पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६६६

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११४ सुगम-गौनास लाभ (म' को) तुझ्भ कर्मधा : सूर्यादिको उच्चराशि तुरम ( स० पु. ) तु वेहोरेमो यस । गन्धद्रव्य- मेष प्रभृत्ति । तुग देखो। भेद। तभद्र (म• पु.) तुङ्गोऽपि भदः । मदमत्त हम्तो, मनः तुङ्गवाए (म0पु. ) तलवार के २२ हाथो मेसे एक। वाला हाथो। तुजवीण (सं० को.) तस्य शिवस्य वीज, तत् । तुङ्गभद्रा (म. स्त्री. ) त.धामा भट्रा निर्मला च। पारद, पारा। नदीविशेष, एक नढोका नाम । त प्रवेणा (म'• स्त्रो. ) नदीभेद, एक नदीका नाम । 'तुगमदा प्रयोगा वाया कावेरी चैव हि । 'विनदी पिगला वेगा तुगवेणां महानदीं।' (भारत भीष्म० ९.) दक्षिणापवनयस्ताः मय गद द्विनि:मृता॥" तुमक्ष (सं० पु०) नारिकेलात. नारियलका पेड़। । मस्य५० ११२२९। तोवर (म• पु०) तुम उबत शेखर यस्य । १ पवैत, या दक्षिण प्रदेशको एक बड़ो नदो है। तन तथा पहाड़ । (को० ) तुज शेखर', कर्मधा० । २ पहाड़की भद्रा नामक दो नदोके संयोगमे यह उत्पन हुई है। अंची चोटो । (नि.) ३ उच्च शेखरयुक्त जिसकी चोटी महिसरको दक्षिण-पश्चिम सीमा सन्न पर्वत के गङ्गामूल ऊँचो है। नामक शिखरसे ये नदियों निकल कर दक्षिण-कनाड़ा तं स्कन्धफल (स'• पु.) नारिकेलवृक्षमारियलका पेड़। होती हुई प्रवाहित है। महिसरके मध्य १४ उत्तर. तजा (स'• स्त्रो०) ताटाप । २ दंगलोचन । २ शमी अक्षा में पौर ७५ ४३ पूर्व-दिशा में सिमोगा जिलेके वृक्ष। कुदलो नामक ब्राह्मण ग्राममें ये दोनों नदिया पा कर तारा (म०पू०) एक जङ्गल जो झमोमे । कोम दर मिली है। यह नदो प्रायः साध मौल चौड़ी है और ओड़ाके पास है। यहाँ एक मन्दिर है और प्रतिवर्ष इसको गहराई भी कम नहीं है। पश्चिमस्य वनके बड़े मेला लगता है। बड़े काठादि नदीमें बहा कर ले जाते है। ३०० वर्ष नारि (स• पु० ) खेत करवीरवक्ष, सफेद कनेरका पहले विजयनगरके राजापों ने इस नदी में 'पानिकट' पेड़। निर्माण किये थे। मरिमर और धारवार जिससे वर्धा जिन् (सं० स्त्रो०) तुङ्ग मेषादिकं स्थानमात्रयत्वे नास्ति और कुमुदती नामको दो नदियां तथा दक्षिण में विसारो अस्य इनि। १ उच्चस्थित ग्रह । (त्रि०) २ प्रधान स्वानस्य । जिससे हमारी तथा कलसे हिन्दरी नदी पाकर इसमें तुङ्गिनी (स• स्त्रो० ) तुङ्गिन डोप ।१ महाशतावरो, मिसी है। सुभदा ८ कोस बह कर कृष्णा नदी में मिली बड़ो शतोवर । है। इस नदोको लम्बाई कुल २० कोस है। बांस या तो (स'• स्त्रो०) तुझ गौरादित्वात् डोष । १ हरिद्रा, बत हारा लोग नदी पार होते है। इसके किनारे महिः हल्दो । २ गति, रात, । ३ वर्वरोहत, बम्बई, ममरो। सुरके मध्य हरिहर, बेलारोके मध्य कम्मिलि तथा कर्णल तङ्गोनास (स• पु०) तुङ्गो हरिद्र व पोता नासा यस्य नगर पयस्थित है । हरिहर नगरमें एक और पत्यर- बहुवो। कोटभेद, एक विषला कीड़ा । तुङ्गोनम, का बना हुषा सेत् । नदीमें कुम्भोर अधिक हैं। विचिलिक, तालक, वाहक, कोष्ठागारो, कमिकर, मगड ल . बेलारोके मध्य रामपुर नामक स्थानमें ५१ खंभो के अपर पुच्छक, तुङ्गनाभ, सर्प पोक, अवगुली और शम्बक ये बना हुषा मन्द्रान रेलवेका पुल है। बारह प्रकारके कीड़े प्राणनाशक है। इन कोड़ों के स. मदोका चलित नाम सुभद्रा है। आयुर्वेदमें काटनेसे सांप के काटने जैसा विषका कोप देखा जाता इसका जल स्निग्ध, निर्मल, स्वादु, गुरु, करखें और है, एवं साबिपातिक जन्य वेदना और तोत्र यातना पित्तासदायक, प्रायः सामाकर तथा मधाकर कहा गया उत्पन होतो है। क्षार या पागसे जला हुआशरोरका है। (राजनि.) भाग जैसा हो जाता है, काटा हुचा स्वान भो वगा हो तामुख (म.पु.) गडक, गैड़ा। जाता है और उसमेसे पोला, कासा और लास रंगका