पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६९६

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६४ घूमतो फिरतो है, इस कारण संक्षसीका शरीर धारण | किसो मनुथका देहान्त हो, तो वह कितना ही पो कर। बन्दा उसो ममय राक्षसा बन कर पृथ्वो पर पाई क्यों न हो. तो भो यमकिगण उसके समीप जानकी और मब जन्तुओंको ग्वान मगो। किन्तु पूर्व स्मृतिक बात तो दूर रहे, उसे देख भी नहीं सकते। जो तुलमो के कारगण वर गो, ब्राह्मण और वैष्णवादिको नहीं मारतो मूलमें दीप दान करते हैं, उन्हें विशुपद प्रान होता थो । अनेक जावों के नष्ट हो जानसे पृथ्वी अस्थिमालिनो है। जिसके घरमें तुलसौकानन है, उसका घर तोथ हो गई । जब वृन्दाको पौर कोई जन्तु न मिला, तो उमने स्वरूप है तथा नर्मदा और गोदावरोमें नान करनेसे जो तीन दिन उपवाम किया। फल मिलता है वही फल तुनभीवन मसग में है। जो पोछे जोवो के अन्वेषण में वह केलामको गई और तुलसो मञ्जरो हार। विष्णुका पूजन करते है, उन्हें फिर वहां भो गैवके अतिरिक्षा और कोई मत्व न मिला । उसने गर्भ वाम यन्त्रणा नहीं भुगतना पड़तो अर्थात् उन्हें मोक्ष मात दिन पनाहार रह कर शरीर त्याग दिया । एक दिन मिलता है। महादेव पार्वतोके माय भ्रमण करते करते वहीं पहुँच पुष्करादि तो , गङ्गादि सरित, वासुदेव आदि गये जहाँ धन्दाको लाश पड़ो थो । महादेव बोले, यह देवता सर्वदा तुलमीदम्नमें वाम करते हैं। रूपवतो धन्दा धर्मदेवको पत्नो है। अभिशापवश राक्षस जहा कवन एक तुलमोका वृक्ष है, वहां ब्रह्मा, का रूप धारण करके भी उमने आज तक ब्राह्मणहत्या विष्णु और शिव ग्रादि त्रिदश अवस्थित है। नहीं को है। अत: उमका घरोर निष्फल रहना उचित तुलमो पत्रमें केशव, पत्राग्रमें प्रजापति, पत्रहन्तमें नहीं है। हमारे वचनानुमार यह वृन्दा पृथ्वो पर वृक्षके शिव सब समय रहते हैं। इसके पुष्पमें लक्ष्मी, मरखतो, रूपमें जन्म लैंगो और सभोको प्रेमभाजना होगा। जब गायत्री, चन्द्रिका पौर शचो आदि देवियां तथा शाखामें यह वृक्ष होवेगा, तब इसके पत्ते विष्णु पर चढ़ाये इन्द्र, अग्नि, शमन, वरुण, पवन और कुवेर प्रादि देव. जायगे । इसके पत्ताक मिवा मणिमुना मादि किससे भी गण अवस्थित है। आदित्यादि ग्रह, वसु, मनु और विष्णको पूजा नहीं हो सकेगा; वृक्ष तुम्तमौके नामसे देवर्षि विद्याधर, गन्धर्व आदि समस्त देवयोनि तुलसी. प्रसिद्ध होगा। पार्वती और हम इसके अधिष्ठात्री देवता हांगे। जो वेगाखमासमें तुलसोका वृक्ष सोचते हैं, उन' तुल सो कार्तिक मासको प्रमावस्या तिथि, पृथ्वो अश्वमेधका फल मिलता है । तुलसों के समान पुण्य पौर पर वृक्ष के रूप में उत्पन हुई थी। (हद्धर्मपु. ८ अ) मतिप्रद वृक्ष और दूसरा कोई नहीं है। तुलसीका माहात्म्य--कात्तिक मासमें तुलमोदलसे जो तुलमो हाथमें रख कर यदि कोई मिथ्या शपथ करे नाराय। को पूजा करते एवं दर्शन, स्पन, ध्यान, प्रणाम, अथवा मिथ्या वचन बोले, तो जब तक चौदहाँ इन्द्र अचन, रोपण तथा सेवन करते हैं, वे कोटिसहस्र युग रहगे, तब तक उसे बार बार कुम्भीपाक नरकमें रहना तक स्वर्ग पुगेमें वास करते हैं । जो तुलसोका वृक्ष रोप्ते होगा। हैं, उनका पुण्य उतमाहो युग सहस्र वर्ष विम्टतो तुलसीचयन निषेध - पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी जाता है जितना उसका मून फैलता है । तुलमोदलसे जो और मक्रान्तिम सुन्नमो नहीं तोड़ना चाहिये । तेल लगा नारायणको पूजा करते हैं, उनके जन्मार्जित मभो पाप कर मध्यानान किये बिना निशि और मध्या कालमें जात रहते हैं । वायु सुन्नसोको गन्ध जिस प्रोर ले जातो एवं गत्रिवास परिधान कर जो तुलमोदल तोड़त है, है, वही दिशा पवित्र हो जातो है। तुलसोके वनमें वे हरिका मस्तक छेदन करते है। पिटवाद करनेसे पिटगण बहुत पसन होते हैं। जिनक तुलगी वय नविधि -मध्यासान कर और पवित्र वरमें तुलमो तलको महो रहती है, उनके घरमें यम. वस्त्र पहन कर तुलसोदल तोड़ना चाहिये। तुलसीदल किहर बधौं आ सकते। तुलसी-मृत्तिकासे मिस यदि इतने पाहिस्ते पाहिस्ते तोड़ जिससे कि शाखा हिलने