पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६७४

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६६२ ई-तुरंगविखी कपड़ा बुनकर लपेटते जाते हैं। २ वह बलम जिस चर्य भेदः वा ब्रह्मचर्य जो केवल लोके न मिलने के पागोटा बुन कर लपेटते जाते है। कारण हो हो। तुई (हिं. स्त्री.) १ एक प्रकारकी बेलइसके नम्ब तुरगमेध (सं० पु. ) तुरगेण मेधः तत्। पखरक्षक, फलोको तरकारी बनाई जाती है। 'तुम्ही' देखा। वह जो घोड़े की रक्षा करता हो । तुरक (हि. पु० ) तुर्क देखो। ' तुरगरक्षक (म. पु. ) तुरगस्य रचकः तत् । पख. तुरकटा ( फा. पु. ) मुसम्तमान । यह घृणामूचक शब्द है। रक्षक । (हत्व० १५२६) . तुरकाना (हि. पु०) १ तुझी जमा। २ तुर्कोका तुरगलोलक (स.पु. ) सङ्गीतका साम्नविशेष, सङ्गोत देश या बस्ती। दामोदरके अनुसार एक सालका नाम । तुरकानो ( फा० वि०) १तुकीकी जेमो ( स्त्रो०) २ तुर्क तुरगातु ( स० वि० ) तुरेण गातुः, गम वेदे गतु।१ शोध- को स्त्रो। गमनकारक, जल्दी चलनेवाला । (को०) सूर्ण गमन, जल्दी जानेको क्रिया। नुरकिन ( फा• स्त्री० ) १ तुर्क को स्त्रो। २ तुर्कजाति- तुरबानन (सं.पु.) तुरगस्य आननमिव पामममस्य । को स्त्री। किवामद, एक प्रकारके देवता, जिनका मुख घोड़े के तुरकिस्तान (सं० पु० ) तुरुक्क देखो। जैसा और शेष पङ्ग मनुष्य जैसा हो। तुरको ( फा. वि. ) १ तुर्क देशका। २ तुर्क देश तुरगारोह ( पु.) अखारोही, घुड़सवार । सम्बन्धी। (फा० स्त्री० ) तुर्किस्तानको भाषा। तुरंग ( स० पु०-स्त्री) तुरेण वेगेन गच्छति गम-ड। तु रगिन् (सं.वि.) तुरग वाहनत्वे नास्त्यस्य पनि। पवारोही, धुड़मवार । १ घोटक, घोड़ा। २ चित्त। (वि.) ३ शीघ्रगामी, तुरगी (सं० ली.) तुरगवत् गन्धोऽस्त्यस्य, अर्थ पाटि- जलनेवाला। त्वात् पच ततो डोष.।१ पखगन्धा, असगंधा। २ प्रखो, तुरगगन्धा (स. स्त्रो० ) तुरगस्खे व गन्धो यस्याः बहुप्री। १ पश्वगन्धा, असगध। तुरगोय (संपु० स्त्री. ) पावसम्बन्धीय । तुरंगदानव (सं० पु.) तुरगाकारः दानवः मध्यलो. • तुरगुला (कि.पु.) कर्णफ स नामक कानके गहने में कर्मधा। केशी नामक दैत्य। यह दैत्य कसको ' लटकाये जानेका लटकम, नमक, लोलक । पाचासे छष्णको मारनेके लिये चन्दावनमें घोड़े का रूप , म घाड़ का रूप तुरगोपचारक (सं० पु० ) अवसादो, घुड़सवार । शनिके धना कर रहता था। इसक अत्याचरस वह स्थान जन अखिनोनक्षत्र में विचरण करनेसे घोड़ा, घुड़सवार, कवि, प्राणिशून्य हो गया। दुरात्मा तुरगवेयो देव गोपोंको बंद्य और पमात्योंको हानि होतो है। हत्स• १०१३) मारने लगा। यहां तक कि उसके डरमे समस्त वन कम्मित सर (स.पु०-स्त्रो०) त रेग गच्छति तु र गम-खच वा हो उठा। कोई भी दूसरी बार वन जानेका माहस न डिच। १ घोटक, घोड़ा। (लो) २ चित्त । ३ सैन्धव करता था। एक दिन वह दैत्य काल.प्रेरित हो घोष- नमको ४ सातको सख्या। (नि. ) शौघग्रामो, पानी में प्रविष्ट एषा । उसे देख थोपविष्टने भयभीत हो यो जल्दो चलनेवाला। कणकी शरण ली। कैयौ भी जपरकी मुख किये, पांख न रङ्गक (स'• पु०) तुराइव कायति के क। १ हस्ति. फैलाये, दांत दिखलात. पौर बहुत जोरसे गरजते घोषातच, बड़ी तोरई। स्वार्थ कन् । २ घोटक, घोड़ा। • हुए आणली भोर अग्रसर हुए। बहुत देर बाद वाण. तरजगन्धा (स. स्त्रो०) तुरगगन्धा देगे। ने उसे मार डाला । ( हरिब ६० अ०) तुणगौड़ (स० पु. ) गौडरागका एक भेद। यह वीर तुरंगप्रिय (० पु०) तुरगाणां प्रियः, ६-तत् । यव, जो। या रौद्र रसका राग है। तुरगब्रह्मचर्य (स'• ) तुरगस्य व ब्रह्मचर्य ततः समषिणो ( स० बी० ) तु रङ्गो वियतेऽनया तरण खार्य कन। जीके प्रभाव हेतु पानात्याग रूप - शिष, वार० क्यु डोप । मरिषो, भैस। . . घोडी