पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६६४

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१५२ सुधरिलखा का प्रस्ताव नहीं है, दिलोक सबाटने हो उन्हें ऐसा पंथ और भो नीचे है। इस तरह चन्द्र, महल, बुध, करनेका उपदेश दिया है, नहीं तो ऐमा अमङ्गस प्रस्ताव हम्पति, शुक्र और शनि इनके वृश्चिक, कर्कट, मोन, तमर खाँ कमा करनेका साहस नहीं करते। जो कुछ ममर, कन्या और मेषराशिमें पूर्वोत उच्चायो पनुमार हो, तु धान खो राजभतिक बलसे वैमा हो कर अपना मोच परममोच विचार करना पड़ेगा। इन सब बोका धनरत्न, हाथी, घोड़ा और अनुचरों को माण ले ६४३ तोमा प्रशस्फुटगणमामें मम्हालना चाहिये। हिजरी में दिलोको गये । समग्णावतो नगर तमरखाँक .. मेष राशि विका उच्च ग्रह, हषराशि चन्द्रका. अधीन हो गया। तु धामखाने दिलोमें जा कर महा मकर मङ्गलका, कन्या बुधका, कर्कट वृहसतिका, मौन सम्मान प्राप्त किया और उनकी गजभक्ति तथा क्षतिपूर्ति शुक्राका और तुम्मा शनिका उच्च ग्रह है। सब ग्रह उच्च 'खल्या उन्हें तुमर खासे परित्यक्त अयोध्याका शासन- गृहस्थितसे यदि पृर्वोक्त उच्चायम रहे, तो ग्रहोंको . कर्व त्व दिया गया। इसके कई एक महीने बाद सम्म गर्ण वलो समझना चाहिये। इन्हीं ग्रहों के ऊंचे सम्राट नमीमहोन् महम्मद शाहकै मिहामन पर आरूढ़ स्थानका नाम तुङ्ग है तथा परमाञ्च स्थानका नाम सुता होने पर धान खनि पयोध्या जा कर वहांका शामन है। ग्रहण नोच घरमें यदि नोचाधम रहे तो उन्हें बल भार ग्रहण किया। यहां पर उन्होंने यथेष्ट सुख-शान्ति होन जानना चाहिये। जन्म कालोन सिह, ष, कन्या पार थो, किन्तु कुछ कालके बाद ही उनकी मृत्यु हो और कर्कट राशिमें राहुग्रहके रह .. तुझा होता है। '. गई। पाश्चर्य का विषय यह था कि जिस . रातमें राहु तुझ हर्निसे मनुष्य नाना धनरत भूषित राजराजाधि. अयोध्या त घान खाकी मृत्यु ही, ठीक उसी रातको पति पौर चिरायु होता है । ( कोष्ठी प्र. ) बङ्गाल में समर खाँको भी जोवनलीमा शेष है। मूल विकोणको भी तुम कहते है । सिंहराशि रविका -(. पु. ) तुज हिमायो यस. ववादित्वात् त्रिकोणग्रह, इष राशि चन्द्रमाका मूल त्रिकोण है। मेष कुत्व । १ पुब्रागहच । २ पर्वत, पहाड़। ३मारिकेल । मङ्गलका, कन्या बुधका, धनु रतिका, तला शुक्रका ४ बुधग्रह । ५ गण्डक । (वि०) ६७, अंचा। (को०) और कुम्भ शनिका मूल विकोणम है। त्रिकोण पंश ६ ग्रहविशेषका गणिभेद, यहाको चराशि । ज्योति- रवि प्रभृति सन ग्रहों के सिंहादि साबराशिका विभावि षमें इसका विषय म प्रकार लिखा है, यवनाचार्य पंग यथाक्रमसे मूलत्रिकोणांश कहकर प्रसिद्ध है। मतमे मेषादि मल राशि, सूर्यादि सनग्रहों के दामादि यथा, रविको सिंहराशिका बोसवा 'श, मङ्गलकी मेष- 'पंग यथाक्रमसे उच्च और परमोच मेष शशिका राशिका बारहवां पंग, स्पतिको धनुराधिका दशवा दशांश रयिमे उच्च तथा दशाशका शेष अंश हो परमोच बंश, मुनाको तुला राशिका पन्द्रहवा शपोः शनिवी है। वृष राशिके तीन अंशचन्द्रस चोर हतीयांशका कुम्भराशि का बोसा अंश मुलत्रिकोण अंश है। इनमें से श्ष श परमोच्च है। मकर राशिका पहाईसवाँ अंश बुध और चन्द्र में विशेषता यह है कि बुधके सु-चांधक मालमे उच्च तथा पहाईसवका पृशि ही परमोच्च है। बाद दांश पौर चन्द्रमाके मु-उच्चायके बाद सत्ताईसा काराशिका पन्द्रहवा पंच बुधसे सच पोर पन्द्रहवाका अंश मूलत्रिकोण पर्थात् बुधका पन्द्रहवाँ अंश सु-उच्च है, पूर्णाश को परमोच्च है। कर्कट राशिका पांचवा प्रश इसलिये कन्याराशिक पन्दहर्ष शके बाद दोण मूल- उच्च और पांचवेका शेष की परमोच। मोन त्रिकोण तथा चन्द्रमा हतीयांश सुरुचके बाद सत्तार- गशिका मत्ताईमा यश कसे सौर मंत्तारसवेंका साथ मूल त्रिकोण होता है। मिथुनराशि राहुका शिष की परमोच्च है। तुला राशिका बोसों पंश उमर, कुम्भरापि मूल पिकोगा, कन्या राशि स्वच्छ पनि उच्च और बोसवैका शेष अंश हो परमोश है। इन शक और शनि मित्र तथा, सय, चन्द्र और माल ये मेषादिराधियाक साम धरमें रवि प्रभृति सापही शत्रु और मिथुमक बीमवे पंपको सोच समझना • के दशमादि के यथाक्राममनौरीचौर बाबा शेष चाहिये। सिरापि केतु का मूलनिकोष