पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६९३

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तुरी-तुर्शीवंदा कर सहरमें रसद भेजना बन्द कर दिया और नगरके तु श (स.पु. ) नृपमेद, एक राजाका नाम। ये अपकण्ठ में ल ट मचाने लगे। १३०४ ई० में एक मुम्न- ययातिके पुत्र थे। जहां तक सम्भव है, येही तुवसु मान फकोरके किमो पासर्य उद्भावित कौशलसे मुगल नाममे सुप्रसिद्ध है। लोग सहमा डर गये और एकबारगो घिरावको तुर्वशे ( स० अध्य० ) अन्तिक, निकट. पाम । शेढ़ कर भाग गये। तुरखाँ इतने डर गये थे, कि घर तुर्वसु (म. पु०) ययाति राजा एक पुत्र का नाम । ययातिक पहुंचने तक उन्होंने रास्ते में कहीं भी पड़ाव न औरस और देवयानो के गर्भ मे इनका जन्म हुपा था। डाला था। एक दिन ययातिने इन्हें बुला कर कहा-"पुत्र ! विषय तुरो (स.वि०) हफ हिमायां वा. प्रगे। हन्ता, भोगों में मुझे प्रभो तक हलि नहीं हई है। सलिए में सकुशका मारनेवाला भागा जो सामने सोधी नोकको तुमसे यौवन चाहता हजार वर्ष तुम्हार यौवनका पोर होमा है। उपभोग कर मैं उसे फिर तुम्हें वापम कर दूंगा।" सुफरीतु (सत्रि०) फ-रोतु पृषोदरादिलात साधुः। तुर्व सुने उत्तर दिया-"पिता! मैं बुढ़ापा लेने को तैयार हन्ता । तुर्फरी देखगे। तुर्य ( म. वि. ) चतुर्णा पूरणः चतुर यत् च भागस्य "न कामये जरा तात | कामभोगप्रणाशिनी । लोपः । चतुर्थ, चौथा। बलरूपान्तकरणी बुद्धिषाणप्रणाशिनी ।" (भारत आ. ययाति पुत्रका उत्तर सुनकर बहुत क्र.हुए पोर सुय गोल (म'० पु०) कालज्ञानार्थ यन्त्रभेद, समय जानने- पुत्रको मन्होंने इस प्रकार अभियाप दे डाला - का एक यन्त्र। . "मेरे शरोरसे जन्मग्रहण करने पर तुमने मुझे अपना तुर्य पाह, (म० पु०) तुर्य चतुथवर्ष वहति यह-गिव । यौवन न दिया पसलिये तुम जहां राजा होचोगे, चार वर्षे का पशु। वहाँको प्रजाका क्षय होगा। और जिनमें धर्माधम का तुर्या (मो .) तु रेय ज्ञान, वह ज्ञान जिससे मुक्ति ज्ञान नहीं है, जो प्रतिलोमाचार, मांसभक्षक, सर्वदा हो जाती है। ग्ररुदारप्रसाद पोर तिय क योनि है, उन्होंके तुम राजा त्रिम (म० पु०) चतुर्थाश्रम, सन्यासाश्रम। हो प्रोगे तथा नाना प्रकारका कष्ट पापोगे।" तुर्रा ( पपु.) १ धुंधुराले वालों को लट जो माथे पर (भारत . .) हो। २ कलगो, गोशवारा। ३ पगड़ीके अपर लगाने तुर्वसुका व विवरण विश्णुपुराणमें इस प्रकार का बादले का गुच्छा । ४ फलों को लड़ियों का गुच्छा। लिखा है-तुर्व सुके पुत्र साह, उनके पुत्र गोर्भानु, उन. यह दूल्हे के कानके पास लटकता रहता है। ५ टोपो के पुत्र वैशम्ब, उनके पुत्र करबम भोर करन्धर्मक मादिमें लगा हुआ फ दना । ६ पक्षियोंको चोटा, शिवा। पुत्र मरुत्त थे। महत्तके कोई सन्तान न थो, इसलिए ७ हाशिया, किनारे । ८ मकानका छज्जा । ८ जटाधारो, उन्होंने पुरुवशीय दुष्मन्तको पुत्ररूपमे ग्रहण किया। मुर्गाकेश नामका फल । १० चाबुक, कोड़ा। ११ पाठ इस प्रकार ययातिक प्रभावसे तुर्वसुके वशमे पौरव. था नौ जंगुन्न लम्बो एक प्रकारको बुलबुल । जाड़े को वशका आश्रय लिया था। (विष्णुपु० ४ अंश, १६ प० ) ऋतुम यह भारतवर्ष के पूर्वीय भागों में रहतो है। पर तुर्वोति ( म० पु. ) वैदिक राजभेद, एक राजाका नाम । गरमियोंमें चोन पोर साइबेरियाको ओर चली जाती तश ( फा० वि०) ग्वष्टा । है। १२ एक प्रकारक बटेर, डुबको । (वि.) १३ अक्षत तक ( फा०वि०) कठोर स्वभाववाला, बदमिजाज पनोखा। • तुर्शामा ( फा• क्रि०) खडा हो जाना। तुर्वणि ( म० वि०) तृणं वनुते वन् संभक्तौ इन पृषो. तुर्थी ( फा. स्त्रो०) पन्नता, खटाई । दरादित्वात् साधुः । तूगा संभक्ता। सुशादंदा (फा० मो.) घोड़े के दांतीमें कोट या मैल मर्वन ( को०) शव का हिसन, दुश्मनका मारमा। समर्मका रोग। . Vol. IX. 177 .