्रादि पवित्र हो जाय। तोर्थ भूत ( म० वि० ) तोर्थ -भू प्रभूतनाव च्वि । तीर्थ भक्षण करते हैं। बङ्गालके गोखामो लोग गोवरिया में गुरु- स्वरूप पवित्र। गौ जिस स्थान पर विचरण करतो है, का काम करते हैं। पतित ब्रामण इनके पुरोहित है। में तोयर लोग अपनेको राजवयो कहा वही स्थान पवित्र अर्थात् तीर्थ स्वरूप है। .. सोय (म० पु० ) तीर्थे भव यत् । १ रुद्रभेद, एक रुद्रका करते हैं। मेमनसिहके सोयर प्रपनको तिलकदल नाम । २ महाध्यायो, सहपाठो।। बतलाते हैं और गङ्गा किनारके तोयर सूरजवंशी। सोलखा (हि. पु. ) एक प्रकारको चिड़िया। सोयर जातिमें चौधरो, छड़ोदार, ममाह, ममझन सोलो ( फा० स्त्रो०) १ बड़ा निनका, मौंक। २ धातु (महाजम), मरर, मुथियार आदि उपाधियां पायी जातो पादिका पतन्ना पर कड़ा तार । ३ पटबोंका एक मोजार । हैं। इनमें पतवाल, काश्यप और जयसिंह इस तरह तोन गोत्र हैं। . इससे रेशम लपेटो जाता है। ४ नरो पहनाई अनिको कारवंम दरकोको मोंक । ५ जुलाहों के सूत साफ करने पूर्व बङ्गालके तोवर तीन भागोंमें विभक्त हैं-प्रधान, को सोलियों को कू चो। परामाणिक और गण। प्रधाम सबसे श्रेष्ठ है, उसके तोवर (सं० पु.) तोर्य ते वाच । छिस्वरछत्तरेति । * "मथः क्षत्रियवीर्येण राजपूतस्य योषिति । उण ३११११ समुद्र । तो यति कर्म समामि करोति तीर- भूव तीवरश्चैव पतिता गजदोषितः।" वरच। ३व्याध, बहलिया। (अ .. १..)