पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७०३

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तुळसीपुर-तुलसीबाई ६९१ प्रवाट है, कि प्रायः ५.० वर्ष पहले यहां मेघराज दिग नारायणने समय पाकर पिताको कैद कर लिया नामक चौहान वशीय एक राजाने और पोई उनके पोर विष खिला कर मरवा डाला। वंशधरो ने बहुत दिनों तक थारुषों के अपर प्राधिपत्य ___ पयोध्या प्रदेश हटिय शासनाधीन होने पर गर्म रहने किया था। दिग नारायणसे कर मांगा। किन्तु होनमति दिग: .. प्रायः सौ वर्ष बीत चुके, बलरामपुरके राजा पृथ्वो- नारायच करने को राजी न हुए। इसी कारण वे पाल सिंहको मृत्य हुई। उनके पुत्र नवलसिंह राजा बन्दी कर लखनज नगर लाये गए । सो समय विद्रोह होनेको थे, किन्तु उनके भतोजे कलवारि मारने नवन- भारम्भ हुमा । बन्दो अवस्थामें दिग नारायणको मृत्यु को भगा कर राज्य अधिकार कर लिया। चौहानराजाने हुई। उनका स्त्रीने भो विद्रोहमें साथ दिया था। रस- गिरि जङ्गलमें पात्रय ले कर दो हजार थारुपोंको लिए तुलसोपुर राज्य जबत कर गवण्डने बलरामपुर- सहायतामे अपना पैटकराज्य उद्दार किया। तब राज्य के राजाको प्रण किया। हारोने पहाड़ पर जाकर पाश्रय लिया। कुछ दिन बाद २ उता पागने का एक प्रधान नगर । य तुलसीपुर नेपालरा के उन पर पाक्रमण करने पर उन्होंने पुनः राजाओंका बनाया एपा एक पुराना गढ़ । प्रायः दो बलरामपुरमें पाकर नवलसिहको शरण ली। नवल- सौसे अधिक वर्ष हुए, तुलसोदाम नामक किसी कुर्मी ने सिंहने उनको सहायतासे तुलसोपुरके चार सर्दारों को यह नगर स्थापन किया। उन्होंके नामानुसार तुलसीपुर दमन किया और उसका नाम तुलसीपुर रखा। वे भी नाम पड़ा है। बलरामपुरके राजाको वार्षिक डेढ़ हजार कर देने को तुलसीवाई-इन्दौर के राजा यशवन्तराव होलकरको एक राजी हुए। उनके पुत्र दलाल सिंह उचित गतिले उक्त प्रेयसी। यह रमणो पहले एक सामान्य नर्तको थो; पोहे कर देते पा रहे थे। उनके बाद दानबहादुर सिंह राजा रमने महाराज यशवन्तरावका उदय पधिकार पर हए। उन्होंने कर देना बन्द कर दिया। लिया था। यशवन्तरावक शेषावस्थामें मादरोगग्रस्त १८२८ ई में गवर्नर जनरल तुलसीपुरमें शिकारको होने पर तुलसीबाई होलकर राज्यको सबैमा हो गई, गये। राजाको पातिथ्यमेवाने मुग्ध हो कर बड़े साटने तुलसोबाईने रूपको छटासे, मधुर बातोंसे पौर मनोहर अयोध्याके नवाबको हुक्म दिया कि वे कुछ वार्षिक कर शवभावसे थोड़े ही दिनों में सबको मोहित कर लिया। से कर तुलसीपुर परगने का चिरस्थायी बन्दोवस्त दान तुलसोके कोई सन्तान न थो। यशवन्तरावको मत्युके बहादुरके साथ कर दे। बाद उनके पुत्र मल्हाररावको दत्तकपुत्र पहप कर तुलसी दान बहादुरके समयमं राज्य एक उबतिके शिखर पर बाई राज्य चलाने लगी। दोवान गणपतरावसे तुलसी- पहुंच गया था। १८४५ ई.में दान बहादुरको मृत्य, बाई को कुछ गटपट थो, इसलिए सरदार, लोग तुलमो. होने के बाद उनके लड़केका •दृगराजसिंहने पित. बाईसे नाराज हो गये। सम्पत्ति पाई। कोई कोई कहते हैं कि दृगराज सिंह- रूपमें पसरा और बातोमें मूर्तिमयो करणा होने पर के षड्यन्त्रसे हो उनके पिताको मृत्यु, दुई। दृगराजा- भो तुलसीबाईका उदय कूट अभिसन्धियोंसे भरा पा को भी अधिक दिन राज्य नहीं भोगना पड़ा। उनके था। तुलसोबाईसे जो लोग किसी प्रकारका औष रखते पुत्र दिग नारायणसिह १८५०१०में पिताको राज्यसे थे, उनके मनाशको चिम्लामें वह सर्वदा मयगुख वाहर निकाल कर पाप राजा बन बैठे। दृगपासने बल- रहती थी। गमपुरमें पा कर पायय लिया। उनके साहाय्यके लिए उस समय महाराष्ट्र लोग ब्रिटिययतिको परास्त बटिग गंवमें एटने एक दस सेना भेजी। दृगराजने इन करनेके लिए दल बांध रहे थे । तुलसीबाईने भो सरदारों- सेनापोंको मददसे अपना राज्य अधिकार किया। किन्तु के अभिप्रायको जाम उसो दलमें. माथ दिया। परन्तु दुन पुनके हायसे यह बात कह भुगतना पड़ा। गणपतराव समझा गये कि मराठे सरदार जिस तरह